बागपतःउत्तर प्रदेश के बागपत में एक ऐसा गांव है. जहां आज भी लोग रावण के पूतले का सम्मान करते हैं, रावण के पुतले को जलाना अभिशाप मानते हैं. इसके साथ ही गांव में रामलीला का मंचन भी आयोजित नहीं किया जाता है. ग्रामीणों ने कहा उन्होंने गांव में कभी रावण को दहन होते हुए नहीं देखा है.
यूं तो पूरे देश मे श्राद्ध के बाद रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है और दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन आज हम आपको बागपत के ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां पर रावण का दहन नहीं किया जाता है. दरअसल बागपत के बड़ा गांव उर्फ रावण में लंका नरेश रावण को लेकर ग्रामीणों ने बताया, कि रावण ने माता मंशा देवी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. इसके बाद माता मंशा देवी प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने को बोली थी.
माता मंशा देवी कमेटी के प्रबंधक राजपाल त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि माता मंशा देवी से रावण ने कहा कि वह उन्हें लंका ले जाना चाहता है. जिसके बाद माता मंशा देवी ने कहा कि रावण वह तुम्हारे साथ चलेंगी. लेकिन यात्रा के दौरान वह इस पृथ्वी पर उन्हें कहीं नहीं रखेगा. अगर वह उन्हें कहीं रख दिया तो वह वहीं स्थापित हो जांएगी.
राजपाल त्यागी ने बताया कि रावण ने माता मंशा देवी की बात मानकर उनके स्वरूप (मूर्ति) को लेकर लंका की यात्रा पर चल दिया. रास्ते में बड़ा गांव के जंगल मे रावण को टॉयलेट के लिए रुकना पड़ा. वहां भगवान विष्णु एक ग्वाले का रूप धारण कर खड़े थे. रावण ने भगवान विष्णु को ग्वाला समझकर कहा कि वह टॉयलेट के लिए जाता है. तब तक वह माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को हाथों में लेकर खड़ा रहे. काफी समय तक रावण के न आने पर ग्वाले ने माता मंशा देवी के स्वरूप (मूर्ति) को वहीं रख दिया.