दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

UP Election : प्रियंका के 'अपने' नहीं रहे अपने, बढ़ रहीं चुनौतियां - congress leaders leaving party in up

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रहीं हैं. उनके नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़ रहे हैं. कई नेता, जो पार्टी में तो हैं, लेकिन असंतुष्ट बताए जा रहे हैं. पार्टी को उनसे भी खतरा है. यह स्थिति तब है, जबकि पहली बार प्रियंका गांधी खुलकर यूपी चुनाव की कमान संभाल रहीं हैं. धर्म और जाति से प्रेरित राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं को टिकट आवंटन में 40 फीसदी जगह देने का प्रियंका का दांव भी बहुत ही जोखिम भरा हो सकता है. प्रियंका के सामने क्या हैं चुनौतियां, पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्र का एक विश्लेषण.

priyanka
चुनाव प्रचार करतीं प्रियंका गांधी

By

Published : Jan 31, 2022, 7:26 PM IST

Updated : Jan 31, 2022, 7:57 PM IST

कांग्रेस पार्टी को सबसे ताजा झटका आरपीएन सिंह ने दिया है. उन्हें अपने क्षेत्र पडरौना में 'राजा साहेब' के नाम से जाना जाता है. वह ओबीसी समुदाय से आते हैं. इससे पहले जितिन प्रसाद (ब्राह्मण नेता) कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. योगी सरकार ने उन्हें अपने कैबिनेट में जगह भी दी. दोनों ही नेता कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खासे विश्वस्त माने जाते थे.

इन दोनों नेताओं के अलावा विधायक राकेश सिंह (हरचंदपुर) और अदिति सिंह (रायबरेली सदर) ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है. रायबरेली इंदिरा गांधी और उनके बाद सोनिया गांधी का गढ़ माना जाता रहा है. उसके बाद राकेश सिंह के भाई एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह ने भी पार्टी छोड़ दी.

भाजपा ने बेहट से कांग्रेस विधायक नरेश सैनी के साथ ही डॉ पूनम पूर्णिमा मौर्य को भी अपने पाले में कर लिया. कांग्रेस ने पूनम को 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' कैंपेन के लिए अपने पोस्टर का चेहरा बनाया था. उन्होंने पार्टी पर टिकट नहीं देने का आरोप लगाया. प्रियंका गांधी ने महिला सशक्तिकरण को बल देने के लिए इस नारे को गढ़ा था.

कांग्रेस से नेताओं के पलायन का यह दौर आगे भी जारी रह सकता है. यूपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राज बब्बर भी पार्टी से अंसतुष्ट बताए जा रहे हैं. खबर है कि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और उनकी विधायक पुत्री भी पार्टी छोड़ सकते हैं.

घोषणा पत्र जारी करते प्रियंका-राहुल

स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा छोड़ने के बाद जिस तरीके से समाजवादी पार्टी की ओर ओबीसी का झुकाव दिखने लगा, उसके परिप्रेक्ष्य में देखें तो भाजपा को आरपीएन सिंह के रूप में पिछड़े समुदाय का एक बड़ा चेहरा मिल गया. ओबीसी समुदाय से आने वाले मौर्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक प्रमख चेहरे के तौर पर जाने जाते रहे हैं. वह योगी कैबिनेट के प्रमुख मंत्री थे. चुनाव से पहले उन्होंने सपा का दामन थाम लिया. इसलिए आरपीएन सिंह का भाजपा में आना पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है. हालांकि, यह साफ नहीं है कि आरपीएन सिंह विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या फिर 2024 में संसद का चुनाव लड़ेगे.

हालांकि, आरपीएन सिंह 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. 2019 में तो उनकी जमानत जब्त हो चुकी थी. अब एक और नेता की बात कर लें, वह हैं प्रमोद तिवारी. वह प्रतापपुर के रामपुर खास से विधायक रहे हैं. 1980 से ही उन्होंने कभी भी इस सीट से हार का सामना नहीं किया है. 2018 से वह राज्यसभा के सदस्य हैं. रामपुर खास से अब उनकी बेटी अराधना मिश्रा विधायक हैं.

निश्चित तौर पर इतने अधिक नेताओं का पार्टी छोड़ना प्रियंका गांधी के लिए बड़ा धक्का है. यह पहली बार है कि प्रियंका खुलकर यूपी चुनाव की कमान संभाल रहीं हैं. उनके कंधों पर उम्मीदों का बोझ है. एक महासचिव होने के नाते पार्टी के परफॉर्मेंस के लिए वह जिम्मेदार होंगी.

पार्टी के कई सीनियर नेता उनकी (प्रियंका-राहुल) राजनीतिक समझ पर सवाल उठाते रहे हैं. इसलिए चुनाव परिणाम ये तय करेंगे कि इन दोनों नेताओं में कांग्रेस को आगे लेकर चलने की क्षमता है या नहीं. हालांकि, ऊपरी तौर पर प्रियंका इस बात से बिलकुल ही चिंतित नहीं दिखती हैं कि चुनाव से ठीक पहले पार्टी से खिन्न नेता छोड़कर जा रहे हैं. शायद यही वजह है कि आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि 'कायर' युद्ध नहीं लड़ सकते हैं, पार्टी विचारधारा और सच्चाई की मजबूत लड़ाई लड़ रही है.

प्रियंका गांधी

धर्म और जाति से प्रेरित राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं को टिकट आवंटन में 40 फीसदी जगह देने का प्रियंका का दांव बहुत ही जोखिम भरा भी हो सकता है. उनकी पार्टी का भविष्य इस पर टिका हुआ है. यूपी में कांग्रेस पिछले 30 सालों से सत्ता से बाहर है. 2012 में विधानसभा में पार्टी को 28 सीटें और 2017 में पार्टी को मात्र सात सीटें मिली थीं. ऐसे 'शत्रुतापूर्ण' माहौल में पार्टी उन सात सीटों को बरकरार रखने की चुनौती का भी सामना कर रही है.

इतने सारे कांग्रेस नेताओं के भगवा पाले में शामिल होने का दिलचस्प पहलू ये है कि यूपी के लिए लड़ाई अब सपा और 'कांग्रेस युक्त' भाजपा के बीच दिख रही है.

ये भी पढ़ें :UP Assembly Election: अखिलेश ने करहल से किया नामांकन, टक्कर देंगे केंद्रीय मंत्री एसपी बघेल

Last Updated : Jan 31, 2022, 7:57 PM IST

For All Latest Updates

ABOUT THE AUTHOR

...view details