नई दिल्ली:भारत और यूरोपीय संघ के बीच शुक्रवार को 10वीं भारत-यूरोपीय संघ मानवाधिकार वार्ता हुई. इस दौरान मानवाधिकार रक्षक पत्रकारों, नागरिकों, अभिनेताओं के हितों की रक्षा करने, उनकी स्वतंत्रता और साम्मान के लिए कदम उठाने पर सहमति व्यक्त की गई. विशेष रूप से पत्रकारों की रक्षा करने वाली समिति (सीपीजे) ने बुधवार को यूरोपीय संघ से इस वार्षिक भारत-यूरोपीय संघ मानवाधिकार संवाद के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए भारतीय अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया था.
यूरोपीय संघ ने बिना किसी अपवाद के मृत्युदंड का विरोध दोहराया. भारत ने विकास के अधिकार को एक विशिष्ट, सार्वभौमिक, मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने पर अपना रुख दोहराया जो सभी देशों के सभी लोगों पर लागू होता है. इसके अलावा भारत और यूरोपीय संघ ने सभी मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इस संदर्भ में खुले और लोकतांत्रिक समाजों के रूप में उन्होंने सभी मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता, अविभाज्यता और परस्पर संबंध पर जोर दिया. इस संवाद में मानवाधिकार के व्यापक मुद्दों पर चर्चा की गई. अप्रैल 2021 में पिछली वार्ता के बाद से भारत और यूरोपीय संघ के भीतर अपने-अपने दृष्टिकोण, प्रयासों और उपलब्धियों को रेखांकित किया गया.
मानवाधिकार वार्ता की सह-अध्यक्षता भारत के विदेश मंत्रालय में यूरोप पश्चिम के संयुक्त सचिव, संदीप चक्रवर्ती और भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत, यूगो एस्टुटो ने की. भारत और यूरोपीय संघ ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों, धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता, ऑनलाइन और ऑफलाइन अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता, महिला सशक्तिकरण, बच्चों के अधिकार, एलजीबीटीक्यूआई के अधिकारों पर विचारों का आदान-प्रदान किया. प्रवासियों के अधिकार, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग, सुरक्षा और मानवाधिकारों के मुद्दे, व्यापार और मानवाधिकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सहयोग, और मानवीय सहायता और आपदा राहत पर भी चर्चा की.