नई दिल्ली:अफगानिस्तान में शुरुआत बहुत अच्छी नहीं है. मैं काबुल में उस समय उत्तरी गठबंधन में काबुल के पतन के एक सप्ताह बाद नवंबर 2001 में काबुल में भारतीय दूतावास को फिर से खोलना चाहता हूं, जिसे यूएस सीआई गुर्गों द्वारा समर्थित किया गया था. उस समय रमजान के दौरान काबुल में शांति थी. लोग बहुत खुश थे कि तालिबान को बेदखल कर दिया गया था और एक नई सरकार बनने जा रही थी, जो एक स्वतंत्र सरकार बनने जा रही थी. ये बातें अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने ईटीवी भारत से विशेष इंटरव्यू में कहीं.
बता दें, मुखोपाध्याय न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सामाजिक विकास पर सलाहकार के रूप में भी काम कर चुके हैं और कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक विजिटिंग स्कॉलर भी रहे हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने कहा कि अगर मैं अफगानिस्तान में वर्तमान हालातों की बात करुं तो अमेरिकी सैनिक हिंसक थे. उन्होंने कहा कि काबुल हवाई अड्डे पर दो बड़े पैमाने पर हमले हुए, जिसमें 170 अफगान और 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 100 से अधिक लोग मारे गए. जो अच्छा नहीं है.
मुखोपाध्याय ने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि हम और भी अधिक गंभीर हिंसा की स्थिति में आ रहे हैं, जिसे हमने अब तक विभिन्न चरमपंथी कट्टरपंथी, आतंकवादी संगठनों के रूप में देखा है, जो तालिबान समूह का हिस्सा रहे हैं. इन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई(ISI) का भी समर्थन प्राप्त है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वे सभी अफगानिस्तान को अपनी जीत के रंगमंच के रूप में देखते हैं और आगे के हमलों के लिए उत्साहित होते रहेंगे.
अफगानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में रहे भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि अच्छी स्थिति तब होगी जब अफगानिस्तान अपनी बातों को लेकर गंभीर रहे और एक समावेशी सरकार का गठन करे. उन्होंने कहा कि इस सरकार में विभिन्न राजनीतिक और जातीय समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें वास्तविक शक्तियां भी प्रदान करनी होंगी. तब हम शांति प्रकिया की आशा कर सकते हैं.
पूर्व राजदूत मुखोपाध्याय ने बताया कि हालांकि मैं इसके बारे में बहुत आशावादी नहीं हूं और मैं यह नहीं कहूंगा कि आगे और खराब स्थिति होगी. मुझे संदेह है कि क्या तालिबान शांति और स्थिरता प्रदान करने में सक्षम होगा क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जो अफगान सबसे ज्यादा चाहते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में भय, अनिश्चितता का माहौल है. बता दें, 20 साल के बाद तालिबान अफगानिस्तान दोबारा लौटे हैं.