दार्जिलिंग : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को राज्य को बांटने की कोशिश कर रही ताकतों के खिलाफ लोगों को आगाह किया. उन्होंने कहा कि अवसरवादियों को उत्तर बंगाल में अशांति की अनुमति न दें. वह उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग की पहाड़ियों में नवनिर्वाचित गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) बोर्ड के सदस्यों के शपथ ग्रहण समारोह को संबोधित कर रही थीं. मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उन नेताओं और राजनीतिक ताकतों के खिलाफ हमला बोला और उनकी जमकर आलोचना की जो अलग गोरखालैंड राज्य के पक्ष में हैं. हालांकि, उन्होंने गोरखालैंड का सीधा संदर्भ नहीं दिया.
मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैं अतीत में जो हुआ उसका उल्लेख नहीं करना चाहती, लेकिन आज मैं आप सभी से एक वादा चाहती हूं. कृपया किसी भी नेता को फिर से पहाड़ियों में तनाव पैदा करने की अनुमति न दें. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई अवसरवादी नेता फिर से पहाड़ियों में आग न लगा सके.' हालांकि मुख्यमंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि उनका स्पष्ट संकेत गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के प्रमुख विमान गुरुंग की ओर था. इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दस वर्षों के दौरान राज्य सरकार ने जीटीए को 7,000 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं. उन्होंने यह भी घोषणा की कि जल्द ही एक अलग पहाड़ी विश्वविद्यालय और हिल्स में एक औद्योगिक केंद्र होगा.
उन्होंने कहा, 'मैंने पहाड़ियों में ऐसा शांतिपूर्ण चुनाव कभी नहीं देखा. पहाड़ी लोगों ने दिखाया है कि वे क्या कर सकते हैं, जो अन्य नहीं कर सकते. इसके लिए धन्यवाद और शुभकामनाएं.' उन्होंने कहा कि 'मैंने पिछले दस वर्षों में यहां के लिए 7,000 करोड़ रुपये दिए हैं लेकिन ठीक से काम नहीं हुआ.' ममता ने कहा पिछला जीटीए चुनाव 10 साल पहले हुआ था. फिर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बिमल गुरुंग विजेता बने. उनके नेतृत्व में मोर्चा ने जीटीए में बोर्ड का गठन किया और बिमल गुरुंग ने राज्य के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखा. लेकिन फिर, 2017 में एक अलग राज्य की मांग करने वाले सशस्त्र आंदोलन ने पूरे क्षेत्र में अशांति फैला दी. दस वर्षों में राज्य द्वारा जीटीए को दिए गए 7,000 करोड़ रुपये का कोई लेखा-जोखा नहीं दिया गया. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी ऑडिट को आगे बढ़ाया. मुख्यमंत्री ने जीटीए के शपथ ग्रहण समारोह के खुले मंच से स्पष्ट किया कि पहाड़ों की समस्याओं के पीछे 'लालची' नेताओं का हाथ है.