हैदराबाद : एक ओर जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर म्यांमार की सेना अपने ही देश की चुनी हुई सरकार पर हमले कर रही है. पिछले साल नवंबर महीने में हुए संसदीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था. इसके बावजूद सेना ने पार्टी को कब्जे में ले रखा है. राष्ट्रपति विन मिंत, स्टेट काउंसलर आंग सान सूकी और सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. विरोध में उठ रही हर आवाज का सेना दमन कर रही है. विरोध प्रदर्शन में अब तक 180 लोग मारे जा चुके हैं. यह तो मात्र डेढ़ महीने की स्थिति है. आगे क्या होगा, पता नहीं.
2015 में हुए चुनाव के समय आगाह किया गया था कि अगर सेना समर्थित यूनियन सोलिडरटी एंड डेवलपमेंट चुनाव हार जाती है, तो खून-खराबा होना तय है. इसके बावजूद लोगों ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया. लोगों ने सूकी की पार्टी के पक्ष में मत दिया. इस बार के चुनाव में सूकी की पार्टी को पहले से भी अधिक बहुमत मिला. लेकिन सेना इस जीत को बर्दाश्त नहीं कर सकी. उसे यह भय सताने लगा था कि सूकी की सरकार कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन कर सकती है, जिसके बाद सेना के लिए सरकार पर कब्जा करना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह रही कि सेना प्रमुख मिन आंग हलांग ने प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
मिन को डर सता रहा है कि रोहिंग्या के खिलाफ सेना ने जो जुल्म ढाए हैं, उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय जांच बिठाया जा सकता है. इसी साल वह रिटायर होने वाले थे. पर अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है. सेना ने तख्ता पलटकर पूरे देश पर कब्जा जमा लिया है.
सेना की तानाशाही के खिलाफ सड़कें रक्तरंजित हो रहीं हैं. सेना प्रमुख को लगता है कि वह सत्ता में रहकर अपने आप को बचा लेंगे. एक ऐसे देश में जहां प्रजातंत्र धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमा रहा था, अचानक ही स्थिति बदल गई.