नई दिल्ली :कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला खुशियों और रोशनी का त्योहार दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और प्राचीन त्योहार है. यह त्योहार मां लक्ष्मी के सम्मान में मनाया जाता है. कुछ जगहों पर इस त्योहार को नए साल की शुरुआत भी माना जाता है. यह त्योहार भगवान राम और माता सीता के 14 वर्ष के वनवास के बाद घर आगमन की खुशी में मनाया जाता है. कथाओं के अनुसार, दीपावली के दिन ही भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था.
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि यह भी कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया, तब ब्रजवासियों ने इस दिन दीप प्रज्ज्वलित कर खुशियां मनाईं. जैन धर्म के लोग इस त्योहार को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं. दीपावली की रात को मां लक्ष्मी ने पति के रूप में भगवान विष्णु को चुना और उनसे विवाह किया. दीपावली का त्योहार भगवान विष्णु के वैकुंठ में वापसी के दिन के रूप में भी मनाया जाता है. यह भी मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या के दिन मां लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुई थीं. इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था. दीपावली की रात मां काली की पूजा का भी विधान है.
कार्तिक मास की अमावस्या की आधी रात में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में जाती हैं. जिस घर में स्वच्छता और शुद्धता होती है, वह वहां निवास करती हैं. इस दिन भगवान गणेश को भी पूजा जाता है. गणेश जी को मां लक्ष्मी के साथ पूजने के बारे में एक पौराणिक कथा है. ग्रंथों के मुताबिक, एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की इच्छा जागृत हुई, इसके लिए उसने मां लक्ष्मी की आराधना शुरू की. कड़ी तपस्या और आराधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और उसे दर्शन देकर वरदान दिया कि उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा.
ये भी पढ़ें- दीपावली पर दुर्लभ संयोग देगा आर्थिक लाभ, शुभ फल की होगी प्राप्ति
इसके बाद वह साधु राज दरबार में पहुंचा. वरदान मिलने से उसे अभिमान हो गया था. उसने भरे दरबार में राजा को धक्का मारा, जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया. राजा व उसके साथी उसे मारने के लिए दौड़े. इस बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक कालानाग निकल कर बाहर आया. सभी चौंक गए और साधु को चमत्कारी समझकर, उसकी जय जयकार करने लगे. राजा ने इस बात से प्रसन्न होकर साधु को अपना मंत्री बना दिया. उस साधु को रहने के लिए अलग से महल भी दे दिया गया. राजा को एक दिन वह साधु भरे दरबार से हाथ खींचकर बाहर ले गया. यह देख दरबारी जन भी पीछे भागे. सभी के बाहर जाते ही भूकंप आया और भवन खंडहर में तब्दील हो गया. लोगों को लगा कि साधु ने सबकी जान बचाई. इसके बाद साधु का मान-सम्मान और भी ज्यादा बढ़ गया. अब इस वैरागी साधु में अहंकार और भी ज्यादा बढ़ गया.
ये भी पढ़ें-जानिए, नवंबर में आपकी राशि पर तीन ग्रहों का कैसा रहेगा असर
राजा के महल में एक गणेश जी की प्रतिमा थी. एक दिन साधु ने यह कहकर वह प्रतिमा हटवा दी कि यह देखने में बिल्कुल अच्छी नहीं है. कहा जाता है कि साधु के इस कार्य से गणेश जी रुष्ठ हो गए. उसी दिन से उस मंत्री बने साधु की बुद्धि भ्रष्ट होनी शुरू हो गई और वह ऐसे काम करने लगा जो लोगों की नजरों में काफी बुरे थे. इसे देखते हुए राजा ने उस साधु से नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया. साधु जेल में एक बार फिर से लक्ष्मी जी की आराधना करने लगा. लक्ष्मी जी ने दर्शन देकर उससे कहा कि तुमने भगवान गणेश का अपमान किया है. गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो. इसके बाद वह साधु गणेश जी की आराधना करने लगा. इस आराधना से गणेश जी का क्रोध शांत हो गया. एक रात गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आकर कहा कि साधु को फिर से मंत्री बनाया जाए. राजा ने आदेश का पालन करते हुए साधु को मंत्री पद दे दिया. इस घटना के बाद से मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा एक साथ होने लगी.
शास्त्रों के अनुसार, लक्ष्मी जी को धन का प्रतीक माना गया है, जिसकी वजह से लक्ष्मी जी को, इसका अभिमान हो जाता है. विष्णु जी इस अभिमान को खत्म करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा कि स्त्री तब तक पूर्ण नहीं होती है, जब तक वह मां न बन जाये. लक्ष्मी जी का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए यह सुन वे बहुत निराश हो गईं. तब वे देवी पार्वती के पास गईं. पार्वती जी के दो पुत्र थे, इसलिए लक्ष्मी जी ने, उनसे एक पुत्र को गोद लेने को कहा. पार्वती जी जानती थीं कि लक्ष्मी जी एक स्थान पर लंबे समय नहीं रहती हैं. इसलिए वे बच्चे की देखभाल नहीं कर पाएंगी, लेकिन उनके दर्द को समझते हुए उन्होंने अपने पुत्र गणेश को उन्हें सौंप दिया. इससे लक्ष्मी जो बहुत प्रसन्न हुईं. उन्होंने कहा कि सुख-समृद्धि के लिए पहले गणेश जी की पूजा करनी पड़ेगी, तभी मेरी पूजा संपन्न होगी.
इन मंत्रों से करें मां को प्रसन्न
ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:
ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:
ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:
ऊं अमृतलक्ष्म्यै नम:
ऊं कामलक्ष्म्यै नम:
ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम: