चंडीगढ़: एक तरफ देश में कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता उनको मिली 2 साल की सजा के बाद रद्द होने को लेकर बवाल मचाया हुआ है, तो वही हरियाणा में भी एक इसी तरह का मामला बीते वक्त में आया था. जब एक विधायक को 3 साल की सजा हुई थी. उनकी सदस्यता रद्द हुई, लेकिन उन्होंने हाईकोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ याचिका दायर की जिसके बाद उनकी सदस्यता भी बहाल हो गई थी.
कालका से कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी को सुनाई गई थी तीन साल की सजा: यह मामला कालका से कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी से जुड़ा हुआ है. उनको हिमाचल प्रदेश के बद्दी की एक अदालत ने जनवरी 2021 में एक मामले में 3 साल की सजा सुनाई. उनको यह सजा बद्दी चौक पर जाम लगाने और सरकारी काम में बाधा डालने के मामले में सुनाई गई थी, जिसके 2 दिन बाद ही हरियाणा विधानसभा से उनकी सदस्यता रद्द हो गई थी, लेकिन इस मामले में प्रदीप चौधरी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जिस पर हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद मई 2021 में हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ने कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी की सदस्यता बहाल करने की घोषणा की.
वहीं, अब राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द हो गई है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इसको एक राजनीतिक मुद्दा बना रही है. यह कितना सही है या कितना गलत इस पर कानून के जानकार क्या कहते हैं. उसके लिए हमने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन से बात की.
क्या कहते हैंएडिशनल सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन?: राहुल गांधी के मामले को लेकर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन कहते हैं कि राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने का मामला पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक है. इसको भी राजनीतिक रंग क्यों दे रहे हैं इस पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता. वे कहते हैं कि कानून की कई धाराएं हैं जो व्याख्या करती हैं कि कौन व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है और कौन नहीं. उसी में धारा 8 के मुताबिक कोई व्यक्ति जिसे 2 या 2 साल से अधिक की सजा होती है वह व्यक्ति 6 साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है. यह प्रावधान आज का नहीं है 1951 का कानून बना हुआ है.
वे कहते हैं कि इस लिस्ट में पहले एक छूट थी जिसके तहत अगर यह सजा किसी आम आदमी को होती है तो उस पर जो प्रावधान तुरंत लागू हो जाता था. वहीं, विधानसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्य के लिए इसमें 3 महीने की छूट का प्रावधान था. यानी वे 3 महीने के अंदर इस मामले में याचिका ऊपरी कोर्ट में दायर कर सकते थे और जब तक उस अपील पर कोई फैसला नहीं आता तब तक वह लागू नहीं होगी. वे कहते हैं कि इस संबंध में मामला सुप्रीम कोर्ट में आया जहां पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून संगत नहीं है कि आम आदमी पर जो धारा तुरंत लागू हो जाती है और विधायक और सांसदों पर नहीं.
राहुल गांधी के पास हैं ये विकल्प: सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी माना और इसलिए आम लोगों की तरह ही जनप्रतिनिधियों पर भी इसको उसी वक्त लागू करने का फैसला सुनाया. इसलिए राहुल गांधी के मामले में भी जैसे ही कोर्ट ने निर्णय सुनाया, उसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गई. वे कहते हैं कि राहुल गांधी के पास इस मामले में दो रास्ते हैं एक तो वे इस मामले में ऊपरी अदालत में अपील करें. अब यह अपील राहुल गांधी ने करनी है या नहीं करनी है इसका फैसला उन्हें लेना है. दूसरा अगर उनकी अपील पर उनको सुनाई गई सद पर उन्हें स्टे मिलती है तो फिर उनकी सदस्यता पर दोबारा विचार हो सकता है. या फिर अपील में पूरा निर्णय होने के बाद जिसमें की एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है.
राहुल गांधी के पास है ये रास्ता: उसमें अगर उनकी सजा कम होती है तो भी उस पर विचार किया जा सकता है. ऐसे में राहुल गांधी के पास फिलहाल एक ही रास्ता है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करें. वे कहते हैं कि लेकिन यह लगता है कि कांग्रेस के लोग इस मामले में अपील दायर करने से ज्यादा राजनीति करना चाहते हैं. हालांकि वह कितना राजनीतिक रंग इसको दे पाएंगे उस पर तो मैं कुछ कहना नहीं चाहता. कानूनी दृष्टि से उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.
वे कहते हैं कि कानून में हर चीज का प्रावधान है, लेकिन उसके लिए आपको कानूनी प्रक्रिया का रास्ता ही अपनाना होगा. हालांकि यह राहुल गांधी की लीगल टीम पर निर्भर करता है कि वह कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाना चाहते हैं या नहीं. वे कहते हैं कि इसी कानूनी प्रावधान तहत कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को जब हिमाचल की एक कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई तो उसके बाद हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ने उनकी सदस्यता को रद्द कर दिया था. वहीं, जॉब हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर स्टे लगा दिया तो फिर विधानसभा स्पीकर ने उनकी सदस्यता को बहाल कर दिया था.
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