देहरादून: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की 29 में 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. हालांकि बीजेपी के लिए ये दुखद रहा कि सीएम पुष्कर सिंह धामी खटीमा से हार गए हैं. कांग्रेस को 10 सीटें मिली हैं. उधर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी लालकुआं सीट से हार गए. 2017 में कुमाऊं में बीजेपी ने 23 सीटें जीती थी.
देहरादून: BJP ने उत्तराखंड में सत्ता में वापसी कर ली है. बीजेपी ने 70 में से सीटें जीतकर इस मिथक को तोड़ दिया कि उत्तराखंड में सरकारें रिपीट नहीं होती हैं. हालांकि बीजेपी को पिछली बार की 57 सीटों के मुकाबले इस बार सीटें मिली हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगले पांच साल तक पार्टी फिर सरकार चलाएगी.
बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें जीतीं
उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें बीजेपी ने जीत ली हैं. बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया. अभी अल्मोड़ा सीट का रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है. अल्मोड़ा जिले की जिन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी जीते उनके बारे में आपको बताते हैं.
द्वाराहाट से लेकर सल्ट तक बीजेपी जीती
अपने मंदिर समूहों के लिए विश्व प्रसिद्ध द्वाराहाट सीट पर बीजेपी के अनिल शाही ने कांग्रेस के मदन बिष्ट को शिकस्त दी. अल्मोड़ा के जिला मुख्यालय रानीखेत सीट पर बीजेपी के प्रमोद नैनवाल ने कांग्रेस के करन महरा को हरा दिया. सोमेश्वर सीट पर बीजेपी की तेज तर्रार नेता और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने कांग्रेस के राजेंद्र बाराकोटी को परास्त किया.
सल्ट विधानसभा सीट पर बीजेपी के महेश जीना ने कांग्रेस के बाहुबली रणजीत रावत को शिकस्त दी. भगवान शिव के धाम से प्रसिद्ध जागेश्वर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मोहन सिंह मेहरा ने कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल को परास्त कर दिया. कुंजवाल 2012 की कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे थे.
बागेश्वर में भी बीजेपी का क्लीन स्वीप
अल्मोड़ा के पड़ोसी जिले भगवान बागनाथ की नगरी बागेश्वर में भी बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर दिया. इस जिले में विधानसभा की दो सीट हैं. दोनों सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जिले की कपकोट सीट पर बीजेपी के सुरेश गड़िया ने कांग्रेस के ललित मोहन फर्स्वाण को मात दी है. बागेश्वर सीट पर बीजेपी के चंदन राम दास ने कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत दास को हराया.
चंपावत की सीटें बीजेपी-कांग्रेस ने बांटीं
चंपावत जिले की दो विधानसभा सीटें बीजेपी और कांग्रेस ने आपस में बांट ली हैं. जिले की लोहाघाट सीट पर कांग्रेस के खुशाल सिंह अधिकारी ने बीजेपी के पूरन सिंह फर्त्याल को हरा दिया है. वहीं चंपावत सीट पर बीजेपी के कैलाश गहतोड़ी ने कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल को शिकस्त दी.
नैनीताल में भी बीजेपी का टैंपो हाई
नैनीताल जिले की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर बीजेपी का परचम लहराया है. नैनीताल सीट से बीजेपी की प्रत्याशी सरिता आर्य ने कांग्रेस के संजीव आर्य को तगड़ी शिकस्त दी है. ये वही सरिता आर्य हैं जिन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था. तब सरिता कांग्रेस की महिला प्रदेश अध्यक्ष थीं. जब यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव ने कांग्रेस में वापसी की और ये तय हो गया कि संजीव आर्य को कांग्रेस नैनीताल से टिकट देगी तो सरिता ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. बीजेपी ने भी लगे हाथ सरिता आर्य को नैनीताल सीट से टिकट दिया और आज सरिता आर्य ने बीजेपी के निर्णय को जीत के साथ सही ठहरा दिया है.
भीमताल से भाजपा प्रत्याशी राम सिंह कैड़ा ने कांग्रेस प्रत्याशी दान सिंह भंडारी को शिकस्त दी है. हल्द्वानी से कांग्रेस के सुमित हृदयेश ने भाजपा प्रत्याशी जोगेन्द्र रौतेला को हराया है. सुमित कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं इंदिरा हृदयेश के बेटे हैं. इंदिरा हृदियेश का 2021 में देहांत हो गया था. उनकी हल्द्वानी सीट से कांग्रेस ने उनके बेटे सुमित को उम्मीदवार बनाया था.
लालकुआं के बादशाह बने मोहन सिंह बिष्ट
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में नैनीताल जिले की लालकुआं सीट सबसे हॉट सीट बन गई थी. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव लड़ रहे थे. लालकुआं से भाजपा ने मोहन सिंह बिष्ट को प्रत्याशी बनाया था. हरीश रावत के राजनीतिक ग्लैमर के आगे उनकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही थी. लेकिन आज जब मतगणना शुरू हुई तो हरीश रावत शुरू से ही पीछे रहे. अंत में मोहन सिंह बिष्ट ने हरीश रावत को शिकस्त देकर उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया.
कालाढूंगी में कैबिनेट मंत्री बंशीधर जीते
कालाढूंगी से भाजपा प्रत्याशी बंशीधर भगत ने कांग्रेस के महेश शर्मा को हरा दिया. बंशीधर भगत उत्तराखंड बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. अभी वो धामी सरकार में 5 विभागों के कैबिनेट मंत्री थे. रामनगर सीट से बीजेपी के दीवान सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के महेंद्र पाल हरा दिया है. रामनगर वही सीट है जहां से पहले हरीश रावत चुनाव लड़ने वाले थे. रणजीत रावत से विवाद के बाद हरीश रावत को लालकुआं से टिकट दिया गया था. उधर रणजीत रावत को सल्ट भेज दिया गया था.
पिथौरागढ़ में 50-50
पिथौरागढ़ की चार विधानसभा सीटों में से बीजेपी और कांग्रेस ने 2-2 सीटें जीतकर मामला 50-50 रखा है. जिले की धारचूला सीट पर बीजेपी के धन सिंह धामी कांग्रेस के हरीश सिंह धामी से चुनाव हार गए. डीडीहाट सीट पर कैबिनेट मंत्री और बीजेपी के बिशन सिंह चुफाल ने कांग्रेस के प्रदीप पाल सिंह को हरा दिया. पिथौरागढ़ सीट पर कांग्रेस के मयूख महर ने बीजेपी की चंद्रा पंत को हरा दिया है. चंद्रा पंत दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी हैं. प्रकाश पंत के निधन के बाद बीजेपी ने चंद्रा पंत को उप चुनाव में उतारा था. तब चंद्रा ने जीत हासिल की थी. 2022 के चुनाव में चंद्रा पंत को हार मिली है. गंगोलीहाट सीट से बीजेपी के फकीर राम ने कांग्रेस के खजान चंद्र गुड्डू को हरा दिया है.
उधम सिंह नगर ने बचाई कांग्रेस की लाज
कुमाऊं मंडल के मैदानी जिले उधम सिंह नगर की 9 में से 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. 4 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जसपुर सीट पर कांग्रेस के आदेश सिंह चौहान ने बीजेपी के शैलेंद्र मोहन सिंघल को हरा दिया. किच्छा सीट पर कांग्रेस के तिलकराज बेहड़ ने बीजेपी के राजेश शुक्ला को शिकस्त दी है. नानकमत्ता सीट पर कांग्रेस के गोपाल सिंह राणा ने बीजेपी के प्रेम सिंह राणा को हराया है.
सीएम धामी खटीमा से हारे
CM धामी को खटीमा सीट पर कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी ने हरा दिया. धामी पिछली दो बार से यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार तो वो मुख्यमंत्री के रूप में खटीमा से चुनाव मैदान में थे. इसके बावजूद धामी चुनाव हार गए. हालांकि धामी की हार के बावजूद बीजेपी ने बंपर मैंडेट हासिल किया है.
बाजपुर से यशपाल आर्य जीते
जिले की बाजपुर सीट से कांग्रेस के यशपाल आर्य जीत गए हैं. यशपाल आर्य ने बीजेपी के राजेश कुमार को शिकस्त दी है. यशपाल आर्य ठीक चुनाव से पहले बीजेपी सरकार का कैबिनेट पद ठुकराकर अपने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. हालांकि संजीव आर्य नैनीताल सीट से चुनाव हार गए हैं.
काशीपुर से जीते त्रिलोक सिंह चीमा जीते
उधम सिंह नगर की हाई प्रोफाइल सीट काशीपुर पर चीमा परिवार का कब्जा बरकरार रहा. पिछली चार बार से हरभजन सिंह चीमा यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार उन्होंने अपने बेटे त्रिलोक को टिकट दिलाया. त्रिलोक ने पहले चुनाव में ही जीत का स्वाद चख लिया. चीमा ने कांग्रेस के नरेंद्र चंद्र सिंह को हराया.
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीते
जिले की गदरपुर सीट से उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीत गए. अरविंद पांडे ने कांग्रेस के प्रेमानंद महाजन को शिकस्त दी. पांडे ने ये मिथक भी तोड़ा कि उत्तराखंड में कोई शिक्षा मंत्री अपने पद पर रहते हुए चुनाव नहीं जीत सकता है. रुद्रपुर सीट पर भी बीजेपी का कब्जा हुआ. यहां से बीजेपी के शिव अरोड़ा जीते हैं. अरोड़ा ने बीजेपी के बागी और निर्दलीय चुनाव लड़े राजकुमार ठुकराल को हराया.
सितारगंज से जीते सौरभ बहुगुणा
जिले की सितारगंज सीट से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा ने भगवा झंडा लहराया है. सौरभ ने कांग्रेस के नवतेज पाल सिंह को शिकस्त दी है. इसके साथ ही सौरभ बहुगुणा ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ओर कदम बढ़ाया है.
कुमाऊं में हुए ये उलटफेर
इस बार कुमाऊं ने बीजेपी को 18 सीटें जिताकर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचाया तो यहां दो बड़े उलटफेर भी हुऐ हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी खटीमा सीट से चुनाव हार गए. धामी का हार अप्रत्याशित थी. वो पिछली दो बार से खटीमा से चुनाव जीतते आ रहे थे. लेकिन खटीमा के मतदाताओं ने उन्हें जीत की हैट्रिक लगाने से रोक दिया. उनकी हार में किसान आंदोलन को कारण माना जा रहा है. उधम सिंह नगर जिले में 3.72 लाख मुस्लिम आबादी भी है. ऐसा अनुमान है कि ज्यादातर सिख और मुस्लिम वोटरों ने धामी को वोट नहीं दिया, इस कारण वो चुनाव हार गए.
हरीश रावत भी चारों खाने चित
काफी माथापच्ची के बाद हरीश रावत ने आखिरी समय में लालकुआं सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. तब तक पार्टी संध्या डालाकोटी को टिकट दे चुकी थी. हरीश रावत लालकुआं आए तो संध्या का टिकट काट दिया गया. इससे नाराज होकर संध्या ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. इसे हरीश रावत की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है.
कुमाऊं में ऐसे मिली जीत
कुमाऊं में बीजेपी ने इस बार के चुनाव में पूरी ताकत झोंकी थी. पीएम मोदी की कुमाऊं के हल्द्वानी, अल्मोड़ा और रुद्रपुर में तीन बड़ी रैलियां हुई थीं. अल्मोड़ा में पीएम की रैली से बीजेपी ने अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के साथ नैनीताल जिले को कवर किया था. हल्द्वानी कुमाऊं का प्रवेश द्वार है. यहां पीएम मोदी की रैली ने उधम सिंह नगर, चंपावत और नैनीताल जिले के दूर-दराज के इलाकों पर असर डाला. रुद्रपुर में पीएम की रैली ने भी असर डाला. उधम सिंह नगर जिला सिख बहुल जनसंख्या वाला जिला है. यहां किसान आंदोलन का तगड़ा असर देखा जा रहा था. राजनीतिक पंडितों का ये मानना था कि उधमसिंह नगर जिले में बीजेपी को शायद ही सीटें मिलें. लेकिन बीजेपी यहां से चार सीटें लाने में सफल रही. हालांकि सीएम धामी की खटीमा सीट बीजेपी गंवा बैठी.
2017 के चुनाव में प्रदर्शन
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने सारे रिकॉर्ड नेस्तनाबूद कर दिए थे. प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की 57 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई थी. इस दौरान मोदी लहर ने विपक्षियों की जड़ें हिला दी थी. 57 सीट लाने वाली भाजपा को कुमाऊं के लोगों का भी खूब आशीर्वाद मिला था. पिछले विधानसभा चुनाव की मोदी लहर में भाजपा कुमाऊं में 23 सीटें जीतकर लाई और कांग्रेस की झोली में केवल 5 सीटें ही गिरीं. एक सीट निर्दलीय भीमताल से राम सिंह खेड़ा जीत कर ले गए थे. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लाने वाली भाजपा का वोट परसेंट बढ़कर 46.51% हो गया तो वहीं 11 के आंकड़े पर सिमटी कांग्रेस का वोट परसेंट 33.49% हो गया.
2012 के चुनाव में प्रदर्शन
2012 के चुनाव में बीजेपी ने कुमाऊं मंडल में 15 सीटें जीती थी. उस समय कांग्रेस को 13 सीटों मिली थीं. कुमाऊं से 13 सीटें जीतकर भी कांग्रेस ने उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाई थी. इससे पहले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2007 में कुमाऊं में बीजेपी ने 16 सीटें जीती थी. कांग्रेस को सिर्फ 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. तब बीजेपी की सरकार बनी थी. कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार को उत्तराखंड के मतदाताओं ने वापसी का मौका नहीं दिया था.
2002 का प्रदर्शन
2002 में उत्तराखंड में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. बीजेपी को उम्मीद थी कि उसे राज्य बनाने का लाभ मिलेगा और जनता फिर उनकी सरकार बनाएगी. लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई थी. तब कांग्रेस ने कुमाऊं से 15 सीटें जीती थी. बीजेपी को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. यूकेडी को तीन और बीएसपी को 2 सीटें मिली थीं. निर्दलीय भी दो सीट जीते थे.
गढ़वाल मंडल में सीटों का समीकरण देखें तो कुछ हद तक देहरादून और पूरा हरिद्वार जिला मैदानी है. इन दोनों जिलों में मिलाकर 21 विधानसभा सीटें हैं. बाकी 5 जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में 20 विधानसभा सीटें हैं. इन सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही हार-जीत के मुख्य समीकरण तय करते हैं. इस चुनाव में गढ़वाल मंडल में 391 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया. जिसमें से भाजपा ने 65% से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी मैदान में उतरा था. वहीं, कांग्रेस ने भी करीब इतने ही प्रतिशत ठाकुर और ब्राह्मण जाति के नेताओं को प्रत्याशी बनाया था. लेकिन इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल में बीजेपी प्रत्याशियों ने कांग्रेस के प्रत्याशियों को पछाड़ा है.
वहीं, इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल को लेकर कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं रहीं थी. कांग्रेस ने हरीश रावत और दूसरे समीकरणों के चलते खुद को कुमाऊं में मजबूत माना और इसको लेकर कुमाऊं में ज्यादा मेहनत की. लेकिन हरीश रावत को लालकुआं विधानसभा के करारी शिकस्त मिली. वहीं, बीजेपी ने भी गढ़वाल में खुद को मजबूत मानते हुए कुमाऊं पर अधिक जोर दिया. हालांकि, सीएम धामी खटीमा विधानसभा से चुनाव हार गए.
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में ही चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) है. कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में चारधाम का ही नारा दिया है और उन्होंने चारधाम चार काम के नाम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की लेकिन बीजेपी हिंदुत्व की लाइन पर चलती रही, लिहाजा गढ़वाल मंडल में अपने इसी एजेंडे के तहत बीजेपी खुद को मजबूत मानती रही और गढ़वाल मंडल में इस बार 29 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते.
ओवरओल देखा जाए तो गढ़वाल मंडल में 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है. जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर बीजेपी बढ़त बनाने में कामयाब रही और गढ़वाल की 41 सीटों में से 29 सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. जबकि, पिछले चुनाव में बीजेपी ने गढ़वाल मंडल से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार कांग्रेस ने गढ़वाल मंडल में 8 सीटें हासिल की है. जबकि, बसपा को दो और दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है.
मुस्लिम और दलित आबादी का गठजोड़
उत्तराखंड में धार्मिक रूप से जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो राज्य में 83% हिंदू, 14% मुस्लिम और 2.4% सिख आबादी है. गढ़वाल मंडल में 41 विधानसभा सीटों में करीब 12 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित गठजोड़ चुनाव जीतने के लिए बेहद अहम है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में करीब 15% मुस्लिम वोटर हैं. इसमें 8 विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले की हैं. जबकि, 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले की हैं और एक विधानसभा सीट पौड़ी की है. हालांकि, मुस्लिम और दलित आबादी बाकी विधानसभा सीटों में भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में दोनों का गठजोड़ इन12 सीटों पर महत्वपूर्ण रहता है.
वहीं, उत्तराखंड में 13 विधानसभा सीटें में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि 2 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें 13 आरक्षित सीटों में 8 विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं. जबकि 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट भी गढ़वाल मंडल में है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 18% दलित वोटर हैं.
ऐसे में इस बार हरिद्वार जिले में बीजेपी को पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. जहां 2017 के चुनाव में बीजेपी ने हरिद्वार जिले में आठ सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार बीजेपी को तीन सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा है. इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है.
इस विधानसभा चुनाव में हरिद्वार जिले 11 विधानसभा सीटों में इस बार बीजेपी ने केवल तीन ही सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि, पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. वहीं, इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर चुनाव जीतने में बसपा प्रत्याशी कामयाब हुए हैं. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज कराई है.