नई दिल्ली : उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों के बाद बीजेपी ने राहत की सांस ली है. साथ ही केंद्र में बैठे बीजेपी नेताओं की 2024 में जीत की आस जगा दी है. किसान आंदोलन और महंगाई के साये में हुए विधानसभा चुनाव के रिजल्ट कई मायनों में हैरत भरी रही. पश्चिम यूपी में भगवा पार्टी को उतना अधिक नुकसान नहीं हुआ, जितनी किसान आंदोलन के दौरान आशंका जताई जा रही थी. खबर लिखे जाने तक यूपी में बीजेपी ने 260 सीटों पर कब्जा किया. अखिलेश यादव के जोरदार प्रचार और रणनीति की बदौलत समाजवादी पार्टी ने पिछले चुनाव के मुकाबले सीटें तीन गुनी कर ली. मगर उसे 137 सीटों से संतोष करना पड़ा. बीएसपी फिर अपना जनाधार नहीं बचा पाई उसके खाते में महज 1 सीटें आईं. कांग्रेस भी दहाई का आंकड़ा नहीं छू सकी और उसे 3 सीट से संतोष करना पड़ा.
हालांकि इस चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में आरएलडी के युवा नेता जयंत चौधरी (jayant chaudhary) को भी थोड़ी राहत मिल गई. वह जाट नेता और अजित सिंह के उत्तराधिकारी के तौर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहे. मगर सपा को गठबंधन भी फायदा हुआ. वेस्टर्न यूपी के जाटलैंड कहे जाने वाले छह जिलों में आरएलडी ने स्थिति मजबूत हुई. 2017 में आरएलडी को महज एक सीट मिली थी. मगर इस बार पार्टी ने परंपरागत गढ़ मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ में सीटें जीत लीं. हालांकि किसान आंदोलन के कारण जबर्दस्त विरोध के बीच बीजेपी ने पश्चिमी यूपी में भी बढ़त हासिल की. मुजफ्फरनगर जिले की 6 सीटों में 4 पर भाजपा दो पर राष्ट्रीय लोकदल ने कब्जा किया. बिजनौर की 8 सीटों में से 1 पर भाजपा और 7 पर सपा ने बाजी मारी. मेरठ की 7 सीटों में 5 सीट पर भाजपा और 2 पर गठबंधन की बढ़त मिली. शामली में 3 सीटों पर रालोद ने जीत दर्ज कर ली. बागपत में तीन में एक सीट पर भाजपा, दो पर रालोद ने जीत दर्ज की. सहारनपुर में 7 सीटों मे 2 पर भाजपा और 5 पर सपा गठबंधन आगे रहा.
नतीजों के आधार पर यह सामने आया कि पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन और जाटों को गुस्से का असर रहा. हालांकि मुस्लिम वोटरों के एकतरफा वोटिंग की चर्चा के बाद वोटों का ध्रुवीकरण पूरे उत्तरप्रदेश में हुआ. वेस्टर्न यूपी भी इससे अछूता नहीं रहा, इसलिए वहां बीजेपी काफी हद तक वोटों के ध्रुवीकरण में सफल हो गई. बीएसपी का वोट बैंक खुले तौर से बीजेपी के साथ चला गया. बहुजन समाजवादी पार्टी के वोटर रहे जाटव वोटरों ने भी बीजेपी का साथ दिया. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती के समर्थक अपनी पार्टी को भले ही जीत नहीं दिला पाए, मगर समाजवादी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा गए. बीएसपी के मुस्लिम कैंडिडेट ने अल्पसंख्यक वोटरों को प्रभावित किया. अगर रालोद और समाजवादी पार्टी गठबंधन ने मुस्लिम कैंडिडेट के बजाय जाट बिरादरी पर दांव लगाया होता तो कई सीटें उनके खाते में आ सकती थीं.