उडुपी (कर्नाटक) :मनुष्य, ईश्वर के महानतम जीवों में से एक है, लेकिन इनका जीवन एक-दूसरे से अलग होता है. वहीं, दुनिया के अधिकांश लोग अपने शरीर से काफी अच्छे होते हैं तो वहीं, कुछ लोग अपने दिमाग से काफी बुरे. ऐसे लोगों का जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता है. दुनिया में इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जो कुछ भी हासिल करने के लिए काफी मेहनत करते हैं, लेकिन जब वे अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते तो वे निराश हो जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए कर्नाटक के उडुपी जिले के बिंदूर से दिव्यांग बालाकृष्णन प्रेरणास्रोत हैं.
मूलरूप से केरल के हैं बालाकृष्णन
बता दें, दिव्यांग बालाकृष्णन मूल रूप से केरल के रहने वाले हैं. किसी कारणवश वे बिंदूर तालुक के जादकल में आकर बस गए. वे बचपन से ही दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी दिव्यांगता को अपनी जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया. दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने प्रयास करते हुए अपने घर में लगे पेड़-पौधों में हर दिन पानी और उर्वरकों डालने की ठानी. इसके लिए उन्होंने एक नर्सरी भी बनाई है. बता दें, पहले वह रेडियो और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मरम्मत का काम करते थे, लेकिन 80% तक अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद वह कृषि कार्य में जुट गए.
खुद बने और दूसरों को भी बना रहे आत्मनिर्भर
वर्तमान समय में दिव्यांग बालाकृष्णन पूरी तरह से कृषि के कामों में व्यस्त रहते हैं. इससे इनको काफी लाभ भी हुआ है. दिव्यांग बालाकृष्णन ने अपने को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. वह पौधों की नई किस्मों को विकसित करते हैं और लोगों को पौध देकर मदद भी करते हैं. दिव्यांग बालाकृष्णन के पास एक एकड़ जमीन है, इसी जमीन पर वह विभिन्न प्रकार के पौधों को उगाते हैं और दूसरों को बेचते हैं. बालाकृष्णन अपने खेत में रबड़, काली मिर्च, एरेका नट, आम और कई अन्य औषधीय पौधों की खेती करते हैं.