हैदराबाद : स्वीडन स्थित एक संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि दुनिया के कई देशों में लोकतांत्रिक मूल्य कम हुए हैं. इसकी वजह से उन देशों की छवि को धक्का पहुंचा है. रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 'चुनावी निरंकुशता' सबसे सामान्य शासन व्यवस्था बनी हुई है. यह व्यवस्था 87 राष्ट्रों में व्याप्त है और यहां दुनिया की 68% आबादी रहती है.
रिपोर्ट के अनुसार बीते दशक में उदारवादी लोकतंत्रिक देशों की संख्या 41 से घटकर 32 हो गई है. इन देशों में दुनिया का केवल 14 प्रतिशत हिस्सा रहता है.
रिपोर्ट में निरंकुशता की लहर के बारे में भी बात की गई है. इसमें बताया गया है कि बीते 10 वर्षों में लोकतंत्र को अपनाने वाले देशों की संख्या में कमी आई है. रिपोर्ट बताता है कि उदार लोकतंत्र के व्यापक स्तरों पर महामारी का प्रत्यक्ष प्रभाव 2020 में सीमित था. जाहिर है, इनके दीर्घकालिक परिणाम बदतर हो सकते हैं. यह दुनिया के एक तिहाई हिस्से, जिसके 25 देशों में 2.6 बिलियन लोग रहते हैं, में निरंकुशता की तेजी की लहर को दिखाता है.
जी-20 के कई देशों जैसे ब्राजील, तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका इस बहाव का हिस्सा हैं. इसमें भारत का भी नाम लिया गया है.
संस्थान दावा करता है कि निरंकुश शासन में रहने वाली विश्व की आबादी का हिस्सा 48% से 68% हो गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्राजील और तुर्की में लोकतंत्र खत्म हो रहा है. पोलैंड की स्थिति सबसे खराब बताई गई है.
पोलिश लॉ एंड जस्टिस पार्टी, हंगेरियन फाइड्ज पार्टी और तुर्की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं.
इस रिपोर्ट ने निरंकुशता को परिभाषित करने की कोशिश की है. इसके अनुसार निरंकुशता आमतौर पर एक समान पैटर्न का अनुसरण करता है. सत्तारूढ़ सरकारें पहले मीडिया और नागरिक समाज पर हमला करती हैं और विरोधियों का अनादर करके और झूठी जानकारी फैलाकर समाजों का ध्रुवीकरण करती हैं. वह औपचारिक संस्थानों को कमजोर करने के लिए एक तर्कहीन प्रचार करती हैं.