रांची: झारखंड के सियासी खेमें में हलचल मची हुई है. भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर पत्थर खदान लीज मामले में 10 मई तक जवाब मांगा है. निर्वाचन आयोग कह चुका है कि प्रथम दृष्टया यह मामला लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9A के तहत बनता है. लिहाजा, आपको क्यों न अयोग्य घोषित किया जाए. अब सीएम को जवाब देना है. इसके बाद चुनाव आयोग अपने फैसले से राज्यपाल को अवगत कराएगा.
ये भी पढ़ें-झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग का शोकॉज नोटिस, खुद को खनन पट्टा जारी करने के मामले में पूछा-कार्रवाई क्यों न की जाए
जानकारों का कहना है कि 15 से 20 मई के बीच यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. इसके बाद शुरू होगा असली खेल. अगर सीएम हेमंत सोरेन को अयोग्य करार दिया जाता है तो उन्हें या तो इस्तीफा देना पड़ेगा या फिर बर्खास्तगी होगी. लिहाजा, अभी से ही राजनीतिक विपल्पों पर चर्चा शुरू हो गई है. हालिया स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दो विकल्प नजर आ रहे हैं. एक हैं हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन और दूसरे हैं उनके पिता सह झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन. जानकारों का मानना है कि सत्ताधारी दलों में हो रही खींचतान के लिहाज से शिबू सोरेन को सामने लाना मुफिद होगा. इससे गठबंधन की एकता बनी रह सकती है. क्योंकि पिछले कुछ दिनों से झामुमो के ही कुछ विधायक खतियान के आधार पर स्थानीयता और पेसा एक्ट को लेकर सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं. इनमें सबसे मुखर होकर विरोध कर रहे हैं लोबिन हेंब्रम. गुरू जी की बहू सीता सोरेन भी वर्तमान व्यवस्था से नाराज चल रही है.
राजपाट पर नियंत्रण के लिहाज से कल्पना सोरेन का सीएम बनना सबसे बेहतर विकल्प के रूप में नजर आ रहा है. लेकिन वह मूलरूप से ओड़िशा की रहने वाली हैं. अब देखना होगा कि क्या वह झारखंड के किसी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ने की योग्यता रखती हैं. साथ ही कल्पना सोरेन के नाम पर पार्टी की एकजुटता संदेहास्पद लग रही है.
एक तीसरे विकल्प की भी यहां जोर शोर से चर्चा हो रही है. चूकि सत्ताधारी दल कांग्रेस में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. इरफान अंसारी, राजेश कच्छप, उमाशंकर अकेला और नमन विक्सल कोनगांडी लगातार संगठन पर दबाव डाल रहे हैं. पार्टी विधायक अपने ही मंत्री खासकर बन्ना गुप्ता को घेरते नजर आते हैं. ऐसे में जानकारों का मानना है कि कांग्रेस खेमे की गुटबाजी एक नया राजनीतिक समीकरण खड़ी कर सकती है. ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
ये भी पढ़ें-चुनाव आयोग को भेजे गए सीएम पर आरोपों से जुड़े दस्तावेज, अब क्या होगा आगे ?
संविधान और विधायी प्रक्रिया के जानकारों का कहना है कि यह देखना होगा कि अयोग्यता के साथ क्या शर्त रखी जाती है. क्योंकि संवैधानिक रूप से भारत में यह अपने आप में एक नया मामला होगा. इसलिए इसका इंटरप्रेटेशन भी अलग-अलग तरीके से होगा. क्योंकि झामुमो का दावा है कि मामले के पब्लिक डोमेन में आने के साथ ही सीएम ने लीज को सरेंडर कर दिया था. जानकार यह भी कह रहे हैं कि यदि हेमंत सोरेन अयोग्य करार दिए जाते हैं तो यह मामला शीर्ष अदालत तक जरूर पहुंचेगा. उसके बाद एक नई राजनीतिक तस्वीर भी उभर सकती है.
फिलहाल, सबकी नजर राजभवन पर टिकी है, जहां से अंतिम फैसला आना है. इससे पहले यह देखना दिलचस्प होगा कि सीएम हेमंत सोरेन की तरफ से चुनाव आयोग को जवाब में क्या कुछ भेजा जाता है. इसकी जानकारी मीडिया से साझा की जाती है या नहीं. सत्ताधारी दलों का अगला रूख क्या होगा. क्योंकि 10 फरवरी को जब रघुवर दास ने इस मामले को उठाया था, तब झामुमो ने इसे बहुत हल्के में लिया था. पार्टी स्तर पर किसी तरह का विरोधी स्वर नहीं दिखा था. पार्टी की नींद तब खुली जब राजभवन ने रघुवर दास के शिकायत पत्र को चुनाव आयोग को बढ़ाया. जानकार कह रहे हैं कि कहीं न कहीं मामले की गंभीरता को समझने में झामुमो ने देरी की. इसके लिए सलाहकारों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. वैसे मुख्यमंत्री दिल्ली में कह चुके हैं कि इस मसले पर जो भी बात होगी, उसे उचित प्लेटफॉर्म पर रखा जाएगा.