दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

Diwali 2023: 'ना आतिशबाजी, ना मां लक्ष्मी की पूजा', बिहार के थारू जनजाति की दिवाली है अनोखी, जानें सदियों पुरानी परंपरा

Diwali Of Tharu Tribe: बिहार के पश्चिम चंपारण में बड़ी संख्या में थारू जनजाति के लोग रहते हैं. ये लोग प्रकृति प्रेमी होते हैं और पर्यावरण की रक्षा के लिए संकल्पित हैं. अपनी सदियों पुरानी परंपरा को आज भी ये शिद्दत से निभाते हैं. इनके प्रकृति प्रेम के कायल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं. उन्होंने भी लॉकडाउन के समय उन लोगों की काफी सराहना की थी. थारू जनजाति की दिवाली हमारी और आपकी दिवाली से अलग कैसे है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर.

बिहार के थारू जनजाति की दिवाली है अनोखी
बिहार के थारू जनजाति की दिवाली है अनोखी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 11, 2023, 6:22 AM IST

देखें वीडियो

बगहा:पहाड़ों की तलहटियों में बसे आदिवासी बहुल इलाके के थारू जनजाति के लोग प्रकृति पूजा को महत्व देते हैं. यहीं वजह है कि वे अपने सभी पर्वों को इको फ्रेंडली मनाते हैं. आज के आधुनिक युग में भी इनकी पुरातन परंपराएं जीवित हैं और उससे ये छेड़ छाड़ नहीं करते हैं.

दिवाली में थारू जनजाति नहीं करते आतिशबाजी

दिवाली में थारू जनजाति नहीं करते आतिशबाजी : पश्चिमी चंपारण जिले में थारू जनजाति की आबादी दो लाख से ज्यादा है और ये शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी में फैले वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के किनारे रहते हैं. नतीजतन सभी पर्वों में प्रकृति की पूजा करना इनकी प्राथमिकताओं में शामिल है. दीपावली पर्व को भी दो दिनों तक ये अनोखे अंदाज में मनाते हैं. जिसको दियराई और सोहराई कहा जाता है.

कृषि से लेकर पशु तक की होती है पूजा:

"दियराई पर्व पर घर से लेकर खेत खलिहानों समेत मंदिरों में दीया जलाया जाता है और सोहराई पर्व पर गांव के सभी लोगों को सहेज कर पिट्ठा बनाकर एक दूसरे को खिलाने की परंपरा है. साथ ही जो नया अनाज यानी धान खेत से काटकर आया होता है, उसको मेह बनाकर उसके ऊपर दीपक जलाया जाता है और माना जाता है की इन अनाजों में मां लक्ष्मी वास करती हैं."- शंभू काजी, ग्रामीण

"दियराई के दिन शुद्ध सरसों तेल का दीपक जलाने की परंपरा है. इस दिन मिट्टी तेल यानी केरोसिन ऑयल का उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि माना जाता है की इससे प्रदूषण बढ़ता है. वहीं सोहराई के दिन "डार" खेलाया जाता है."-तेजप्रताप काजी, ग्रामीण

दियराई और सोहराई के रूप में दिवाली: दियराई के दिन महिलाएं जंगल किनारे से चिकनी मिट्टी लाकर खुद से दिया बनाती हैं और फिर उसमें शुद्ध सरसों का तेल और सूती कपड़े की बाती बनाकर दिया जलाया जाता है. इन दीयों को ये सबसे पहले घर और फिर खेत खलिहान से लेकर ब्रह्म स्थान और अन्य देवी देवताओं के पास जलाती हैं.

चिकनी मिट्टी से घर में बनाया जाता है दीया

"हम थारू समाज के लोग प्रकृति की पूजा को विशेष स्थान देते हैं. यहीं वजह है कि जल, अग्नि और पेड़ों की पूजा करने की परंपरा है. दिवाली पर आतिशबाजी नहीं करते क्योंकि इससे हमारे प्रकृति को नुकसान पहुंचता है. हमलोग दियराई और सोहराई के तौर पर दो दिनों तक दीपावली पर्व मनाते हैं."- डॉक्टर शारदा प्रसाद, ग्रामीण

कच्ची मिट्टी के दीयों से रोशन होता है घर: इस दिन थारू सबसे पहले रसोईघर में जाकर पश्चिम और उत्तर दिशा के कोने में मिट्टी के एक टीले पर दीप जलाते हैं, ताकि किचन में अन्न की कमी न हो. फिर कुआं या चापाकल पर दीया जलाते हैं. इसके बाद ब्रह्म स्थान और मंदिर में दीपोत्सव के बाद घर को दीप से जगमग करते हैं.

प्रकृति की पूजा करते हैं थारू समुदाय के लोग

कृषि से लेकर पशु तक की होती है पूजा: अंत में दहरचंडी (अग्निदेव) के समक्ष दीप जलाकर गांव की सुरक्षा की मन्नत मांगते हैं. इसके साथ साथ दीपावली के दिन ये अपने पशुओं को नहला धुलाकर आराम देते हैं. उनसे कोई काम नहीं लिया जाता है. साथ ही हल- बैल खुरपी, हसिया और कुदाल समेत सभी कृषि उपकरणों के पास दीप जलाकर अन्न धन बढ़ोतरी के लिए पूजा अर्चना करते हैं.

सोहराई मेंपिट्ठाबनाने की परंपरा: दूसरे दिन सोहराई पर्व मनाया जाता है. उस दिन चावल के आटा का पिट्ठा बनता है. साथ ही मांस मछली बनाने की भी परंपरा है. इसके साथ ही सोहराई के दिन अपने मवेशियों यानी गाय, बैल और भैंस को खूबसूरत तरीके से सजाते हैं. इसके लिए वे इन जानवरों के सींग में सरसों तेल से मालिश कर उसपर सिंदूर का लेप लगाते हैं और सींग में रिबन बांधकर विशेष सजावट करते हैं.

"इसी दिन "डार" प्रतियोगिता का आयोजन होता है, जिसमें एक सुअर को रस्सी से बांधकर मवेशी पालक अपने गाय, बैल और भैंसो से उसका शिकार कराते हैं. जिस चरवाहे का गाय, बैल या भैंस सुअर का शिकार करता है उसे इनाम दिया जाता है."-कुसुमी देवी, पूर्व बीडीसी

'डार' की प्रथा के पीछे की कहानी:डार की प्रथा के पीछे की कहानी यह है कि थारू जनजाति जंगल किनारे बसा हुआ है और इनके मवेशी अधिकांशतः जंगलों में चरने जाते हैं, जहां खूंखार जंगली जानवरों से उनका आमना सामना होता है. लिहाजा थारू समाज के लोग अपने जानवरों को निर्भीक बनाने के लिए "डार" प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं. ताकि जंगल में जब उनके पशुओं से बाघ, तेंदुआ, जंगली सुअर या भालू से आमना सामना हो तो उनके पालतू मवेशी डरे नहीं और वन्य जीवों का निर्भीकता से सामना कर सकें. हालांकि यह परंपरा अब कुछ ही गांवों में बची है क्योंकि वन अधिनियम कानून लागू होने के उपरांत इस पर बंदिशें लग गई हैं.

दिवाली मनाने की अनूठी परंपरा:दिवाली में थारू जनजाति के लोग दीपावली में आतिशबाजी नहीं करते हैं. इस दिन गांव की सभी महिलाएं और बच्चे समूह बनाकर जंगल किनारे से चिकनी मिट्टी लाते हैं और उसी से दीया बनाते हैं. इसी दीया को घर से लेकर अनाज और कृषि संसाधनों समेत मंदिरों में दीपक जलाकर पूजा किया जाता है. सोहराई के दिन अपने पशुओं को विशेष रूप से सजाकर बथुआ यानी सीताफल को काटा जाता है और उसमें नमक हल्दी मिलाकर सभी मवेशियों को खिलाया जाता है. साथ ही उसी के लेप को घर के दीवारों समेत पशुओं पर अपने हथेली से छाप मारा जाता है.

पीएम मोदी कर चुके हैं थारू समाज की प्रशंसा: थारू समाज के प्रकृति प्रेम की चर्चा कोरोनाकाल के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं. अपने मन की बात कार्यक्रम में पीएम ने कहा था कि पश्चिम चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग साठ घंटे का लॉकडाउन या उनके शब्दों में कहें तो साठ घंटे के बरना का पालन करते हैं.

पढ़ें- दीपावली और छठ को लेकर 75 जोड़ी स्पेशल ट्रेन का होगा परिचलन, यहां देखें पूरी लिस्ट

पढ़ें-Diwali 2023: हाथी घोड़े ऊंट वाली मिठाई, दिवाली पर शुभ मानी जाती है ये मिठाई

ABOUT THE AUTHOR

...view details