नई दिल्ली :देश में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इसको लेकर चुनाव आयोग पर उंगलियां उठ रही हैं. इस मामले पर ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम से बातचीत की है.
देश रतन निगम ने कहा कि जब भारत में इलेक्शन अनाउंस हुए थे तो उस समय स्थिति काफी सुधर चुकी थी और महामारी नियंत्रण में थी. उन्होंने कहा कि लोगों को यह याद होना चाहिए कि अमेरिका में जब कोरोना की लहर बहुत भयानक थी तब वहां राष्ट्रपति का चुनाव हुआ था. यह कुछ चीजें ऐसी है जो हमारे संविधान में दी गई है कि उस नियत वक्त के तहत ही कराना है और उसे लोकतंत्र में संवैधानिक तौर पर हम टाल नहीं सकते हैं. हालांकि अभी तक ऐसा कोई डाटा नहीं आया है कि रैली इसकी वजह से महामारी बढ़ी है.
देश रतन निगम के मुताबिक जहां तक हमने देखा कि चुनाव आयोग समय-समय पर चुनाव और रैलियों से संबंधित दिशा निर्देश जारी करता रहा और रैलियों में भी लोग मास्क लगाकर आए लेकिन जब संख्या बहुत ज्यादा होती है तो भीड़ में प्रोटोकॉल को नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन यदि हम कोरोना के बढ़ते हुए मरीजों को देखें तो इस महामारी की बढ़त उन राज्यों से नहीं हुई है जहां चुनाव या रैलियां हो रही थी बल्कि महाराष्ट्र, दिल्ली और केरल में महामारी की दूसरी लहर अनियंत्रित हुई.
देश रतन निगम ने कहा कि यहां तक कि लोगों ने तो कुंभ को भी इस महामारी को फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया. लेकिन वास्तविकता यह है कि उत्तराखंड सरकार ने कुंभ में भी बहुत सारे एतिहात बरते. सारे घाट सेनिटाइज किए जाते थे लेकिन हां जब शाही स्नान होते थे तब भीड़ को नियंत्रण में करना थोड़ा मुश्किल था. लेकिन इससे इतना ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है कि यह बढ़ती महामारी की वजह बन जाए.
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राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का कहना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट एक्सपर्ट नहीं है. सरकार के पास एक प्लान है और सरकार उसी प्लान के तहत इस महामारी को नियंत्रण में करने के लिए काम कर रही है. सरकार टास्क फोर्स तैयार कर चुकी है और वह विशेषज्ञों का टास्क फोर्स है. सुप्रीम कोर्ट ऐसी टिप्पणी कर सकता है लेकिन उसने अपने फैसले में यह नहीं लिखा. जहां तक बात मद्रास हाईकोर्ट की है या कोलकाता हाईकोर्ट की है सभी ने टिप्पणी की है लेकिन कहीं भी फैसले में यह नहीं लिखा गया कि कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है.
देश रतन निगम के अनुसार जब चुनाव आयोग को ऐसा लगा कि रैलियों से मामले बढ़ रहे हैं तो इलेक्शन कमीशन ने तुरंत पाबंदी लगा दी. उन्होंने कहा कि कोई भी संवैधानिक संस्था कोई भी फैसला डाटा के आधार पर ही लेती है और डाटा के आधार पर जिन राज्यों में चुनाव हुए उस समय वहां इतने मामले नहीं थे. लोकतंत्र में बहुत सारी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है सिर्फ चुनाव आयोग पर सवाल उठाकर लोग अपनी जिम्मेदारी के बच नहीं सकते.