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प्रशांत किशोर क्या बन पाएंगे 2024 में किंगमेकर ? - प्रशांत किशोर

चर्चा है कि प्रशांत किशोर साल 2024 के चुनाव में मिली-जुली सरकार के किंगमेकर बनना चाहते हैं. कई लोग उन्हें 'विपक्षी एकता का सूत्रधार' भी बता रहे हैं. क्या सच में पीके बिखरे विपक्ष को एकजुट कर देंगे, इसका पता तो 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में ही चल जाएगा. अगर पीके इसमें कामयाब हो जाते हैं तो सही में वह भारतीय राजनीति के चाणक्य हो जाएंगे.

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Published : Jul 31, 2021, 4:55 PM IST

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल (West Bengal Election 2021) की 294 विधानसभा सीट के लिए 27 मार्च से मतदान शुरू होने वाला था. 10 मार्च 2021, चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पैर चोट आई. इससे पहले पश्चिम बंगाल में एक स्लोगन फेमस हो गया था- खेला होबे यानी खेल होगा. 2 मई को चुनाव के नतीजे आ गए और खेला हो चुका था. तृणमूल कांग्रेस 213 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी थी और ममता बनर्जी तीसरी बार सीएम बनना तय हो गया था.

इस जीत के साथ एक बार फिर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और उनकी आई-पैक (I-PAC) की टीम सफलता का स्वाद चख चुकी थी. इसके साथ तमिलनाडु में भी प्रशांत किशोर की रणनीति कामयाब रही और डीएमके सत्ता में लौटी.

प्रशांत किशोर 2019 में शिवसेना के लिए भी चुनावी रणनीति बना चुके हैं

पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में राजनीतिक हालात अलग थे. ममता बनर्जी के सामने एंटी इनकंबेंसी से लड़ने की चुनौती थी तो स्टालिन को एंटी इनकंबेसी को अपने पक्ष में करना था. प्रशांत किशोर एक साथ दोनों तरीकों से चुनावी रणनीति बना रहे थे. प्रशांत किशोर की खासियत थी उन्होंने एक साथ कई चुनावी रणनीति पर काम करते हैं. वह अपने विरोधियों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं, जिससे उनके क्लाइंट सेंटर स्टेज में आ जाते हैं. इसके बाद वह वोटर तक अपनी रणनीति के मुताबिक, वह सारे संदेश आसानी से पहुंचा देते हैं, जो विरोधियों को चित्त कर देती है.

एक्सपर्ट मानते हैं कि प्रशांत किशोर विपक्ष को कोसने के बजाय अपनी पॉजिटिविटी पर फोकस करते हैं. उनके एक्शन प्लान में पब्लिक कनेक्ट शामिल है.

  • बंगाल में उनकी टीम ने दीदीर के बोलो ( दीदी को बोलो), बांग्लार गोर्वो ममता ( बंगाल की गौरव ममता), दीदी 10 अंगीकार, द्वारे सरकार, बंगध्वनि यात्रा के जरिये लोगों के बीच गए.
  • 2020 के दिल्ली चुनाव में लगे रहो केजरीवाल, आप का रिपोर्ट कार्ड, टाउन हॉल, केजरीवाल की 10 गारंटी, मुहल्ला सभा प्रशांत और उनकी टीम का आइडिया था.
  • 2019 में आंध्र में जब जगन मोहन रेड्डी के लिए कमान संभाली तब नवरत्न सभालु, वाईएसआर कुटुम्बकम, प्रजा संकल्प यात्रा, वॉक विद जगन ( walk with Jagan) जैसे कार्यक्रम किए.
  • 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में पंजाब दा कैप्टन, कॉफी विद कैप्टन, कैप्टन किसान यात्रा, हर घर तो एक कैप्टन जैसे कैंपेन ने भी धमाल मचाया था.
  • 2015 के बिहार चुनाव में भी हर घर दस्तक, नीतीश के 7 निश्चय, स्वाभिमान रथ काफी हिट रहा.
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में चाय पर चर्चा, नरेंद्र मोदी की 3डी रैली, मंथन जैसे आइडियाज पर पीके ने काम किया.
    चुनावी रणनीतिकार के तौर पर पीके ने 2011 में गुजरात से अपना सफर शुरू किया. तब वह बीजेपी के लिए काम करते थे

प्रशांत किशोर की स्ट्रैटजी और आई पैक ( I-PAC) :गुजरात विधानसभा में बीजेपी की जीत के बाद 2013 में प्रशांत किशोर ने कैग ( citizen for accountable governance) नाम की संस्था बनाई. 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद पीके को लोग जानने लगे. 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कैग के साथियों के साथ आई पैक ( I-PAC) की नींव रखी. इसके बाद से उन्होंने इस टीम के साथ 8 राज्यों में अलग-अलग दलों के लिए इलेक्शन स्ट्रैटजी बनाई. प्रशांत सभी विचारधारा की पार्टियों के साथ काम कर चुके हैं.

सिर्फ विज्ञापन डिजाइन नहीं करता है आई-पैक :आई-पैक जब किसी पार्टी के लिए काम शुरू करती है तो सबसे पहले उस राज्य में एक ऑफिस बनाती है. प्रशांत की टीम राज्य में सर्वे करती है और पब्लिक कनेक्ट कैंपेन के लिए जनता का मूड भांपती है. यह टीम सिर्फ विज्ञापन डिजाइन और नारे गढ़ने तक सीमित नहीं होती. स्ट्रैटजी से जुड़े मेंबर चुनावी क्षेत्रों के गणित जुटाते हैं. फिर टीम एनजीओ और अन्य संगठनों से वॉलंटियर को अपने साथ जोड़ते हैं, जो उनके लिए इन्फ्लूएंसर का काम करते हैं. तमिलनाडु चुनाव में उनकी कोर टीम के करीब 800 लोग काम कर रहे थे, जबकि वहां उन्होंने 3500 इन्फ्लूएंसर बनाए थे.

सोशल मीडिया से जुड़े टीम मेंबर अपने क्लाइंट के लिए जंग छेड़ती है. बताया जाता है कि प्रशांत अपने क्लाइंट को टिकट बांटने में भी सलाह देते हैं. साथ ही वह पार्टी के रूटीन काम में भी दखल देते हैं. इस कारण उन्हें पार्टी नेताओं की खरी-खोटी भी सुननी पड़ती है.

गठबंधन कराने में रोल निभाते हैं पीके ! :प्रशांत किशोर चुनाव में न सिर्फ कैंपेन डिजाइन करते हैं बल्कि गठबंधन की शक्ल-सूरत भी तय करते हैं. 2015 के बिहार चुनाव में आरजेडी-जेडी (यू ) से इसकी शुरुआत हुई. यह भी माना जाता है कि महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को साथ लाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को एक प्लैटफॉर्म पर लाए, हालांकि तब उन्हे चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली. अभी केंद्र में सारे विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. ममता बनर्जी की सोनिया-राहुल समेत विपक्ष के अन्य नेताओं से मुलाकात के बाद यह चर्चा चल रही है कि यह 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पीके की रणनीति है. चूंकि वह कई दलों के नेताओं के लिए काम कर चुके हैं इसलिए हर पार्टी के बड़े नेता उनकी फ्रेंड लिस्ट में शामिल हैं.

2018 में प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष बने थे, 2020 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी

क्या एक्टिव पॉलिटिक्स को ज्वाइन करेंगे :बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने खुद को चुनावी रणनीतिकार के तौर पर रिटायर घोषित कर दिया. इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि वह खुद एक्टिव पॉलिटिक्स में दोबारा सक्रिय होने वाले हैं. 2015 में बिहार विधानसभा के बाद सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें जेडी (यू) का उपाध्यक्ष बनाया था. मगर 2020 से पहले उनका मतभेद हो गया और उन्होंने जेडी (यू) से दूरी बना ली. चर्चा है कि तृणमूल कोटे ने बंगाल से राज्यसभा भेजने का ऑफर दिया है. पर क्या पीके इसे स्वीकार करेंगे, यह स्पष्ट नहीं है. करीबी बताते हैं कि अभी वह 2024 लोकसभा चुनाव में बड़े रोल की तैयारी कर रहे हैं.

व्यक्तिगत परिचय :1977 में पैदा हुए प्रशांत किशोर यूनाइटेड नेशन में 8 साल तक पॉलिटिकल स्ट्रैटिज्ट के तौर पर काम कर चुके हैं. मूल रूप से वह बिहार के रोहतास के हैं मगर उनके पिता डॉ. श्रीकांत पांडेय बक्सर में शिफ्ट हो गए . पीके की पढ़ाई बक्सर में हुई. चुनाव में जीत के बाद से उन्हें पीके के तौर पर जानते हैं.

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