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शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर संत आमने-सामने, रविंद्र पुरी बोले 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना'

शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर संत आमने-सामने आ गए हैं. एक ओर अखाड़ा परिषद के पूर्व प्रवक्ता रहे बाबा हठयोगी ने शंकराचार्य की नियुक्ति का समर्थन किया. दूसरी ओर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने किसी भी सूरत में शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया है. उनका कहना है कि जो लोग भंडारा खाकर आए हैं, वो ही लोग नए शंकराचार्य का समर्थन कर रहे हैं.

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Published : Sep 26, 2022, 4:41 PM IST

शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर संत आमने-सामने
शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर संत आमने-सामने

हरिद्वारःशारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद नए उत्तराधिकारी की घोषणा हो चुकी है. लेकिन इस घोषणा को लेकर संत समाज आपस में एकमत नहीं है. कोई संत अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को शंकराचार्य मान रहा है तो कोई उन्हें शंकराचार्य मानने से साफ इंकार कर रहा है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद जहां अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बनाए जाने को अवैध करार दे रहा. वहीं, अखाड़ा परिषद के पूर्व प्रवक्ता रहे बाबा हठयोगी ने समर्थन में आकर शंकराचार्य की नियुक्ति को सही ठहराया है. साथ ही दूसरे संतों पर भ्रामक प्रचार करने का आरोप भी लगाया है.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhil Bharatiya Akhara Parishad) के पूर्व प्रवक्ता बाबा हठयोगी महाराज (Baba Hathyogi Maharaj) का कहना है कि शंकराचार्य की नियुक्ति का अखाड़ों से कोई लेना देना नहीं है. न ही अखाड़े शंकराचार्य की नियुक्ति करते हैं. शंकराचार्य का चुनाव काशी विद्वत परिषद की ओर से किया जाता है. अन्य पीठ के शंकराचार्य रिक्त पीठ पर शंकराचार्य की नियुक्ति करते हैं. वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए आश्रम अखाड़ों, मठ मंदिरों में रोजाना संपत्ति को लेकर गुरु-शिष्य और आम जनमानस में झगड़े होते हैं.

शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर संत आमने-सामने.

इतना ही नहीं मामले में कोर्ट में लंबी लड़ाई भी चलती है. उसको देखते हुए ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने शिष्यों को शंकराचार्य नियुक्त किया था. जिसका सभी संतों को सम्मान करना चाहिए. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एवं स्वामी सदानंद सरस्वती उच्च कोटि के विद्वान महापुरुष हैं और वर्तमान में शंकराचार्य पद के योग्य हैं.
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वहीं, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी (Akhara Parishad President Ravindra Puri) ने कहावत का सहारा लेते हुए कहा कि 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' ऐसा ही हाल कुछ संतों का है. जिनका इस विषय से कोई लेना देना नहीं है, वे बेवजह मामले में कूद रहे हैं. यह विषय अखाड़ा परिषद का नहीं, बल्कि संन्यासी अखाड़ों का है. संन्यासी अखाड़े अपने गुरु को मिलकर चुनते हैं. तभी वो शंकराचार्य कहलाते हैं.

उन्होंने कहा कि हमारा विरोध ज्योतिष पीठ (Jyotish Peeth in Uttarakhand) को लेकर है. जिसके शंकराचार्य हम सभी संन्यासियों के गुरु होते हैं. रविंद्र पुरी ने साफ कहा कि हमसे बिना पूछे कोई भी हमारा गुरु बन जाएगा तो हम उसे कैसे मान लेंगे? जो साधु संत वहां जाकर भंडारा खाकर आए हैं, वो उनके पक्ष में बोलेंगे. उन्होंने फिर दोहराया कि संन्यासी अखाड़ा किसी भी हाल में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य नहीं मानेगा.

गौर हो बीती 11 सितंबर को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली थी. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. स्वरूपानंद सरस्वती शारदापीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य थे.

स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद ज्योतिष पीठ (ज्योतिष पीठ) के नए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Jyotish Peeth Shankaracharya) होंगे. जबकि, शारदा पीठ के नए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती को बनाया गया है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की देह को समाधि देने से पहले पूरे विधि विधान के साथ उनके उत्तराधिकारी की घोषणा की गई थी. लेकिन अखाड़ा परिषद ने उन्हें शंकराचार्य मानने से इनकार किया है.
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