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उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार

क्सफोर्ड की इकोनॉमिक्स (Oxford Economics) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक मजबूत मुद्रास्फीति के बावजूद, भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं (emerging economies) में वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार
उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार

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Published : Oct 21, 2021, 4:43 PM IST

नई दिल्ली : ऑक्सफोर्ड की इकोनॉमिक्स (Oxford Economics) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक मजबूत मुद्रास्फीति और डेल्टा प्रेरित वैश्विक आपूर्ति व्यवधानों (global supply disruptions) के बावजूद, भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाओं (emerging economies) में वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है क्योंकि सिस्टम में काफी लिक्विडटी है, ब्याज दरें रिकॉर्ड कम हैं और संपत्ति की कीमतें अधिक हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बडी़ मात्रा में तरलता उभरते बाजारों के लिए वित्तीय स्थिति को अनुकूल बनाए रखना चाहिए, भले ही उभरते बाजार बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव में आते हैं और कमजोर मुद्राएं इन देशों में कुछ केंद्रीय बैंकों (central banks) को नीति को सख्त करने के लिए मजबूर करती हैं.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री तमारा बेसिक वासिलजेव (amara Basic Vasiljev) के विश्लेषण के अनुसार, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और चीन को छोड़कर रियल एस्टेट की कीमतें (न) अधिक हैं, जहां एवरग्रांडे संकट (Evergrande crisis) के कारण देश के रियल एस्टेट बाजार में दरारें दिखाई देने लगी थीं.

आज (21 अक्टूबर 2021) सुबह जब कंपनी के शेयरों में 17 दिन के ब्रेक के बाद कारोबार शुरू हुआ तो एवरग्रांडे के शेयरों में हांगकांग के शेयर बाजार में 14% की गिरावट दर्ज की गई.

हालांकि चीन का एवरग्रांडे संकट अभी भी एक खतरा बना हुआ है, एक बहुत बड़ी समस्या कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में उच्च मुद्रास्फीति है जो उनके केंद्रीय बैंकों को मौद्रिक नीति को सख्त करने के लिए मजबूर कर सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक उभरते बाजार केंद्रीय बैंक हॉक्स कैंप (hawk's camp) में शामिल हो रहे हैं.

भारत में रिजर्व बैंक (Reserve Bank ) ने इस महीने की शुरुआत में घोषित नीतिगत दरों में यथास्थिति बनाए रखी, यह लगातार आठवां मौका था, जब आरबीआई ने प्रमुख नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने का फैसला किया क्योंकि यह उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहा है, लेकिन कम दर बनाए रखने के लिए उदार रुख और नाजुक सुधार का समर्थन करने की जरूरत है.

महंगाई चिंता का विषय

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति अधिकांश केंद्रीय बैंकों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. उदाहरण के लिए ब्राजील में सितंबर की मुद्रास्फीति दो अंकों में थी और पोलैंड और हंगरी जैसे अन्य देशों में चिंताजनक सीमा में थी.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अनुसार, चीन और भारत में मुद्रास्फीति कम है और गिर रही है.

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index) के रूप में मापी गई भारत की खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर में 4.35% थी, जो रिजर्व बैंक के 6% से नीचे रखने के लक्ष्य के भीतर थी.

यह उच्च मुद्रास्फीति है जो अर्थशास्त्रियों को चिंतित कर रही है क्योंकि अधिकांश केंद्रीय बैंकों ने अपनी मौद्रिक नीति को कड़ा करना शुरू कर दिया है जो अंततः निवेश, विकास और शेयर बाजारों (investment, growth and stock markets) को प्रभावित कर सकता है.

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अधिक मात्रा में लिक्विडटी, कम नीतिगत दरें

हालांकि, हाल ही में कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में नीतिगत दरों को सख्त करने के बावजूद, विश्व बाजार (world market ) में अधिक मात्रा में लिक्विडटी है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के वित्तीय बाजार दरों में बढ़ोतरी को सहन कर रहे हैं.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं के अनुसार, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए बढ़ती मुद्रास्फीति चिंता का एक बड़ा कारण है, क्योंकि यह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए है और वे अपनी नीतिगत दरों को अपेक्षा से कठोरकर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद क्रेडिट उपलब्धता के लिए कोई खतरा नहीं

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति को तेजी से और प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में सक्षम होंगी. उभरते बाजारों में ब्याज दरें और स्प्रेड (interest rates and spreads) बेहद कम रहते हैं, EMBI स्प्रेड इनमें से अधिकांश देशों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है.

हालांकि नीति सख्त हो रही है, लेकिन हम ज्यादातर EM में क्रेडिट ग्रोथ (credit growth) में उल्लेखनीय कमी के संकेत नहीं देखते हैं, और न ही क्रेडिट गुणवत्ता (credit quality) खराब होती है.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक और चिंता एक मजबूत डॉलर है क्योंकि यह हाल के दिनों में ताकत हासिल कर रहा है लेकिन शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएं मजबूत डॉलर से निपटने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित नहीं हैं.

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