नई दिल्ली :किसानों को फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी दिलाने के लिए फिर आंदोलन शुरू करने की तैयारी हो रही है. इसके लिए अलग से 'एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा' के नाम से देश भर के किसान संगठनों को एकजुट किया जाएगा. इसकी अगुवाई कर रहे हैं किसान नेता वीएम सिंह, जिन्होंने सबसे पहले तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन का आह्वान किया था.
बता दें कि यह समूह संयुक्त किसान मोर्चा से अलग है. संयुक्त किसान मोर्चा से अलग किए जाने के बाद किसान नेता वीएम सिंह अपने समर्थक किसान संगठनों के साथ मिलकर एमएसपी की मांग के लिए लगातार आवाज उठाते रहे हैं. अब 22 मार्च को किसान नेता वीएम सिंह ने दिल्ली में एक बार फिर देश भर के किसान संगठनों की एक बड़ी बैठक बुलाई है.बताया जा रहा है कि इस बैठक में 25 राज्यों के 200 से ज्यादा किसान संगठन शामिल होंगे. ये सभी किसान संगठन वह हैं जो संयुक्त किसान मोर्चा से अलग रहे हैं. बैठक दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में तय की गई है.
14 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा की बड़ी बैठक दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में ही हुई थी. बैठक के दौरान किसान मोर्चा के अंदर आपसी विवाद भी खुल कर सामने आ गया था. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा इससे इनकार करता रहा है.
पांच राज्यों के चुनाव पर किसानों के आंदोलन का कोई निर्णायक प्रभाव न पड़ने के कारण अब किसान संगठनों के सामने अपने आंदोलन के अस्तित्व को जीवंत रखने की चुनौती है. वह फिर से एमएसपी के मुद्दे में जान फूंक कर सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से अब तक एमएसपी को प्रभावी बनाने के लिए कमेटी गठित करने की कोई योजना सामने नहीं आई है.
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'ईटीवी भारत' से बातचीत में किसान नेता वीएम सिंह ने कहा कि अब आंदोलन एमएसपी पर ही केंद्रित रहे इसलिए आंदोलन का नाम एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा रखने पर विचार किया गया है. आंदोलन का स्वरूप क्या होगा इस पर 22 मार्च की बैठक में चर्चा होगी. दूसरी तरफ संयुक्त किसान मोर्चा ने भी अपने अलग कार्यक्रम तय कर रखे हैं जिसके तहत वह आज देश के अलग अलग हिस्सों में रोष दिवस मना रहे हैं. देश के राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंप रहे हैं. इसके साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा से हाल में अलग किए गए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी और अन्य समर्थक संगठनों ने आज ही उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में अपनी अलग बैठक बुलाई है. इस तरह से किसानों के लिए एमएसपी के मुद्दे को एक बार फिर सुर्खियों में लाने के लिए तीन अलग अलग तरह के प्रयास किसान संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं.
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