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ड्रोन: भारत के लिए समस्या भी और समाधान भी - देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर

जम्मू-कश्मीर में एयरबेस पर हुए आतंकी हमले से पहले भी कई हमले हो चुके हैं लेकिन इस बार ना'पाक' मंसूबें ड्रोन के साथ आए हैं. जिसने सुरक्षा एजेसियों की नींद उड़ा दी है. आखिर क्या है ये ड्रोन और क्यों ये भारत के लिए समस्या भी है और समाधान भी, जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

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Published : Jun 28, 2021, 8:04 PM IST

हैदराबाद: सोचिये एक शख्स किसी कमरे में बैठा कॉफी पी रहा है और साथ में एक रिमोट के सहारे अपने सामने लगी स्क्रीन पर दुश्मन के इलाके की लाइव तस्वीरें देख रहा है. वो दुश्मन की हर हलचल पर नजर रखे हुए हैं. तभी उसे स्क्रीन पर दुश्मन की संदिग्ध गतिविधि दिखती है और वो एक बटन दबाकर दुश्मन पर बम बरसा देता है. अगले ही पल दुश्मन का खेल खत्म. सुनने में कहानी किसी हॉलीवुड वॉर फिल्म की लग रही होगी लेकिन ये हकीकत है. और इसे सच कर दिखाया है ड्रोन ने.

जम्मू-कश्मीर एयरफोर्स स्टेशन में ड्रोन से हुए आतंकी हमले ने सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं. जम्मू कश्मीर के डीजीपी ने इस हमले में ड्रोन के इस्तेमाल की बात कही है. अगर जांच में इसकी पुष्टि हुई तो देश में ड्रोन से हुए हमले का ये पहला मामला होगा.

जम्मू-कश्मीर एयरबेस पर हुआ था हमला

इस हमले में भले कोई जान-माल का नुकसान ना हुआ हो लेकिन इन नापाक मंसूबे ने सुरक्षा से लेकर पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर नए सिरे से सोचने को मजबूर जरूर किया है. दरअसल इस हमले में ड्रोन के इस्तेमाल ने सबकी नींद उड़ा दी है. ज्यादातर लोग ड्रोन के इस्तेमाल की सीमा एक खिलौने या ज्यादा से ज्यादा पिज्जा या अन्य उत्पादों की होम डिलीवरी करने वाली मशीन के रूप में देखते हैं, लेकिन ड्रोन आधुनिक युग का वो हथियार है जिससे सैन्य मोर्चे से लेकर साइबर वॉर के मोर्चे तक और खेतीबाड़ी से लेकर जासूसी तक में अपनी भूमिका निभा रहा है.

ड्रोन क्या होता है?

ड्रोन को एक तरह का फ्लाइंग रोबोट कहें तो गलत नहीं होगा. इसे Unmanned aerial vehicle (UAE) यानि मानव रहित विमान भी कहा जाता है. ये एक छोटा मानव रहित एयरक्राफ्ट है जिसे किसी इंसान द्वारा संचालित किया जाता है. ये आकार में छोटे और उड़ने में सक्षम होते हैं. इन्हें स्मार्ट फोन या रिमोट जैसे किसी उपकरण से संचालित किया जाता है. इनका इस्तेमाल ऐसी स्थिति या स्थानों में किया जाता है जहां इंसानी पहुंच ना हो.

ड्रोन को Unmanned aerial vehicle भी कहते हैं

ड्रोन में कैमरा, जीपीएस, रेडियो रिसीवर जैसे उपकरण लगाकर इसका इस्तेमाल तस्वीरें खींचने व संदेश भेजने जैसे कामों के लिए किया जाता है. आजकल फिल्मों की शूटिंग में भी इनका इस्तेमाल होने लगा है.

जब अमेरिकी ड्रोन ने बरसाए बम

ड्रोन के पहली बार इस्तेमाल की सही जानकारी मिलना तो मुश्किल है क्योंकि इसका शुरुआती इस्तेमाल सैन्य और जासूसी इस्तेमाल के लिए हुआ. माना जाता है कि मानव रहित विमान बनाने की कोशिश पहले विश्व युद्ध के दौरान ही शुरू हो गई थी. जिसके बाद कई देशों ने इस तकनीक पर काम किया लेकिन दुनिया ने सबसे पहले जिन ड्रोन के बारे में सुना या देखा वो अमेरिका के थे, जिन्होंने अफगानिस्तान में ओसामा की तलाश के दौरान तालिबानी आतंकियों के ठिकानों पर कई बम बरसाए.

अमेरिका ने तालिबान के ठिकानों पर किए थे ड्रोन हमले

आसमान से बम बरसाते अमेरिकी ड्रोन ने बताया कि कैसे एक छोटा का मानव रहित विमान युद्ध में सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है. वो भी बिना दुश्मन की नजर में आए. जिसके बाद दुनियाभर के देशों ने ड्रोन की तकनीक पर काम किया और इसकी क्षमता से लेकर रेंज और प्रयोग को व्यापक बना दिया. अमेरिकी ड्रोन उस दौरान तालिबानी ठिकानों को ढूंढकर उनपर बम बरसाते थे.

निगरानी और जासूसी के लिए होता है इस्तेमाल

ड्रोन का सैन्य इस्तेमाल

ड्रोन का शुरुआती इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ सैन्य, देश की सुरक्षा आदि के लिए होता रहा है. ड्रोन का इस्तेमाल टोह लेने या रेकी करने, खुफिया जानकारी जुटाने या जासूसी के लिए किया जाता है. पहाड़ी क्षेत्रों में दूरस्थ दुर्गम इलाकों, समुद्र या बॉर्डर एरिया में जहां सेना की कोई टुकड़ी या जवान नहीं पहुंच सकते. वहां ड्रोन बहुत ही कारगर साबित होते हैं. ऐसे इलाकों में एक सुरक्षित दूरी से ड्रोन को ऑपरेट करके अपने काम को बखूबी अंजाम देता है. किसी अनहोनी या दुश्मन की नजर में आने पर भी जानकारी कैमरों के जरिये मिल जाती है और जान का भी नुकसान नहीं होता.

ड्रोन का सैन्य इस्तेमाल सबसे अधिक होता है

ड्रोन दुश्मन के इलाके में टोह लेने से लेकर लक्ष्य को खत्म करने में भी बहुत ही सटीक है. अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों के खात्मे के लिए कई बार ड्रोन का इस्तेमाल किया. इस दौरान ड्रोन से आतंकी ठिकानों पर हमले भी किए गए.

भारत और ड्रोन

भारत में ड्रोन का इस्तेमाल अमेरिका या कनाडा जैसे विकसित देशों के मुकाबले बहुत सीमित है. खासकर ड्रोन के सैन्य और पुलिस द्वारा ड्रोन का इस्तेमाल छोड़ दें तो इसका इस्तेमाल ना के बराबर होता है. भारत ने साल 2018 में ही ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर नियम कायदे बनाए गए हैं. ऐसे में भारत में ड्रोन युग की अभी शुरुआत ही है. हालांकि सैन्य मोर्चों पर ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है.

भारत ने भी देश में निर्मित ड्रोन रुस्तम-2 का सफल परीक्षण किया था. इससे पहले साल 2009 में ही रुस्तम-1 का सफल परीक्षण हुआ था. भारतीय सेना की मांग को देखते हुए DRDO, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने इनका विकास किया और ड्रोन तकनीक को और भी बेहतर करने की ओर कार्य कर रहे हैं.

ड्रोन के प्रकार

भारत में नागर विमानन महानिदेशालय यानि DGCA (Directorate General of Civil Aviation) ने ड्रोन के 5 प्रकार निर्धारित किए हैं. जिन्हें

नैनो ड्रोन- वजन 250 ग्राम तक

माइक्रो ड्रोन- 250 ग्राम से अधिक और 2 किलो से कम वजन

स्मॉल ड्रोन- 2 किलो से अधिक और 25 किलो से कम वजन

मीडियम ड्रोन- 25 किलो से अधिक और 150 किलो से कम वजन

लार्ज ड्रोन- 150 किलोग्राम से अधिक वजन

अब आप सोच लीजिये कि जो लार्ज ड्रोन होगा वो भी दुनिया के सबसे हल्के हेलीकॉप्टर से भी कम वजन का होगा. लेकिन उसकी क्षमता बड़े-बड़े फाइटर जेट और हेलीकॉप्टरों से अधिक होगी. जो दुश्मन की नजर में आए बिना उनके ठिकाने ध्वस्त कर आएगा.

कम ऊंचाई पर उड़ने वाले छोटे ड्रोन रडार को भी देते हैं चकमा

देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर

जम्मू-कश्मीर एयरबेस पर हमले की जांच जारी है. अगर जांच के दौरान अगर ड्रोन के इस्तेमाल की सच्चाई पता चली तो समझ लीजिए की ड्रोन कितना घातक हथियार हो सकता है.

- ड्रोन तकनीक के जरिये किसी दुर्गम क्षेत्र, बॉर्डर, समुद्र या किसी भी ऐसे स्थान पर पहुंच सकते हैं जहां इंसान की पहुंच ना हो. मानव रहित होने के चलते इसमें किसी की जान का नुकसान नहीं होता.

- ड्रोन आरडीएक्स, आईईडी जैसे विस्फोटक को लेकर निश्चित ठिकाने पर पहुंच सकता है. ऐसे में अगर ड्रोन जैसी तकनीक किसी आतंकी संगठन या असामाजिक तत्वों के हाथ लग जाए तो वो इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं.

- छोटे ड्रोन बहुत ही कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं ऐसे में वो रडार की पकड़ में नहीं आ पाते हैं, जो कि सुरक्षा के लिहाज से बड़ी चूक साबित हो सकते हैं. कई देशों के पास सिर्फ बड़े ड्रोन को इंटरसेप्ट करने का ही एयर डिफेंस सिस्टम है.

-ड्रोन के सहारे न सिर्फ जासूसी की जा सकती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इसके सहारे हमला भी किया जा सकता है।

कई क्षेत्रों में हो रहा ड्रोन का इस्तेमाल

पड़ोसी हो ना'पाक' तो ड्रोन जरूरी है

भारतीय सेना भी ड्रोन का इस्तेमाल तो करती है लेकिन इसकी तकनीक को और भी व्यापक स्तर पर विकसित करने की जरूरत है. पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के होते हुए ये और भी जरूरी हो जाता है. पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ भारत की सीमाएं लगती हैं. दोनों सीमाओं पर ये दोनों देश घुसपैठ करते रहते हैं ऐसे में ड्रोन की भूमिका बहुत अहम हो जाती है. फिर चाहे खुफिया तंत्र को मजबूत करने की बात हो या सीमाओं पर निगरानी की.

पाकिस्तान की तरफ से आतंकी घुसपैठ के अलावा हथियार और नशे की तस्करी भी बड़ी मात्रा में होती है. जानकार मानते हैं कि हथियार और नशे की खेप भारत पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल भी किया जा रहा है ऐसे में निगरानी को और भी चौकस करना है तो अपने ड्रोन सिस्टम को और भी मजबूत करना होगा. दूसरी तरफ चीन की विस्तारवादी नीति का बानगी भारत अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक में देख चुका है ऐसे में एलएसी पर निगरानी के लिए भी ड्रोन काफी मददगार साबित हो सकते हैं.

कुछ देशों में खेती के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल

कहां-कहां हो रहा है ड्रोन का इस्तेमाल

- ड्रोन का सबसे आम इस्तेमाल इन दिनों फिल्मों की शूटिंग और शादी या अन्य समारोह के दौरान फोटोग्राफी या वीडियो ग्राफी के लिए किया जाता है.

- शहरों में सुरक्षा या ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी पुलिस ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल करती है.

-कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर के शहरों की तस्वीरें ड्रोन कैमरे के जरिये ही लोगों तक पहुंची. लॉकडाउन के दौरान नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भी ड्रोन के जरिये नजर रखी गई.

-इसी तरह हिंसा या अन्य मौकों पर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है. कुंभ मेले, कांवड यात्रा, गणतंत्र दिवस परेड, स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम जैसे सार्वजनिक और धार्मिक समारोहों में सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से ड्रोन अहम भूमिका निभाते हैं.

-कृषि क्षेत्र में भी ड्रोन का इस्तेमाल फसलों की निगरानी और दवा के छिड़काव के लिए दुनिया के कई देशों में होता है.

- किसी प्राकृतिक आपदा के दौरान ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है. केरल बाढ़ या नेपाल में आए भूकंप की भयावह तस्वीरें ड्रोन कैमरे से ही दुनिया तक पहुंची. जिसके बाद राहत बचाव कार्य में मदद मिल सकती है.

-मेडिकल इमरजेंसी होने पर ड्रोन का इस्तेमाल दवा या जरूरी उपकरण पहुंचाने के लिए भी किया जा सकता है. बीते दिनों बेंगलुरू में इसका परीक्षण भी हुआ था.

- दुनिया के कुछ देशों में कई ई-कॉमर्स कंपनियां अपने उत्पादों की होम डिलीवरी के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं.

- निर्माण क्षेत्र से जुड़े कार्यों में भी ड्रोन बहुत कारगर साबित हुआ है. भारतीय रेल ने भी इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग और मेंटनेंस की निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों के इस्तेमाल का फैसला लिया.

ड्रोन राहत और बचाव कार्य में भी कारगर

बीते कल का खिलौना, आज का हथियार

किसी ने नहीं सोचा होगा कि कभी मेलों में उड़ते पंख वाले खिलौने या स्कूल, कॉलेज में छात्रों का मॉडल बनने वाले मानव रहित हेलीकॉप्टर एक दिन दुनिया का सबसे बड़ा और विनाशकारी हथियार बन जाएगा. मौजूदा दौर में ड्रोन का इस्तेमाल व्यापक हो गया है. इसको शुरुआत में भले सिर्फ सैन्य मोर्चों पर अपनाया गया हो लेकिन आज ड्रोन का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जा रहा है.

फिल्म शूटिंग में भी होता है इस्तेमाल

सैन्य और प्रोफेशनल लोगों के अलावा शौकिया लोग भी इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. खासकर वीडियोग्राफी, रियल एस्टेट, घूमने और मनोरंजन के तौर पर ड्रोन का इस्तेमाल ज्यादा होता है. दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रोन का इस्तेमाल मिलिट्री में होता है. सैन्य इस्तेमाल के लिए ड्रोन का कारोबार अरबों डॉलर का है.

इसके बाद उपभोक्ताओं के इस्तेमाल और सिविल-कमर्शियल मामलों का नंबर आता है. सैन्य क्षेत्र के अलावा अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें तो कंस्ट्रक्शन में सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल है. इसके अलावा कृषि, ऑयल गैस रिफाइनरी, पत्रकारिता और रियल एस्टेट भी इसमें शामिल है. कुल मिलाकर बीते कल का खिलौना आज का सबसे बड़ा हथियार बन गया है फिर चाहे सैन्य मोर्चे की बात हो या फिर रोजमर्रा की जरूरत.

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