हैदराबाद : खाद की बढ़ती कीमतों से किसान परेशान हैं. डीएपी (डाय अमोनियम फॉस्फेट) की एक बोरी (50 किलो) की कीमत 700 रुपये तक बढ़ चुकी है. अब यह 1900 रुपये में उपलब्ध है. मिश्रित खादों के भी दाम कई गुना बढ़ चुके हैं. अचरज तो ये है कि कीमतों में इजाफा केंद्र की उस घोषणा के ठीक बाद हुई, जिसमें सरकार ने खाद की कीमत नहीं बढ़ने का आश्वासन दिया था. अब सरकार कह रही है कि पुराने स्टॉक पर दाम नहीं बढ़ेंगे. नए स्टॉक की कीमत बढ़ी हुई होगी.
खाद के पुराने स्टॉक 11.3 लाख टन हैं. अंदाजा लगाइए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अकेले 31 लाख टन खाद की जरूरत होती है. पूरे देश में कितनी मात्रा में खाद की जरूरत होगी, आप अनुमान लगा सकते हैं. ऐसे में पुराने स्टॉक पर पुरानी कीमतों को लागू करना कहां तक उचित होगा. यह तो एक प्रकार का छलावा है.
इफ्फको का कहना है कि खाद के लिए आयातित कच्चे पदार्थों की कीमतें बढ़ गईं हैं. कारण चाहे जो भी हो, इसका किसानों पर सबसे अधिक असर पड़ रहा है. सरकार कह रही है कि खाद की बोरियों पर कीमतें छपी रहेंगी. ऐसा नहीं है कि अनुचित दाम वसूले जाएंगे. पर, किसानों की मांग है कि सरकार बढ़ी हुई कीमतों के अनुरूप सब्सिडी की रकम बढ़ाए. किसानों की परेशानियों पर विचार करने के बजाए सरकार सिंगल सुपर फॉस्फेट और बायो फर्टिलाइजर पर जोर देने की बात कह रही है.
एक अनुमान के मुताबिक बढ़ी हुई खाद की कीमतों की वजह से प्रति एकड़ पांच हजार रुपये तक लागत बढ़ जाएगी. व्यावसायिक फसलों के उत्पादन की लागत और अधिक होगी. सब्जियों और कॉटन की कीमतों में कई गुना इजाफा हो सकता है. अंततः इसका असर उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा.
खाद की बढ़ती कीमतों की वजह से एमएसपी भी बढ़ाई जानी चाहिए, पर सरकार ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है. आखिर किसानों की कौन सुनेगा.