जहानाबाद के स्थानीय लोगों का बयान. जहानाबादःबिहार का जेल ब्रेक कांड 2005, जिसपर एक वेब सीरीज भी बनी है. 'Jehanabad of Love and War' जिसमें ऋत्विक भौमिक और हर्षिता गौर लीड रोल में है. इस वेब सीरीज में बिहार की उस घटना को दिखाया गया है जो आज भी लोगों के जेहन से नहीं निकला है. वह 13 November 2005 की रात का धमाका आज भी कानों में गूंज रहा है. आखिर क्या हुई थी उस रात, इसके बारे में जहानाबाद निवासी रामनिवास शर्मा ने बता रहे हैं.
"पूरे जहानाबाद में दहशत का माहौल था. लोग यह नहीं समझ पा रहे थे कि उनकी जान बचेगी या नहीं बचेगी. जेल को तोड़ कर कैदी फरार हो गए थे."-रामनिवास शर्मा, स्थानीय
13 नवंबर की खौफनाक रातः बिहार की राजधानी पटना से 60 किलोमीटर दूर जहानाबाद में 13 नवंबर को शहर में काफी गहमागहमी थी. नए-नए पुलिसकर्मी हर चौक-चौराहे पर दिख रहे थे. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. एक तरफ बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2005) भी चल रहा था. अचानकर रात 9:05 बजे शहर की बिजली गुल हो गई. इसके बाद 2 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि जहानाबाद जेल के पास बमों का धमाका होने लगा.
341 कैदी जेल से हो गए थे फरारः धमका होते ही पुलिस अलर्ट हो गई. जहानाबाद पुलिस लाइन की ओर से गोलियां चलायी गई. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि शहर में क्या हो रहा है? खबर आई कि जहानाबाद जेल को तोड़ दिया गया और वहां से तकरीबन 341 कैदी फरार हो गए.
विधानसभा चुनाव के दौरान ही हुए थे धमाकेः उस वक्त विधानसभा का चुनाव चल रहा था. राज्य की तमाम प्रशासनिक व्यवस्था चुनाव कराने में मशगूल थी. इसी बीच भाकपा (माओवादी) संगठन ने ऑपरेशन जेलब्रेक की साजिश रची. यह ऑपरेशन जेलब्रेक नक्सली कमांडर अजय कानू को छुड़वाने के लिए किया गया था. अजय कानू नक्सलियों में सबसे खूंखार माना जाता था. अपने काम के बदौलत नक्सलियों का एरिया कमांडर बन गया. हालांकि पुलिस ने 2002 में गिरफ्तार कर लिया था. इसपर कई लोगों की हत्या का आरोप था.
जेल में आंदोलन करता था अजय कानूःजिस जेल में अजय कानू था, उसकी क्षमता महज 140 कैदियों की थी, लेकिन 658 कैदी को रखा गया था. ऐसे में अजय कानू लगातार हड़ताल और प्रदर्शन करते रहता था. उसकी इस हरकत से जेल प्रशासन परेशान हो गया था. प्रशासन ने तय किया कि अजय कानू को जहानाबाद से गया जेल में शिफ्ट कर दिया जाए. प्रशासन योजना ही बना रही थी कि नक्सलियों ने जेल तोड़ दिए.
कई कैदी अब भी फरारः इस जेल ब्रेक में कई पुलिसकर्मी मारे गए थे. अजय कानू सहित 341 कैदी फरार हो गए थे. हालांकि बाद में 269 कैदियों ने आत्मसर्पण किया. 2007 में अजय कानू झारखंड में गिरफ्तार कर लिया गया था. अब भागलपुर जेल में बंद है. हालांकि जेल से फरार कई कैदी अब तक नहीं मिले हैं.
पुलिस की ड्रेस में थे नक्सलीःनक्सलियों ने काफी सुंयोजित तरीके से इस घटना को अंजाम दिया था. एक दिन पहले से जहानाबाद में नक्सली जुटने लगे थे. पुलिस की ड्रेस में नक्सली पूरे शहर में फैल गए थे. उन्होंने पूरे शहर की नाकेबंदी कर दी थी. गाड़ियों पर पुलिस लिखा हुआ था. लोग यह समझते थे कि चुनाव का समय है इसलिए बाहर से पुलिस बल को मंगाया गया है. पूरे शहर की रेकी करने के बाद 13 नवंबर रात 09:05 में धमाका किया गया था.
कौन है अजय कानूःअजय कानू (Who is Ajay Kanu?) अरवल के करपी थाना के जोन्हा गांव का रहने वाला है. अजय के पिता फागु कानू लेफ्ट पार्टियों के लिए दीवार लेखन करते थे. जिसपर जमिंदारों के खिलाफ स्लोगन होते थे. फागु कानू की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. अजय कानू 1988 में बीए की परीक्षा पास की थी. पिता की हत्या से विचलित अजय पढ़ाई छोड़कर नक्सली संगठन में शामिल हो गया.
2002 में अजय कानू गिरफ्तारः रवि जी नाम से मशहूर अजय कानू अपनी हक की लड़ाई के लिए खूंखार हो गया था. उसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी ज्वाइन कर लिया था. बहुत जल्द ही अजय कानून हथियार चलाने में पारंगत हो गया. नक्सली संगठन ने उसे एरिया कमांडर घोषित कर दिया. रणवीर सेना के कई नेताओं की हत्या में शामिल अजय कानून को बिहार पुलिस ने 2002 में जहानाबाद से पटना आते समय गिरफ्तार किया था और जहानाबाद जेल में रखा गया था.
माओवादियों और रणवीर सेना में अदावतःनक्सली अपने आप को समाज में दबा कुचला मानते हैं. उनका मानना है कि जमींदारों ने उनका शोषण किया है. इसलिए वो अक्सर नक्सली घटनाओं को अंजाम देते थे. इनसे लड़ने के लिए अगड़ी जाति के तरफ से रणवीर सेना का निर्माण किया गया था. बिहार में कई सालों तक माओवादियों और रणवीर सेना में खूनी संघर्ष चलता रहा. कभी रणवीर सेना दलितों की हत्या करती थी तो कभी माओवादी अगड़ी जाति के लोगों की हत्या करते थे.
बिहार में नरसंहारः 1997 में जहानाबाद लक्ष्मणपुर बाथे में एक बड़ा नरसंहार (Massacre In Bihar) हुआ था. 60 दलितों की हत्या कर दी गई थी. उस दौरान बिहार के अलग-अलग इलाकों में नरसंहार हुए. 25 जनवरी 1999 को शंकर बीघा में 22 दलितों की हत्या कर दी गई थी. 1996 में भोजपुरी के बथानी टोला में दलित, मुस्लिम और पिछड़ी जाति के 22 लोगों की हत्या कर दी गई थी. औरंगाबाद जिले के मियांपुर में 22 जून 2000 को 35 दलितों की हत्या कर दी गई थी. इससे पहले 1977 में पटना के बेलछी गांव में 14 दलितों की हत्या कर दी गई थी.
"अजय कानू को छुड़ाने के लिए रात में नक्सलियों ने जेल को तोड़ा था. उस समय पूरे जहानाबाद में अपराध का दहशत था. नक्सलियों ने इस घटना को अंजाम दिया था. उस समय रोड पर चलना दुश्वार हो गया था."-अरविंद कुमार, स्थानीय