हैदराबाद :तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की जीवनरेखा श्रीशैलम जलाशय में गाद भरने के कारण हर वर्ष में 2 से 3 टीएमसी जल भंडारण की क्षमता खो रहा है. जबकि इसकी कुल भंडारण क्षमता 308.60 टीएमसी है जो घटकर 215.80 रह गई है. यानी करीब 92 टीएमसी की गिरावट दर्ज की गई है.
पिछले साल केंद्र सरकार ने तेलुगू राज्यों के जलाशयों में अवसादन की समस्या अत्यधिक प्रचलित थी. तब यह अनुमान लगाया गया गया कि संयुक्त रूप से दोनों राज्यों ने जलाशयों में बाढ़ और परिणाम स्वरूप प्लंज पूल के गठन से कुल जल भंडारण क्षमता का 50 प्रतिशत कम हो गया.
2009 में यह पाया गया कि नागार्जुन सागर जलाशय ने इसी कारण से अपनी भंडारण क्षमता का 40.73 प्रतिशत खो दिया. 1992 के एक सर्वेक्षण में यह पता चला था कि निजाम सागर जलाशय में इसकी कुल भंडारण क्षमता में 60.47 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अगस्त 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी जलाशयों की संयुक्त भंडारण क्षमता 25000 करोड़ क्यूबिक मीटर है. इसे बढ़ाकर 38000 करोड़ क्यूबिक मीटर करने का काम चल रहा है. अवसादन की लगातार बनी समस्या चीजों को मुश्किल बना रही है.
दक्षिण भारतीय राज्यों के 36 जलाशय इस समस्या का सामना कर रहे हैं. नतीजतन वास्तविक भंडारण क्षमता रिपोर्ट के अनुसार 39 प्रतिशत कम हो गई. गाद बनने के कारण जलाशयों में जल विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक जलस्तर नहीं है.
इस वजह से आसन्न बिजली टर्बाइन भी क्षति के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. जलाशय की नींव भी धराशायी हो सकती है. इसी चुनौती के चलते शिमला में रामपुर बिजली परियोजना को बंद करना पड़ा. पंजाब में भाखड़ा बांध, जो देश के सबसे बड़े बांधों में से एक है, 927 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी धारण कर सकता है.
हालांकि सिल्टिंग के कारण भंडारण क्षमता में 213 करोड़ क्यूबिक मीटर की कमी आई है. तुंगभद्रा जलाशय में भी गाद की गंभीर समस्या है. कर्नाटक में नारायणपुर और मालाप्रभा जलाशय अत्यधिक अवसादन के कारण अपनी भंडारण क्षमता खो चुके हैं.
कृष्णा नदी बेसिन में वनों की कटाई के कारण बाढ़ के दौरान नष्ट हुई मिट्टी जलाशयों में भर रही है. 2009 की बाढ़ के दौरान श्रीशैलम जलाशय को भारी मात्रा में पानी और कीचड़ मिला है. केंद्रीय जल आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार जलाशयों की भंडारण क्षमता का आकलन हर 6 साल में किया जाना चाहिए.
वर्तमान में मुंबई के 12 जलविज्ञानी श्रीशैलम जलाशय की भंडारण क्षमता की सीमा का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण कर रहे हैं. हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण रिमोट सेंसिंग तकनीकों के माध्यम से अधिकतम जल स्तर की गणना करेगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंची पहाड़ियों और नल्लामाला जंगल के बीच स्थित होने के कारण श्रीशैलम जलाशय में पारंपरिक ड्रेजिंग संभव नहीं हो सकती है. दूसरों का दावा है कि जलोढ़ मिट्टी तलछट का उपयोग कृषि के बाद ड्रेजिंग के लिए किया जा सकता है.
कुल मिलाकर यह अनुमान लगाया गया है कि यदि प्रवाहित जल में गाद को 10 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है तो किसी जलाशय की आयु 15 से 20 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है. भाखड़ा बेस मैनेजमेंट बोर्ड के चेयरमैन डीके शर्मा ने पहले कहा था कि वनरोपण से मिट्टी का कटाव रोका जा सकता है.
यह भी पढ़ें-आजादी का अमृत महोत्सव : वैगन ट्रेजडी के 100 साल, जानें अंग्रेजों का एक और काला अध्याय
जापान में आने वाले पानी से गाद को छानने के लिए बड़े जलाशयों के पास लगभग 15 मीटर ऊंचाई के छोटे जलाशय स्थापित किए गए हैं. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल विवाद के मद्देनजर केंद्र वर्तमान में परियोजनाओं और जल आवंटन के पुनर्मूल्यांकन में लगा हुआ है. जल विज्ञानियों का सुझाव है कि केंद्र गाद पर ध्यान केंद्रित करे और जलाशयों की कमी की समस्या का समाधान करे.