हमारे देश में दीपावाली का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली के कई दिन पहले से त्यौहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और दीपावली के बाद भी यह चलती रहती हैं. हर एक इस प्रकाश पर्व दीपावली को अपने अंदाज में मनाता है. इस समय हम अपने घरों की साफ सफाई करने के साथ साथ उसे संजाने संवारने की कोशिश करते हैं. इसके लिए लगभग एक सप्ताह तक त्योहारों का सिलसिला चलता है.
दीपावली मनाने के साथ साथ आज की पीढ़ी के लोग यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर दीपावली का पर्व मनाने के पीछे प्रमुख कारण क्या है और यह प्रकाश पर्व क्यों मनाया जाता है. तो आइए ईटीवी भारत के साथ जानने की कोशिश करते हैं कि दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे कौन-कौन से कारण हैं और इस त्यौहार को मनाने के बारे में कौन-कौन सी कथाएं (Mythological and Religious Context) प्रचलित हैं.....
1. भगवान राम के अयोध्या आगमन की कथा
हमारे हिंदू धर्म की धार्मिक ग्रंथों में यह कहा जाता है कि भगवान श्री राम के लंका विजय के पश्चात अयोध्या आगमन की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जब प्रभु श्री राम लंका विजय के पश्चात् अयोध्या लौटे थे, तो 14 वर्ष बाद उनको अपने बीच पाकर अयोध्यावासियों ने घर आंगन और दरवाजे को साफ-सुथरा करके नए नए वस्त्रों में सज धज कर खुशी मनायीं थीं और दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था. इस दौरान पूरे शहर को दीपों से सजाया गया था और लोग अपने आसपास के लोगों को मिठाईयां बांटकर उत्सव मनाया था. तभी से हर साल दीपावली का त्यौहार प्रचलित है.
2. नरकासुर के वध व महिलाओं की मुक्ति की कथा
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था. उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया. वह संतों को भी त्रास देने लगा. साथ ही महिलाओं पर भी अनैति रुप से अत्याचार करने लगा. उसने संतों आदि की 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर अपने पास रख लिया था और उनको तरह तरह से प्रताड़ित भी कर रहा था. जब उसका अत्याचार हद से ज्यादा हो गया तो देवताओं के साथ साथ अन्य ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. तब भगवान श्रीकृष्ण ने सभी को नराकासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया. नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था. इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध करवाया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलायी गयी. उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए गए. तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाता है.