दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

ईंधन के बाद खाद की बढ़ती कीमतों से किसान परेशान - farmers prices of fertilizer

पहले ईंधन की कीमत बढ़ी और अब खाद के दाम बढ़ गए. किसानों के लिए यह बड़ा झटका है. सरकार कह रही है कि पुराने स्टॉक पर कीमतें नहीं बढ़ी हैं. लेकिन खाद डीलर नई कीमतों पर बिक्री कर रहे हैं. इसलिए किसानों ने सब्सिडी बढ़ाने की मांग की है. क्या केंद्र सरकार इस पर फैसला लेगी, किसान इसका इंतजार कर रहे हैं.

Etv Bharat
कॉन्सेप्ट फोटो

By

Published : Apr 15, 2021, 7:29 PM IST

हैदराबाद : खाद की बढ़ती कीमतों से किसान परेशान हैं. डीएपी (डाय अमोनियम फॉस्फेट) की एक बोरी (50 किलो) की कीमत 700 रुपये तक बढ़ चुकी है. अब यह 1900 रुपये में उपलब्ध है. मिश्रित खादों के भी दाम कई गुना बढ़ चुके हैं. अचरज तो ये है कि कीमतों में इजाफा केंद्र की उस घोषणा के ठीक बाद हुई, जिसमें सरकार ने खाद की कीमत नहीं बढ़ने का आश्वासन दिया था. अब सरकार कह रही है कि पुराने स्टॉक पर दाम नहीं बढ़ेंगे. नए स्टॉक की कीमत बढ़ी हुई होगी.

खाद के पुराने स्टॉक 11.3 लाख टन हैं. अंदाजा लगाइए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अकेले 31 लाख टन खाद की जरूरत होती है. पूरे देश में कितनी मात्रा में खाद की जरूरत होगी, आप अनुमान लगा सकते हैं. ऐसे में पुराने स्टॉक पर पुरानी कीमतों को लागू करना कहां तक उचित होगा. यह तो एक प्रकार का छलावा है.

इफ्फको का कहना है कि खाद के लिए आयातित कच्चे पदार्थों की कीमतें बढ़ गईं हैं. कारण चाहे जो भी हो, इसका किसानों पर सबसे अधिक असर पड़ रहा है. सरकार कह रही है कि खाद की बोरियों पर कीमतें छपी रहेंगी. ऐसा नहीं है कि अनुचित दाम वसूले जाएंगे. पर, किसानों की मांग है कि सरकार बढ़ी हुई कीमतों के अनुरूप सब्सिडी की रकम बढ़ाए. किसानों की परेशानियों पर विचार करने के बजाए सरकार सिंगल सुपर फॉस्फेट और बायो फर्टिलाइजर पर जोर देने की बात कह रही है.

एक अनुमान के मुताबिक बढ़ी हुई खाद की कीमतों की वजह से प्रति एकड़ पांच हजार रुपये तक लागत बढ़ जाएगी. व्यावसायिक फसलों के उत्पादन की लागत और अधिक होगी. सब्जियों और कॉटन की कीमतों में कई गुना इजाफा हो सकता है. अंततः इसका असर उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा.

खाद की बढ़ती कीमतों की वजह से एमएसपी भी बढ़ाई जानी चाहिए, पर सरकार ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है. आखिर किसानों की कौन सुनेगा.

कुछ समय पहले ईंधन की बढ़ती कीमतों की वजह से लागत में 28 फीसदी वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया था. अब खाद की बढ़ती कीमतों को भी उसमें जोड़ लीजिए.

यूरिया की कीमतों पर केंद्र सरकार फैसला लेती है. अभी इसकी कीमत नहीं बढ़ी है. पर, अनुमान है कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों के बाद इसकी कीमत में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

इफ्फको कितना भी दावा करे कि पुराने स्टॉक पर पुरानी कीमत वसूली जाएगी. पर, खाद के डीलर ऐसा होने देंगे, इसकी संभावना कम है. लाभ के चक्कर में वे किसानों से बढ़ी हुई कीमत ही वसूल रहे हैं.

अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग खाद का प्रयोग होता है, लेकिन किसानों को इसकी सही-सही जानकारी नहीं होती है. पोटाशियम और नाइट्रोजन 1:4 के अनुपात में प्रयोग किया जाता है. अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि पंजाब में इसे 1:24 और हरियाणा में 1:32 के अनुपात में उपयोग किया जा रहा है. कुछ जगहों पर दोगुनी मात्रा में यूरिया का प्रयोग किया जा रहा है. इसकी वजह से जमीन अधिक ऊसर हो रही है. उसकी उत्पादकता प्रभावित होती है. लेकिन लागत बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें :बैंकों की समस्याओं का निदान निजीकरण नहीं

रासायनिक खादों के बेतरतीब प्रयोग से लागत भी बढ़ती है और उत्पादन भी अधिक नहीं होता है. नीति बनाते समय सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. कृषि अधिकारी इसके लिए नियुक्त किेए जाते हैं. तेलंगाना सरकार अपने किसानों के लिए कृषि अधिकारियों के जरिए सही-सही जानकारी दे रहे हैं. अगर राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा ही फैसला लिया जाए, तो किसानों को काफी लाभ होगा और उनके फसलों की उत्पादकता भी बढ़ सकेगी.

ABOUT THE AUTHOR

...view details