नई दिल्ली :सनातन हिन्दू धर्म में देव पूजा में दूर्वा अर्थात् दूब को कुछ जगहों पर सामान्य घास के तौर पर जानते हैं, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में इसको अत्यन्त पवित्र और धर्मोपयोगी वनस्पति माना गया है. देवी दुर्गा को छोड़कर पूजा में प्राय: सभी देवताओं को दूर्वा चढ़ाई जाती है. आपको ज्ञात होगा कि जिस प्रकार शिव पूजन में बेल पत्र अति आवश्यक माना जाता है, उसी प्रकार श्री गणेश की पूजा में दूर्वा (Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi ) अत्यंत आवश्यक पूजन सामग्री है. भगवान गणेश की कोई भी पूजा (Ganesh Chaturthi Puja 2022) बगैर दूर्वा के पूरी ही नहीं मानी जाती है.
कहा जाता है कि दूर्वा दूः+अवम्, इन दो शब्दों से बना है. 'दूः'यानी दूरस्थ व 'अवम्' यानी वह जो पास लाता है. अर्थात दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है.
दूर्वा की उत्पत्ति (Origin Of Durva)
ऐसा मान्यता है कि अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और देत्यों ने जब क्षीरसागर को मथने के लिए मन्दराचल पर्वत की मथानी बनायी तो भगवान विष्णु ने अपनी जंघा पर हाथ से पकड़कर मन्दराचल को धारण किया. मन्दराचल पर्वत के तेजी से घूमने से रगड़ के कारण भगवान विष्णु के जो रोम उखड़ कर समुद्र में गिरे, वे लहरों द्वारा उछाले जाने से हरे रंग के होकर दूर्वा के रूप में उत्पन्न हुए.
वहीं शास्त्रों के अनुसार नरसिंह अवतार के समय जब भगवान के कुछ बाल पृथ्वी पर गिरे थे, उनसे ही दूर्वा और कुश उत्पन्न हुई थी. कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि की शक्ति भी इसी दूर्वा के कारण ही थी.
दूर्वा को अलग अलग नामों से जाना जाता है. इसे दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से पुकारा व पहचना जाता है. हमारे देश में होने वाले सारे मांगलिक कार्यों में इसका उपयोग होता है. हल्दी और दूब के जरिए शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों में भी कई रस्में निभायी जाती हैं. दूर्वा से हल्दी छिड़कने को सौभाग्य छिड़का जाना कहा जाता है. इसके साथ साथ सातफेरों के पहले जो गठबंधन किया जाता है उस समय वधू के पल्लू और वर के दुपट्टे या धोती में सिक्का (पैसा), पुष्प, हल्दी, दूर्वा और अक्षत, पांच चीजें बांधी जाती हैं. यह संबंधों में अजरता और अमरता के लिए किया जाता है.
दूर्वा है अजर अमर (Durva is Immortal)
कहा जाता है कि जब दूर्वा की उत्पत्ति हुयी तो देवताओं ने समुद्र-मंथन से उत्पन्न अमृत का कलश को उसी के उपर रखा था. उस कलश से जो अमृत की बूंदें छलकीं, उनके स्पर्श से वह दूर्वा अजर-अमर हो गयी. दूर्वा को चाहे कितना भी काटें और उसको हटाने की कोशिश करें, उसकी जड़ें अपने-आप चारों ओर फैलती जाती हैं.
सभी देवताओं ने इस मन्त्र से दूर्वा की पूजा की और तभी से यह देव पूजा में अत्यन्त पवित्र और पूज्य मानी जाने लगी ।
त्वं दूर्वेऽमृतजन्मासि वन्दिता च सुरासुरै:
सौभाग्यं संततिं कृत्वा सर्वकार्यकरी भव.
यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले
तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे.
अर्थात्—हे दूर्वे ! तुम्हारा जन्म अमृत से हुआ है और देव और दानव दोनों की ही तुम पूज्य हो. तुम सौभाग्य व संतान देने वाली व सब कार्य सिद्ध करने वाली हो. जिस प्रकार तुम्हारी शाखा प्रशाखाएं पृथ्वी पर फैली हुई हैं. उसी तरह हमें भी ऐसी संतान दो जो अजर-अमर हों.
इसलिए विघ्न विनाशक गणपति को पसंद है दूर्वा