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गरीब हो या अमीर, कानूनी सहायता पाने का सबको समान अधिकार, 1958 में ही पड़ गई थी मुफ्त लीगल एड की नींव

Free legal aid to downtrodden : समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले व्यक्तियों को किस प्रकार से न्यायिक मदद दी जा सकती है, इसके लिए लीगल सर्विस ऑथरिटी की कल्पना की गई थी. 1958 में लॉ कमीशन ने गरीबों के लिए समान और मुफ्त न्यायिक व्यवस्था की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए एक संस्था बनाने की अनुशंसा की थी. तब से लेकर आज तक इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं.

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न्यायिक सहायता

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 9, 2023, 7:35 PM IST

Updated : Nov 9, 2023, 10:12 PM IST

नई दिल्ली : हमारे संविधान में स्वायत्त न्यायिक व्यवस्था की परिकल्पना की गई है, जिसके तहत न्याय तक पहुंच को मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार की तरह स्वीकार्य किया गया है. समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले लोगों को किस प्रकार से लीगल हेल्प मिल सकता है, समय-समय पर इसकी ओर कई कदम उठाए गए हैं. नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी इसी सोच की उपज है. इसे और अधिक मजबूत करने के लिए हम प्रत्येक साल नौ नवंबर को नेशनल लीगल सर्विस डे मनाते हैं.

1987 में नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी को स्थापित किया गया था. नौ नवंबर 1985 से इसकी सेवा शुरू की गई. इस दिन विधिक जागरूकता कैंपेन आयोजित किया जाता है. लोगों को बताया जाता है कि आप किस तरह से मुफ्त में कानूनी सेवा प्राप्त कर सकते हैं.

संविधान के 39ए में समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता के प्रावधानों के बारे में लिखा गया है. अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 22 भी यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. कानून सभी को समान नजरिए से देखता है. सरकार ऐसी न्यायिक व्यवस्था सुनिश्चित करेगी, ताकि सबको समान अवसर मिले. लीगल एड सर्विस की शुरुआत इसी उद्देश्य को पूरित करने के लिए लाया गया है. अगर कमजोर और निर्धन लोगों को विधिक सहायता न पहुंचाई जाए, तो इससे न्यायिक असमानता पैदा हो सकती है, और इसकी वजह से हमारे प्रजातंत्र का मजबूत स्तंभ कमजोर हो जाएगा.

सबसे पहले फ्रांस में 1851 में लीगल एड मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. उसके बाद ब्रिटेन में 1944 में गरीबों और असहायों के लिए सरकार की ओर से कानूनी सहायता दिलाने के लिए संगठित प्रयास किया गया था. उस समय लॉर्ड चांसलर विस्काउंट सिमॉन ने रशक्लिफ कमेटी की नियुक्ति की थी. उनका मकसद इंगलैंड और वेल्स में जरूरतमंदों को न्यायिक सेवा दिलाना था.

भारत में 1952 से इसकी ओर पहल की गई थी. तब अलग-अलग कमीशनों के सामने इसकी चर्चा होती थी. 1958 में लॉ कमीशन ने गरीबों के लिए समान और मुफ्त न्यायिक व्यवस्था की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए अनुशंसा की थी. इसके बाद नेशनल लीगल सर्विस ऑथरिटी ने लीगल एड डिफेंस काउंसल सिस्टम को विकसित करना शुरू किया.

सबसे पहले आपराधिक मामलों में मदद देने की शुरुआत की गई थी. फिर चाहे वह प्री-अरेस्ट स्टेज हो या बेल का स्टेज हो. सभी स्टेज पर यदि वे मदद चाहते हैं, तो उनकी मदद किस तरह से की जाए, इसकी ओर कदम उठाया गया था.

2021 में छह सप्ताह का एक जागरूकता अभियान चलाया गया था. दो अक्टूबर से 14 नवंबर तक यह अभियान चला. इसमें डोर टू डोर कैंपेन को भी शामिल किया गया था. अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मोबाइल वैन और लीगल एड क्लिनिक का भी इंतजाम किया गया था. 38 करोड़ लोगों से संपर्क साधा गया था. उसी साल लीगल एड डिफेंस सिस्टम की शुरुआत 13 जिलों में की गई. लीगल सर्विसेस मोबाइल एप्लीकेशन लॉंच किया गया. ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की गई, ताकि लीगल एड अप्लीकेशन दाखिल किया जा सके. 10 भाषाओं में इसका एक्सेस है.

अलग-अलग डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए 67 हजार से भी अधिक प्रोग्राम आयोजित किए गए. अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी अलग-अलग स्तर पर कई बैठकों को आयोजित किया. 1137 जेल लीगल सर्विस क्लिनिक्स के माध्यम से 227344 लोगों को विधिक सहायता उपलब्ध करवाई गई. 533548 महिलाओं को फायदा मिला. नेशनल कमीशन फॉर वुमन ने एंपावरमेंट ऑफ वुमन थ्रू लीगल अवेयरनेस पर फोकस किया. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक 12794 लीगल सर्विस क्लिनिक्स ऑपरेशनल थे.

अलग-अलग स्तर पर कई प्लेटफॉर्म हैं, जो लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं. जैसे सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, 39 हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, 37 स्टेट लीगल सर्विस ऑथरिटी, 673 डिस्ट्रिक लीगल सर्विस ऑथरिटी और 2465 तालुक लीगल सर्विस ऑथरिटी अस्तित्व में हैं. सरकार की ओर से इन्हें पूरी मदद दी जा रही है. पैनल में 33556 वकील हैं, जिनके पास 10 साल का अनुभव है. इसके अलावा 24704 पारा लीगल वॉलंटियर्स हैं. 2021-22 में सरकार ने 145 करोड़ का बजट आवंटित किया था. अलग-अलग स्कूलों में 22321 लीगल लिटरेसी क्लब हैं, जहां पर 126856 लीगल अवेयरनेस प्रोग्राम आयोजित किए गए हैं.

इस मामले में केरल ने सबसे बड़ी लीड ली है. इसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने भी इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं. 1973 में जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने प्रोसिजुअल जस्टिस टू द पुअर नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके बाद जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस अय्यर ने संयुक्त रूप से नेशनल ज्यूरिसप्रूडेंस, इक्वल जस्टिस एंड सोशल जस्टिस नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. 42 वां संविधान संशोधन के जरिए 39ए को जोड़ा गया. यह नीति निर्देशक तत्वों के अधीन था.

1980 में जस्टिस पीएन भगवती ने कमेटी फॉर इंप्लीमेंटेशन ऑफ लीगल एड स्कीम की अध्यक्षता की थी. इसका मुख्य काम देश भर में लीगल सहायता को लेकर की गई शुरुआत ठीक ढंग से काम कर रहा है या नहीं, इसकी निगरानी करना था. इस कमेटी ने लोक अदालत की शुरुआत की थी. इसके बाद 1987 में लीगल सर्विस ऑथरिटी एक्ट लाया गया. इस एक्ट के जरिए लोक अदालत में निपटाए जाने वाले फैसलों को कानूनी कवच पहनाया गया. 1995 में नेशलन लीगल सर्विस ऑथरिटी की स्थापना की गई.

हुसैन आरा खातून वर्सेस बिहार सरकार (1980) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि मुफ्त में कानूनी सहायता प्राप्त करना संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है. यानी इसे मूल अधिकार की तरह ट्रीट किया जाएगा. ऐसा ही फैसला खत्री वर्सेस बिहार सरकार में भी दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि जो भी आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें मुफ्त में कानूनी सहायता पाने का पूरा अधिकार है.

जस्टिस पीएन भगवती ने सुक दास वर्सेस केंद्र सरकार मामले कहा कि अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के मद्देनजर कानूनी जागरूकता फैलाना भी संविधान के दायरे में भी है. उन्होंने कहा था कि शिक्षित व्यक्ति भी अपने अधिकारों और हक को लेकर जागरूक नहीं होते हैं. स्टेट ऑफ हरियाणा वर्सेस दर्शना देवी केस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बढ़ती कोर्ट की फीस की वजह से किसी भी व्यक्ति को लीगल मदद से महरूम न होना पड़े, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

लोकअदालत और मध्यस्थता केंद्र इस दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है. लोक अदालत को पीपुल्स कोर्ट भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत सबसे पहले गुजरात में हुई थी. 14 मार्च 1982 में सबसे पहली बार इसकी शुरुआत जुनागढ़ में की गई थी. इन अदालतों में अब तक 3.26 करोड़ मामले जा चुके हैं, जिनमें 1.27 करोड़ मामलों को निपटाया जा चुका है.

कोविड के समय में ई लोक अदालत ने असहाय लोगों को बड़ी राहत प्रदान की. अभी 402 स्थायी लोकअदालत हैं. इनमें 348 कार्यरत हैं. 465 अल्टरनेटिव डिस्प्युट रेजोल्यूशन सेंटर हैं, 572 मध्यस्थता केंद्र हैं. मध्यस्थता केंद्रों में 52 हजार से अधिक मामले निपटाए जा चुके हैं.

समाज के वंचित वर्गों के बीच सबसे बड़ी कमजोरी सीमित कानूनी जागरूकता का है. यह पूरे देश का दायित्व है कि उन्हें फंडामेंटल लीगल अधिकारों को लेकर जागरूक किया जाए. लीगल सर्विस ऑथरिटी को और अधिक से अधिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है. संसाधन युक्त और संसधानहीन व्यक्तियों के बीच खाई चौड़ी नहीं होनी चाहिए. यह समय की जरूरत है कि वैकल्पिक विवाद निपटारा व्यवस्था को मजबूत किया जाए. प्री-लिटिगेशन स्टेज में भी मामले को सलटाया जा सकता है, उस पर फोकस जरूरी है.

इसके लिए जरूरी है कि राज्य और केंद्र सरकार फंड की कमी न होने दे. यह समाज की संयुक्त जवाबदेही है कि वे संसाधनहीन व्यक्तियों को पूरी मदद करे. बहुत सारे विकसित देशों के पास ऐसे प्लान हैं, कि वे आने वाले समय में जागरूकता अभियान चला रहे हैं. वे फीडबैक प्राप्त करते हैं और फिर उसमें संशोधन भी करते हैं. पैनल के सभी वकीलों का मूल्यांकन जरूरी है, ताकि सही फीड मिल सके.

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एनएएलएसए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की मांग करता है जिसमें कानूनी जागरूकता की सबसे ज्यादा अहमियत हो ती है. शिक्षा, कुशल कार्यान्वयन, गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग जरूरी है. पर्याप्त वित्तीय संसाधन, क्षमता निर्माण, वैकल्पिक विवाद समाधान को बढ़ावा देना बेहतर कदम हो सकता है. फीडबैक तंत्र के माध्यम से जवाबदेही तय की जा सकती है. इस कार्य में नालसा बड़ी भूमिका निभा सकता है.

(लेखक- पीवीएस सैलजा, सहायक प्रोफेसर, डॉ बीआर आंबेडकर लॉ कॉलेज, हैदराबाद)

Last Updated : Nov 9, 2023, 10:12 PM IST

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