नई दिल्ली : हमारे संविधान में स्वायत्त न्यायिक व्यवस्था की परिकल्पना की गई है, जिसके तहत न्याय तक पहुंच को मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार की तरह स्वीकार्य किया गया है. समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले लोगों को किस प्रकार से लीगल हेल्प मिल सकता है, समय-समय पर इसकी ओर कई कदम उठाए गए हैं. नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी इसी सोच की उपज है. इसे और अधिक मजबूत करने के लिए हम प्रत्येक साल नौ नवंबर को नेशनल लीगल सर्विस डे मनाते हैं.
1987 में नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी को स्थापित किया गया था. नौ नवंबर 1985 से इसकी सेवा शुरू की गई. इस दिन विधिक जागरूकता कैंपेन आयोजित किया जाता है. लोगों को बताया जाता है कि आप किस तरह से मुफ्त में कानूनी सेवा प्राप्त कर सकते हैं.
संविधान के 39ए में समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता के प्रावधानों के बारे में लिखा गया है. अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 22 भी यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. कानून सभी को समान नजरिए से देखता है. सरकार ऐसी न्यायिक व्यवस्था सुनिश्चित करेगी, ताकि सबको समान अवसर मिले. लीगल एड सर्विस की शुरुआत इसी उद्देश्य को पूरित करने के लिए लाया गया है. अगर कमजोर और निर्धन लोगों को विधिक सहायता न पहुंचाई जाए, तो इससे न्यायिक असमानता पैदा हो सकती है, और इसकी वजह से हमारे प्रजातंत्र का मजबूत स्तंभ कमजोर हो जाएगा.
सबसे पहले फ्रांस में 1851 में लीगल एड मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. उसके बाद ब्रिटेन में 1944 में गरीबों और असहायों के लिए सरकार की ओर से कानूनी सहायता दिलाने के लिए संगठित प्रयास किया गया था. उस समय लॉर्ड चांसलर विस्काउंट सिमॉन ने रशक्लिफ कमेटी की नियुक्ति की थी. उनका मकसद इंगलैंड और वेल्स में जरूरतमंदों को न्यायिक सेवा दिलाना था.
भारत में 1952 से इसकी ओर पहल की गई थी. तब अलग-अलग कमीशनों के सामने इसकी चर्चा होती थी. 1958 में लॉ कमीशन ने गरीबों के लिए समान और मुफ्त न्यायिक व्यवस्था की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए अनुशंसा की थी. इसके बाद नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी ने लीगल एड डिफेंस काउंसल सिस्टम को विकसित करना शुरू किया.
सबसे पहले आपराधिक मामलों में मदद देने की शुरुआत की गई थी. फिर चाहे वह प्री-अरेस्ट स्टेज हो या बेल का स्टेज हो. सभी स्टेज पर यदि वे मदद चाहते हैं, तो उनकी मदद किस तरह से की जाए, इसकी ओर कदम उठाया गया था.
2021 में छह सप्ताह का एक जागरूकता अभियान चलाया गया था. दो अक्टूबर से 14 नवंबर तक यह अभियान चला. इसमें डोर टू डोर कैंपेन को भी शामिल किया गया था. अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मोबाइल वैन और लीगल एड क्लिनिक का भी इंतजाम किया गया था. 38 करोड़ लोगों से संपर्क साधा गया था. उसी साल लीगल एड डिफेंस सिस्टम की शुरुआत 13 जिलों में की गई. लीगल सर्विसेस मोबाइल एप्लीकेशन लॉंच किया गया. ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की गई, ताकि लीगल एड अप्लीकेशन दाखिल किया जा सके. 10 भाषाओं में इसका एक्सेस है.
अलग-अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए 67 हजार से भी अधिक प्रोग्राम आयोजित किए गए. अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी अलग-अलग स्तर पर कई बैठकों को आयोजित किया. 1137 जेल लीगल सर्विस क्लिनिक्स के माध्यम से 227344 लोगों को विधिक सहायता उपलब्ध करवाई गई. 533548 महिलाओं को फायदा मिला. नेशनल कमीशन फॉर वुमन ने एंपावरमेंट ऑफ वुमन थ्रू लीगल अवेयरनेस पर फोकस किया. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक 12794 लीगल सर्विस क्लिनिक्स ऑपरेशनल थे.
अलग-अलग स्तर पर कई प्लेटफॉर्म हैं, जो लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं. जैसे सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, 39 हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, 37 स्टेट लीगल सर्विस ऑथरिटी, 673 डिस्ट्रिक लीगल सर्विस ऑथरिटी और 2465 तालुक लीगल सर्विस ऑथरिटी अस्तित्व में हैं. सरकार की ओर से इन्हें पूरी मदद दी जा रही है. पैनल में 33556 वकील हैं, जिनके पास 10 साल का अनुभव है. इसके अलावा 24704 पारा लीगल वॉलंटियर्स हैं. 2021-22 में सरकार ने 145 करोड़ का बजट आवंटित किया था. अलग-अलग स्कूलों में 22321 लीगल लिटरेसी क्लब हैं, जहां पर 126856 लीगल अवेयरनेस प्रोग्राम आयोजित किए गए हैं.
इस मामले में केरल ने सबसे बड़ी लीड ली है. इसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने भी इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं. 1973 में जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने प्रोसिजुअल जस्टिस टू द पुअर नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके बाद जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस अय्यर ने संयुक्त रूप से नेशनल ज्यूरिसप्रूडेंस, इक्वल जस्टिस एंड सोशल जस्टिस नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. 42 वां संविधान संशोधन के जरिए 39ए को जोड़ा गया. यह नीति निर्देशक तत्वों के अधीन था.