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क्यों मनाते हैं दीपावली, यह हैं हमारे पौराणिक व धार्मिक प्रसंग व प्रमुख कारण

दीपावली मनाने के साथ साथ आज की पीढ़ी के लोग यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर दीपावली का पर्व मनाने के पीछे प्रमुख कारण क्या है और यह प्रकाश पर्व क्यों मनाया जाता है. तो आइए ईटीवी भारत के साथ जानने की कोशिश करते हैं कि दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे कौन-कौन से कारण हैं और इस त्यौहार को मनाने के बारे में कौन-कौन सी कथाएं प्रचलित हैं.....

Diwali Celebration Related Mythological and Religious Context
दीपावली 2022

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Published : Oct 17, 2022, 3:57 PM IST

हमारे देश में दीपावाली का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली के कई दिन पहले से त्यौहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और दीपावली के बाद भी यह चलती रहती हैं. हर एक इस प्रकाश पर्व दीपावली को अपने अंदाज में मनाता है. इस समय हम अपने घरों की साफ सफाई करने के साथ साथ उसे संजाने संवारने की कोशिश करते हैं. इसके लिए लगभग एक सप्ताह तक त्योहारों का सिलसिला चलता है.

दीपावली मनाने के साथ साथ आज की पीढ़ी के लोग यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर दीपावली का पर्व मनाने के पीछे प्रमुख कारण क्या है और यह प्रकाश पर्व क्यों मनाया जाता है. तो आइए ईटीवी भारत के साथ जानने की कोशिश करते हैं कि दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे कौन-कौन से कारण हैं और इस त्यौहार को मनाने के बारे में कौन-कौन सी कथाएं (Mythological and Religious Context) प्रचलित हैं.....

अयोध्या में दीपावली

1. भगवान राम के अयोध्या आगमन की कथा
हमारे हिंदू धर्म की धार्मिक ग्रंथों में यह कहा जाता है कि भगवान श्री राम के लंका विजय के पश्चात अयोध्या आगमन की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जब प्रभु श्री राम लंका विजय के पश्चात् अयोध्या लौटे थे, तो 14 वर्ष बाद उनको अपने बीच पाकर अयोध्यावासियों ने घर आंगन और दरवाजे को साफ-सुथरा करके नए नए वस्त्रों में सज धज कर खुशी मनायीं थीं और दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था. इस दौरान पूरे शहर को दीपों से सजाया गया था और लोग अपने आसपास के लोगों को मिठाईयां बांटकर उत्सव मनाया था. तभी से हर साल दीपावली का त्यौहार प्रचलित है.

नरकासुर के वध व महिलाओं की मुक्ति

2. नरकासुर के वध व महिलाओं की मुक्ति की कथा
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था. उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया. वह संतों को भी त्रास देने लगा. साथ ही महिलाओं पर भी अनैति रुप से अत्याचार करने लगा. उसने संतों आदि की 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर अपने पास रख लिया था और उनको तरह तरह से प्रताड़ित भी कर रहा था. जब उसका अत्याचार हद से ज्यादा हो गया तो देवताओं के साथ साथ अन्य ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. तब भगवान श्रीकृष्ण ने सभी को नराकासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया. नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था. इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध करवाया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलायी गयी. उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए गए. तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाता है.

समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का प्रकट होना

3. समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी के प्रकट होने की कथा
दीपावली पर देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है. लक्ष्मी की उत्पत्ति के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है. समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे, जिसमें विष से लेकर अमृत तक का वर्णन है. इसके साथ ही साथ समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी भी निकली थीं, देवी लक्ष्मी को देवता, दानव और ऋषि सभी अपने साथ रखना चाहते थे, लेकिन लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण किया था. लक्ष्मी को धन धान्य, वैभव, संपदा इत्यादि के रुप में जाना जाता है. यह सब उन लोगों के पास ही सदैव रहता है, जो अपने कर्म को महत्व देते हैं और धर्म का दामन थामे रहते हैं. इसीलिए भगवान विष्णु ने अपने एक के बाद एक अवतारों के माध्यम से कर्म करते रहने और धर्म के मार्ग पर चलने का ही संदेश दिया है.

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दीपक के उत्पन्न होने का प्रसंग

4. दीपक के महत्व को स्थापित करने की कथा
दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है, क्योंकि वह स्वयं जलता है, लेकिन दूसरों को प्रकाशित करता है. इसी विशेषता के कारण दीपक को धार्मिक ग्रंथों में ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है. हमारे यहां यह भी मान्यता है कि दीपदान से शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त होती हैं. जहां कहीं सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है, वहां पर दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है. इसीलिए दीपक को सूर्य का भाग 'सूर्यांश संभवो दीप:' कहा जाता है. हमारे धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण के अनुसार दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है. यज्ञ देवताओं और मनुष्य के मध्य संवाद करने का सर्वोत्तम माध्यम माना जाता है. यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक की पूजा का खास महत्व है. दीपावली इसके लिए खास पर्व है.

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