नई दिल्ली : पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा बढ़ा दी. 2022 में बड़े राज्यों के विधानसभा प्रत्याशी 40 लाख रुपये तक खर्च कर सकेंगे. अब तक यह खर्च सीमा 28 लाख थी. छोटे राज्यों के प्रत्याशी भी 28 लाख रुपये चुनाव प्रचार में खर्च कर सकते हैं. बड़े राज्यों में लोकसभा चुनाव के दौरान क्षेत्र के प्रत्याशी 70 लाख के बजाय अब 95 लाख रुपये खर्च कर सकेंगे. छोटे राज्यों में लोकसभा क्षेत्र में खर्च की सीमा 75 लाख रुपये कर दी गई है. यह खर्च प्रत्याशियों की है. चुनाव के इंतजाम के लिए सरकार जो खर्च करती है, वह इससे अलग है.
चुनाव आयोग की सांकेतिक तस्वीर इस नियम के हिसाब से गोवा के सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 301 उम्मीदवार कुल मिलाकर 84 करोड़ 28 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के फर्स्ट फेज के लिए अब कुल 623 उम्मीदवार मैदान में हैं. नियम के मुताबिक ये सभी 40-40 लाख रुपये आधिकारिक तौर से चुनाव लड़ने के लिए खर्च कर सकते हैं. 2 अरब 49 करोड़ 20 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं. पंजाब में भी करीब 600 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इस हिसाब से वहां के उम्मीदवारों के पास कुल 2 अरब 40 करोड़ रुपये खर्च करने का अधिकार है. ये सभी आंकड़े आधिकारिक हैं, खर्च को चुनाव आयोग बाद में जांच करता है. इस खर्च की सीमा के अधिक होने के बाद चुनाव आयोग उम्मीदवारी पर सख्त फैसला कर सकता है.
1957 के बाद निर्वाचन आयोग का चुनाव खर्च बढ़ गया. वोटर जागरुकता अभियान, तकनीकी बदलाव और सुरक्षा व्यवस्था के कारण उसके खर्च में इजाफा हुआ. 2017 में यूपी में प्रत्याशियों ने खर्च किए थे 5500 करोड़ रुपये
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के पहले और बाद में सीएमएस ने एक सर्वे किया था, तब यह सामने आया कि अकेले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2017 में बड़े राजनीतिक दलों ने 5500 करोड़ रूपये खर्च किए थे. उस समय खर्च की सीमा 28 लाख रुपये थी. नोटबंदी के बाद हुए चुनाव में राजनीतिक दलों ने प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक सामग्री पर ही 600-900 करोड़ रूपये खर्च किए थे. निर्दलीयों उम्मीदवारों का खर्च इससे अलग था. सर्वे में यह अनुमान लगाया कि 2017 में दिए गए हर वोट की कीमत औसतन 750 रुपये थी. निर्वाचन आयोग के अनुसार, 2017 के पंजाब विधानसभा के जीते 117 विधायकों ने आधिकारिक तौर से औसतन 15.34 लाख रुपये खर्च किए थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने आम चुनाव की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 3870.34 करोड़ रुपये खर्च किए थे. यह उम्मीदवारों के खर्च के अतिरिक्त था. 2009 में आयोग ने 1114.38 करोड़ रुपये खर्च आम चुनाव संपन्न करा लिए थे. 1952 के पहले आम चुनाव में आयोग ने 10 करोड़ 45 लाख रुपये खर्च किए थे. 1957 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने सिर्फ पांच करोड़ 90 लाख रुपये खर्च किए थे.
मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद टी एन शेषण ने पहली बार चुनाव आयोग को ताकतवर बनाया. उनके बाद एम एस गिल ने चुनाव सुधार को आगे बढ़ाया. टी एन शेषण ने पहली बार मांगा था चुनाव खर्च का लेखाजोखा
चुनाव खर्च का प्रावधान देश के पहले आम चुनाव से तय है. 1951-1952 में हुए पहले लोकसभा चुनावों में बड़े राज्यों में प्रति उम्मीदवार खर्च करने की सीमा सिर्फ 25,000 रुपये थी. छोटे राज्यों के लिए यह राशि 10 हजार थी. 1984 में इसे रिवाइज किया गया, तब बड़े राज्यों में लोकसभा क्षेत्र में चुनाव खर्च की सीमा 1.5 लाख रुपये तय की गई, छोटे राज्यों में हर उम्मीदवार को एक लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति थी. मगर यह लिमिट कागजों में ही दर्ज रही. फिर टी एन शेषण 1990 में भारत के दसवें चुनाव आयुक्त बने. 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 के बीच उन्होंने भारत में चुनाव सुधार लागू किए. इसके तहत चुनाव में बेलगाम खर्च पर प्रतिबंध लगाया गया. टीएन शेषन ने चुनाव खर्च की सीमा और उम्मीदवारों को जांच के लिए अपने खर्चों का पूरा लेखा-जोखा देने का प्रावधान लागू किया.
चुनाव के दौरान राजनीतिक दल रैलियों का आयोजन करते हैं. इससे जुड़ा खर्च का हिसाब थोड़ा अलग है. - इसके अलावा रैलियों का कैंडिडेट के खर्च भी जुड़ता है. स्टार प्रचारकों का यात्रा खर्च उम्मीदवार के खाते में नहीं जुड़ता है. मगर स्टार प्रचारक के साथ कैंडिडेट या उनके कार्यकर्ता यात्रा करते हैं तो वाहन, हेलीकॉप्टर या हवाई जहाज के कुल खर्च का पचास फीसदी हिस्सा उस उम्मीदवार के चुनाव खर्च में जुड़ जाता है.
- यदि कोई कैंडिडेट या उनके निर्वाचन एजेंट सार्वजनिक रैली, जनसभा या बैठक में स्टार प्रचारक के साथ मंच साझा करेंगे तो स्टार प्रचारक की यात्रा का खर्च भी उसके खाते में जोड़ा जाएगा.
- रैली या जनसभा में यदि कैंडिडेट के नाम के बैनर, पोस्टर या फोटो लगा होगा या स्टार प्रचारक बकायदा नाम लेकर वोट मांगेगे तो खर्च उम्मीदवार के खाते में जुड़ेगा.
- यदि स्टार प्रचारक की रैली में एक से अधिक उम्मीदवार मंच साझा करेंगे तो उनपर होने वाले खर्च को उन सभी कैंडिडेट के बीच समान रूप से बांटा जाएगा.
चुनाव आयोग की तरफ से हर छोटी से छोटी चीज के रेट तय हैं, जिसके हिसाब से प्रत्याशी का चुनाव खर्च जुड़ता है.
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