तिरुवनंतपुरम : बचपन में ही अपने माता-पिता द्वारा छाेड़ दिये जाने और नन्हीं सी उम्र में ढेराें मुश्किलाें का सामने करने वाले अभिजीत और अमृता की आंखों में मायूसी की एक झलक तक नहीं. वे जीवन में आने वाले चुनाैतियाें का सामने करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, साहस से भरे हुए हैं.
यह कहानी तिरुवनंतपुरम के पंचक्करा की है. 11 साल का अभिजीत सातवीं कक्षा का छात्र है. दाे वक्त की राेटी के लिए अभिजीत अपनी दादी सुधा के साथ साइकिल पर मछलियां बेचता है. जानकारी के अनुसार जब अमृता महज ढाई साल की थी और अभिजीत डेढ़ साल का था तब उन्हें उनके माता-पिता ने ही एक आंगनबाड़ी (किंडरगार्टन) में छोड़ दिया था. उनकी दादी सुधा को जब इस बात का पता चला ताे वाे अपने पाेते-पाेती को साथ ले आईं. वह ही उन बच्चाें की मां-बाप, दादा और दादी हैं. अपने पाेते-पाेती के लिए सुधा काे घर-घर भीख भी मांगनी पड़ी थी. सुधा स्वयं केंसर से पीड़ित हैं.
रिश्तेदाराें और बच्चाें के माता-पिता से किसी तरह की मदद नहीं मिलने पर अकेली सुधा ने बच्चों के पालन-पोषण के लिए कड़ी मेहनत की. हालांकि कोविड फैलने के कारण उन्हें अपनी चाय की दुकान बंद करनी पड़ी. तब उन्हाेंने मछलियां बेचने का काम शुरू किया. वे सुबह सात बजे विझिंजम से मछलियां खरीदकर पंचकारी जंक्शन पहुंचती हैं. अभिजीत साइकिल लेकर सुधा का इंतजार करता है, फिर वे घर-घर जाकर मछली बेचना शुरू करते हैं. सुधा ने बताया कि वे पिछले 15 साल से किराए के मकान में रह रहे हैं.