नई दिल्ली : आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे गरीब बच्चे की कहानी, जिसने अपने बल बूते पर इतिहास रचा, जिसके घर में एक भी शौचालय नहीं था, जिसे तीन दिन तक बासी खाना खाना पड़ता था, जिसके पिता चाहते थे कि वो इस्लाम का स्कॉलर बने, लेकिन उसने कुछ अलग करने की सोची, मेहनत किया और अपनी हाथ की लकीरों को बदल दिया और बन गया भारतीय क्रिकेट का एक जाना माना नाम. जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज रह चुके इरफान पठान की. जिन्होंने गरीबी से उठकर ऐसा मुकाम हासिल किया कि लोगों के लिए प्रेरणा बन गए.
इरफान पठान भारत के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो 2007 टी20 वर्ल्ड कप के फाइनल में 'प्लेयर ऑफ द मैच' का अवॉर्ड जीत चुके हैं. टेस्ट मैच के पहले ही ओवर में 'हैट्रिक' लगा चुके हैं. यही वजह इरफान पठान को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कपिल देव के बाद सबसे महान ऑलराउंडर बनाती है. गुजरात के वडोदरा में जन्मे इरफान आज 38वां जन्मदिन मना रहे हैं.
इरफान पठान का बचपन
इरफान पठान ने बचपन में गेंद थामी तो आसपास के घरों के सबसे ज्यादा शीशे तोड़े. वडोदरा के नजरबाग पैलेस के करीब इस खिलाड़ी का पहला मैदान और पहला पवेलियन था. तीन-चार मिनट के रास्ते पर मस्जिद के पास ही उनका घर भी था. घर में शौचालय तक नहीं था. उस घर में दो बच्चे थे. एक इरफान पठान और दूसरा यूसुफ पठान. परेशानी ये थी कि दो बच्चों के पास एक ही साइकिल थी. उसी साइकिल से घर से स्कूल, स्कूल से ग्राउंड, ग्राउंड से अपने कोच के यहां और फिर वापस घर आने का सफर तय करना होता था. यूसुफ बड़े थे, तो उनकी धौंस चलती थी. वो खुद एक चक्कर चलाते थे और बाकी के तीन इरफान से चलवाते थे. साइकिल चलाकर इरफान के पैर तो मजबूत हुए ही, साथ ही उनके इरादे भी मजबूत हो गए.