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नक्सल विरोधी अभियान के दौरान सीआरपीएफ अफसर ने गंवाए दोनों पैर, रेस्क्यू में देरी पर उठे सवाल - Naxalites IED blast in forest of Aurangabad Gaya border

हाल ही में एक नक्सल विरोधी अभियान में सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट बिभोर कुमार सिंह ने अपने दोनों पैर गंवा दिए. इस घटना के बाद नक्सल बहुल इलाकों से सुरक्षा बल के जवानों को निकालने की केंद्र सरकार की प्रक्रिया बड़े विवाद में घिर गई. 'ईटीवी भारत' के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

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चकरबंधा वन क्षेत्र में घायल अफसर (फाइल फोटो)

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Published : Mar 14, 2022, 7:35 PM IST

नई दिल्ली : बिहार में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट बिभोर कुमार सिंह को अपने दोनों पैर गंवाने पड़े (CRPF Bibhor Kumar Singh lost both his legs). इस घटना के बारे में सुरक्षा बल के अधिकारियों के एक वर्ग के साथ-साथ सिंह के परिवार के सदस्यों ने दावा किया कि 'अगर निकासी प्रक्रिया समय पर होती तो इससे बचा जा सकता था.' सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने केस डायरी में कहा है कि 'एक हेलिकॉप्टर की मांग की गई थी, लेकिन विभिन्न प्राकृतिक और प्रशासनिक कारणों से इसे तुरंत नहीं लिया जा सका.'

'ईटीवी भारत' के पास मौजूद केस डायरी के मुताबिक, 24 फरवरी को बिहार के गया स्थित चकरबंधा वन क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ सीआरपीएफ की 47 बटालियन और जिला पुलिस ने संयुक्त अभियान चलाया. सहायक कमांडेंट सिंह विभोर कुमार सिंह अन्य टीमों के साथ कोबरा बटालियन 205 का नेतृत्व कर रहे थे. उनका मिशन इलाके में सर्च ऑपरेशन करना और नक्सलियों से मुक्त कराना था.

केस डायरी के मुताबिक '25 फरवरी की सुबह, इलाके में तलाशी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों को एक नक्सली ठिकाना मिला ... शाम को डिप्टी कमांडेंट वरिंदर पाल सिंह के नेतृत्व वाली एक टीम नक्सलियों की भारी गोलीबारी की चपेट में आ गई.

सहायक कमांडेंट बिभोर कुमार सिंह ने घिरी टीम को बचाने की योजना बनाई. सिंह के नेतृत्व में टीम आगे बढ़ी इसी दौरान एक आईईडी विस्फोट हुआ, जिसमें सिंह और उनके रेडियो ऑपरेटर सुरेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गए. उस धमाके में सिंह के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए. केस डायरी में कहा गया है, 'मुठभेड़ के बाद, दोनों घायलों को निकालने की योजना बनाई गई. हेलिकॉप्टर की मांग की गई, लेकिन विभिन्न प्राकृतिक और प्रशासनिक कारणों से यह तुरंत नहीं हो सका.'

भारतीय वायु सेना (IAF) को हेलिकॉप्टरो की मदद से घायलों को मौके से निकालना था लेकिन खराब मौसम के कारण वह घटना स्थल तक नहीं पहुंच पाई. इसके बाद सुरक्षाकर्मी बिभोर कुमार सिंह और सुरेंद्र दोनों को स्ट्रेचर पर ले गए. करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर गया अस्पताल पहुंचे. सिंह को यहां प्राथमिक उपचार दिया गया जिसके बाद सर्जरी के लिए दिल्ली एम्स में भेजने की सलाह दी गई. घटना की केस डायरी में कहा गया है, 'बिगड़ती हालत के बाद एक एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई और दोनों को लगभग 24 घंटे बाद एम्स में स्थानांतरित कर दिया गया.'

इस संवाददाता ने गृह मंत्रालय और सीआरपीएफ की प्रतिक्रिया लेने के कई प्रयास किए लेकिन सफलता नहीं मिली. घटना से स्तब्ध पूर्व अर्धसैनिक बल कल्याण संघ के महासचिव रणबीर सिंह ने हेलिकॉप्टर द्वारा घायलों को निकालने में देरी पर उच्च स्तरीय जांच की मांग की. रणबीर सिंह ने कहा, 'अगर हेलिकॉप्टर समय पर घटना स्थल पर पहुंच जाता, तो इस स्थिति से बचा जा सकता था. समय पर सर्जरी और ऑपरेशन सहायक कमांडेंट बिभोर कुमार सिंह के पैरों को बचा सकते थे.'

सहायक कमांडेंट सिंह की बिहार में उनके गृहनगर में चार साल की बेटी है. इस संवाददाता से बिभोर सिंह के पिता दिलेश्वर सिंह ने कहा, 'वह परिवार में एकमात्र कमाने वाले थे. बिभोर के दो छोटे भाई भी हैं.' किसान दिलेश्वर सिंह कहते हैं कि 'डॉक्टरों को मेरे बेटे के दोनों पैर काटने पड़े. अब वह क्या करेगा. उसका परिवार कैसे पलेगा.' दिलेश्वर सिंह उम्मीद है कि सरकार उनके परिवार के लिए कुछ करेगी.

बीएसएफ की एयर विंग जैसी सेवा की मांग
हालांकि, चकरबंधा वन क्षेत्र की घटना इस तरह की एकमात्र घटना नहीं थी. इससे पहले भी इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं. ताजा घटना ने सीआरपीएफ के लिए सेना और बीएसएफ की एयर विंग जैसी समर्पित हेलीकॉप्टर सेवा की मांग उठाई है.

तीन राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित
IAF को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हताहतों को निकालने, सुरक्षा कर्मियों को निकालने का काम सौंपा गया है. सुरक्षा तैनाती की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया कि रांची स्थित वायुसेना के हेलिकॉप्टर को बिहार और झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों से सुरक्षा बलों के घायल जवानों को निकालने का काम सौंपा गया है.अधिकारी ने कहा, 'तदनुसार, IAF को अन्य नक्सल क्षेत्रों में इस तरह के निकासी कार्य करने का जिम्मा सौंपा गया है.'
नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत भर के 10 राज्यों के 70 जिले नक्सली से प्रभावित हैं. तीन राज्य झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. झारखंड के 16, छत्तीसगढ़ के 14 और बिहार 10 जिले वामपंथी चरमपंथियों से प्रभावित हैं. पिछले तीन वर्षों में पूरे भारत में 1844 नक्सल संबंधी घटनाएं हुईं, जहां इसी अवधि के दौरान 532 मौतें हुईं.

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