बेंगलुरु : उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नई दिल्ली में दंगाइयों और हिंसा करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने की बुलडोजर राजनीति ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हालांकि घोषणा की है कि कर्नाटक में बुलडोजर की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है. फिलहाल कर्नाटक में बुलडोजर की राजनीति का कोई मुद्दा नहीं दिख रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह दक्षिणी राज्य में जल्द ही हकीकत बनने जा रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक बसवराज सुलिभवी ने कहा कि बुलडोजर राजनीति जैसे विकास को तभी रोका जा सकता है जब सभी ताकतें मिलकर इसके खिलाफ सांस्कृतिक लड़ाई लड़ें. उन्होंने कहा कि लेकिन हम विपक्ष में ऐसी एकता नहीं देख रहे हैं. अगर बीजेपी 2023 के आगामी विधानसभा चुनावों में सत्ता बरकरार रखती है, तो राज्य में बुलडोजर की राजनीति देखने को मिल सकती है.
हालांकि, कर्नाटक में कट्टर हिंदुत्व को लागू करना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि उसे पहले पार्टी के भीतर से विरोध का सामना करना पड़ता है. राज्य का सामाजिक ताना-बाना सामंजस्यपूर्ण जीवन है. हाल के दिनों में राज्य में सांप्रदायिक दरारों के बावजूद हिंदू और मुसलमान सद्भाव से रहते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने कोविड महामारी के दौरान तब्लीगी जमात को लेकर विवाद के बीच, अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना नहीं बनाने को कहा था और ऐसा करने वालों को कड़ी चेतावनी दी थी. येदियुरप्पा ने तो यहां तक कह दिया था कि हिंदुत्ववादी ताकतों को नफरत पैदा करने के लिए बख्शा नहीं जाएगा.
येदियुरप्पा ने भी कहा था कि केवल प्रधानमंत्री का नाम लेने से कर्नाटक में चुनाव जीतना संभव नहीं होगा. फिलहाल बोम्मई कह रहे हैं कि कर्नाटक में उत्तर प्रदेश या गुजरात मॉडल नहीं होगा. राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा पर लगाम लगाई, जो शिवमोग्गा में बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्ष की हत्या और हुबली में धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद भड़की थी.