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Special Diwali of Uttarakhand 2023: अद्भुत है उत्तराखंड के इन क्षेत्रों की दीपावली, जानें क्या है खास

Diwali celebration in Uttarakhand उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां के व्रत, त्यौहार और उत्सव भी अद्भुत हैं. दीपावली आ रही है. पूरा देश 12 नवंबर को दीपावली मनाएगा. उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में विभिन्न तिथियों और विभिन्न तरीकों से दीपावली मनाई जाती है. आज हम आपको इन सभी दीपवालियों के बारे में बताएंगे.

Diwali celebration in Uttarakhand
उत्तराखंड की दीपावली

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2023, 11:44 AM IST

Updated : Nov 4, 2023, 12:03 PM IST

उत्तराखंड: 12 नवंबर को पूरा देश दीपावली का पर्व मनाएगा. अमूमन दीपावली एक दिन की होती है, लेकिन बात अगर उत्तराखंड की हो, तो यहां पर अलग-अलग तरह से और अलग-अलग तारीखों में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. गढ़वाल के टिहरी की दीपावली तीन तरह की होती है. जौनसार बावर में यह दीपावली मुख्य दीपावली के बाद मनाई जाती है. इसी तरह से कुमाऊं के कई हिस्सों में भी दीपावली का पर्व अलग-अलग तारीखों में मनाया जाता है.

इगास दीपावली का ही रूप है

गढ़वाल में यहां अलग है दीपावली मनाने का तरीका: उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन में टिहरी जिले के लोग दीपावली को अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं. यहां पर मुख्य दीपावली से ठीक 1 महीने बाद इस त्यौहार को मनाने की परंपरा है. टिहरी में कई जगहों पर दीपावली त्यौहार को मंगशीर की दीपावली कहा जाता है जो 12 नवंबर से ठीक 1 महीने बाद मनाई जाएगी.

वहीं इगास पर्व को मुख्य दीपावली से 11 दिन बाद मनाया जाता है. मंगशीर की दीपावली में यहां अपने खेतों या यह कहें टिहरी गढ़वाल के आसपास की पैदावार के व्यंजनों को बनाकर दीपावली पर्व को मानते हैं. गांव में खूब नृत्य आदि करते हैं. वहीं पहाड़ी दीपावली जिसको इगास पर्व के दिन एक लकड़ी को जलाकर उससे पूरे क्षेत्र में रोशनी करते हैं. एक जगह इकट्ठा होकर इस पर्व को मनाते हैं. टिहरी और आसपास के क्षेत्रों में इस दीपावली के पर्व को बेहद हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. देश और विदेश में रहने वाले लोग भी दीपावली को भले ही आएं या ना आएं, लेकिन इगास पर्व के दिन अपने गांव और घरों में जरूर पहुंचते हैं.

मशाल वाली दीपावली बहुत लोकप्रिय है

उत्तरकाशी में एक महीने बाद दीपावली इसलिए मनाई जाती है: वहीं अगर बात गढ़वाल के ही उत्तरकाशी की करें तो यहां पर दीपावली ठीक मुख्य दीपावली से एक महीने बाद मनाई जाती है. यहां की दीपावली की कहानी बेहद रोचक है. यहां की दीपावली को लोग बग्वाल का उत्सव या मंगशीर भी कहते हैं. यह दीपावली ठीक 1 महीने बाद मनाई जाती है. कहा जाता है कि सन 1627 और 28 के बीच जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमा के अंदर आकर सब कुछ लूटपाट रहे थे, तो राजा नरेश ने माधो सिंह भंडारी और लोधी रिखोला के साथ मिलकर तिब्बती लुटेरों को दीपावली से ठीक 1 महीने बाद खदेड़ने का काम किया था. तब पूरे गांव में दीपावली का पर्व मनाया गया था. तभी से यहां के लोग दीपावली से ठीक 1 महीने बाद हर्ष और उल्लास के साथ दीपावली मनाते हैं.

ढोल दमाऊं के साथ दीपावली का सेलिब्रेशन

भोटिया समुदाय की दीपवाली भी है बेहद खास: उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में आज भी भोटिया समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. यहां की दीपावली दशहरे से ठीक 1 दिन पहले मनाई जाती है. यहां के लोग अपने घरों में तरह-तरह के पकवान बनाते हैं और फिर हाथों में मशाल लेकर पूरे क्षेत्र में एक जुलूस निकालते हैं. इसको भोटिया समुदाय के लोग दीपावली पाव कहते हैं. हर साल माघ महीने में जब अमावस्या पड़ती है तब यहां के लोग इस पर्व को मनाते हैं. जिस मशाल को लेकर यह जुलूस निकालते हैं वह भी चीड़ के पेड़ों से बनी होती है. कहा जाता है कि इस तरह से दीपावली मनाने से उनके परिवार में और उनके समाज में और आसपास के क्षेत्र में खुशहाली आती है.

दीपावली पर गीत संगीत के साथ नृत्य

जौनसार की दीपावली है बहुत प्रसिद्ध:गढ़वाल के ही जौनसार बावर क्षेत्र में दीपावली का पर्व देखने लायक होता है. यहां पर भी मुख्य दीपावली से ठीक 1 महीने बाद इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. लोग इसे बूढ़ी दीपावली भी कहते हैं. खास बात यह है कि इस पर्व को मनाते वक्त इस पूरे क्षेत्र में ना तो किसी तरह का कोई प्रदूषण होता है, और ना ही किसी तरह की कोई आतिशबाजी की जाती है. यहां पर भी लोग हाथों में मशाल लेकर अपने रिश्तेदारों नातेदारों और आसपास के क्षेत्र में जाते हैं. उनके घर जाकर या उनको अपने घर बुलाकर समूह में नृत्य करते हैं. ढोल और दमाऊं की थाप पर यह के लोग रात भर दीपावली का पर्व बड़े उत्सव से मनाते हैं.

दीपावली पर ऐपण की अलग रंगत होती है

कुमाऊं में ऐपण से सजाते हैं घर: उत्तराखंड में ही दूसरा रीजन है कुमाऊं का. कुमाऊं में भी दीपावली अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है. कुमाऊं क्षेत्र में शरद पूर्णिमा के दिन से ही इस पर्व को लोग मनाने लगते हैं. अपने घरों के आसपास दीपक जलाते हैं और यह सिलसिला एक महीने तक चलता रहता है. खास बात यह है कि धनतेरस के दिन यहां के लोग ऐपण बनाकर अपने घरों की सजावट करते हैं. रंगबिरंगी लाइट से घरों से अंधेरे को दूर किया जाता है. मुख्य दीपावली के दिन यहां के घरों की महिलाएं गन्ने की पूजा करती हैं. खास तरह के पकवान तैयार किये जाते हैं. इसमें केले, दही, घी, मालपुआ और तरह-तरह के व्यंजनों को बनाकर आपस में बांटा जाता है. कुमाऊं में लंबे समय से आतिशबाजी करने का दौर रहा है.
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Last Updated : Nov 4, 2023, 12:03 PM IST

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