दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

खाली कारतूस बढ़ा रहे शस्त्र विक्रेताओं की टेंशन, कब्जे में नहीं ले रहा प्रशासन, जानिए क्या है कारण - खाली कारतूसों का रख रखाव

कारतूसों के इस्तेमाल के बाद खोखो (Empty Cartridges control Maintenance) को शस्त्र विक्रेताओं के यहां जमा कराने का प्रावधान है. ये खोखे विक्रेता प्रशासन को सौंप देते हैं. गोरखपुर में कई सालों से यह काम बंद पड़ा हुआ है.

Etv Bharat
Etv Bharat

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 22, 2023, 7:35 PM IST

खोखो का स्टॉक भी मेनटेन रखना होता है.

गोरखपुर :गोली बंदूक की हो, राइफल की हो या रिवाल्वर की हो. फायर के बाद खोखे शस्त्र विक्रेताओं के पास जमा कराने का नियम है. जहां से इन गोलियों को खरीदा जाता है वहीं पर इनके खोखे भी जमा किए जाते हैं. इसके बाद शस्त्र विक्रेता इन खोखों को प्रशासन के सुपुर्द कर देते हैं. गोरखपुर में खाली खोखे पिछले करीब 8 सालों से दुकानों से प्रशासन की सुपुर्दगी में नहीं पहुंच रहे हैं, जबकि नए सिरे से 2014 में शासनादेश भी जारी हुआ था. तमाम दुकानदारों के वहां खोखे बोरियों और झोले में भरे पड़े हैं. उनके लिए इसे रखना और इनकी गिनता करना किसी मुसीबत से कम नहीं है.

प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान :शस्त्र विक्रेताओं का कहना है कि वह खाली खोखों का रख-रखाव एक निश्चित अवधि के लिए करते हैं. बाकी इसका निस्तारण प्रशासन के हाथ में होता है. प्रशासन इस मामले में मनमानी कर रहा है. शस्त्र के प्रभारी अधिकारी सिटी मजिस्ट्रेट जेपी दुबे का कहना है कि शासनादेश को नए सिरे से देखना होगा. उसके बाद ही दुकानदारों से खोखो को लेने पर प्रशासन निर्णय लेगा. गोरखपुर में शस्त्र की करीब 20 दुकानें हैं. यहां बंदूक या कोई भी शस्त्र जमा करने के साथ खाली खोखे भी जमा किए जाते हैं. शस्त्र का प्रतिमाह ₹200 शुल्क भी निर्धारित है, लेकिन खोखे की रखवाली की इन्हें कोई कीमत नहीं मिलती. जिन्होंने अपने शस्त्र जमा किए हैं, वे खाली खोखे भी जमा किए हैं. ये शस्त्र विक्रेताओं के यहां बोरियों में भरकर रखे गए हैं. इस समस्या से सभी शस्त्र विक्रेता परेशान हैं. हालांकि आवाज केवल ईस्टर्न एंपोरियम के प्रोपराइटर मोहम्मद तारिक ने उठाया है.

खाली कारतूसों का रख-रखाव मुश्किल भरा काम है.

रखवाली और गिनती जिम्मेदारी का काम :मोहम्मद तारिक ने बताया कि उन्हें खोखों को जमा करने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन लंबे समय तक दुकानों में इनके स्टॉक पड़े रहते हैं. इसकी रखवाली, सुरक्षा और काउंटिंग भी बड़ी जिम्मेदारी का काम है. प्रशासन जब जांच करता है तो उन्हें रजिस्टर को मेंटेन करके दिखाना होता है, जबकि वर्ष 2014 में नए सिरे से आदेश आया कि शस्त्र विक्रेताओं के वहां से खाली कारतूस को प्रशासन अपने सुपुर्दगी में लेगा. 7 जनवरी 2015 को तत्कालीन जिलाधिकारी संध्या तिवारी ने इसकी पहल भी कराई. दो चार दिनों तक खोखे शस्त्र लिपिक की देखरेख में जमा भी किए गए. उसके बाद यह कहकर बंद कर दिया गया कि, जब इसके लिए अलग से मालखाना बनेगा तो इसे जमा कराया जाएगा. प्रशासन को इसका रास्ता ढूंढना चाहिए.

एडीएम वित्त बोले-प्रशासन उठाएगा कदम :जिले में शस्त्र से संबंधित सभी दस्तावेज और निर्णय का अधिकार जिलाधिकारी के पास है, लेकिन उन्होंने जांच अधिकारी के तौर पर सिटी मजिस्ट्रेट और एडीएम फाइनेंस को इसकी जिम्मेदारी दे रखी है. समय-समय पर इन अधिकारियों द्वारा जांच-पड़ताल भी की जाती है. जांच में 2021 के दौरान कारतूसों के घोटाले भी सामने आए थे. कुछ दुकान अभी भी इसकी जद में हैं. मामला कोर्ट में है. खाली खोखे प्रशासन अपने कब्जे में नहीं ले पा रहा है. एडीएम फाइनेंस विनीत सिंह का कहना है कि ईटीवी भारत के जरिए मामला संज्ञान में आया है. इस पर विचार किया जा रहा है कि कैसे खोखो को प्रशासन अपने कब्जे में ले, और दुकानदारों की परेशानी भी कम हो सके.

यह भी पढ़ें :गोरखपुर विवि को नए कुलपति की तलाश, 67 सालों में किसी को नहीं मिली दोबारा वीसी की कुर्सी, जानिए क्यों?

राजकीय पक्षी सारस को भा रही गोरखपुर की आबोहवा, 3 साल में संख्या हुई दोगुनी

ABOUT THE AUTHOR

...view details