हैदराबाद :एक ऐसे समय में जब इंसान अत्याधुनिक डिजिटल माध्यमों से घिरा हुआ है, उसकी सेहत ठीक और गुणवत्तापूर्ण कैसे रहे यह मानो यक्षप्रश्न बन गया है. इंसान डिजिटल माध्यमों से एक दूसरे से कनेक्ट तो हो रहा है, हमारे पास डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य भी है, लेकिन हम इसकी गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित करें, यह बड़ा सवाल है.
एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक आबादी का एक चौथाई, जीवन के किसी न किसी मोड़ पर मानसिक विकार से प्रभावित होता ही है. एक आंकड़े पर नजर डालें तो मानवता बहुत बड़ी कीमत चुका रही है. दरअसल, हर साल लगभग 8,00,000 लोग आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या युवा लोगों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है.
20 साल में अरबों के नुकसान की आशंका
अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित लोग अपनी क्षमता का एहसास नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अक्सर मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले बड़े पैमाने पर सामने आते हैं. साल 2011 और 2030 के बीच, दुनिया भर में मानसिक विकारों से जुड़ी संचयी आर्थिक उत्पादन (cumulative economic output) में लगभग 16.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि होने का अनुमान है.
सेहत ठीक न रहने का आर्थिक पहलू
मानसिक स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण एक अनुमान के मुताबिक नियोक्ताओं को प्रति वर्ष 2,000 डॉलर प्रति कर्मचारी का बोझ उठाना पड़ता है. ऐसा प्रेजेंटिज्म के कारण (presenteeism) होता है, क्योंकि इस स्थिति में कर्मचारी कार्यालय में उपस्थित तो होता है, लेकिन वह वर्तमान में लेकिन ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ होता है. इस राशि में कर्मचारियों की अनुपस्थिति और अनावश्यक मौजूदगी से जुड़ी लागत भी शामिल है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागत के संदर्भ में देखने पर यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5% तक भी हो सकता है.
अभूतपूर्व डिजिटल नवाचार
गौरतलब है कि कोरोना महामारी (COVID -19) ने एक अभूतपूर्व दर से डिजिटल नवाचार को गति दी है, सेवाओं का तरीका बदलने के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली में भी बदलाव आया है. अत्याधुनिक तकनीक के साथ लोगों को आगे बढ़ने का एक बड़ा अवसर भी मिला है.