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म्यांमार : 'कैद' में प्रजातंत्र, भारत को सतर्क रहने की जरूरत - coup in myanmar

म्यांमार में सेना ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को एक बार फिर से ध्वस्त कर दिया है. चुनी हुई सरकार को कैद में कर लिया. विरोध में प्रदर्शन कर रहे आम लोगों को गोली मार रही है. सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. ऐसे में अब सबकी नजर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पर है. क्या संयुक्त राष्ट्र दखलंदाजी करेगा. भारत को कितनी सतर्कता बरतने की जरूरत है, यह हमारे लिए बहुत बड़ा सवाल है.

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म्यांमार में विरोध प्रदर्शन

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Published : Mar 21, 2021, 12:28 PM IST

हैदराबाद : एक ओर जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर म्यांमार की सेना अपने ही देश की चुनी हुई सरकार पर हमले कर रही है. पिछले साल नवंबर महीने में हुए संसदीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था. इसके बावजूद सेना ने पार्टी को कब्जे में ले रखा है. राष्ट्रपति विन मिंत, स्टेट काउंसलर आंग सान सूकी और सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. विरोध में उठ रही हर आवाज का सेना दमन कर रही है. विरोध प्रदर्शन में अब तक 180 लोग मारे जा चुके हैं. यह तो मात्र डेढ़ महीने की स्थिति है. आगे क्या होगा, पता नहीं.

2015 में हुए चुनाव के समय आगाह किया गया था कि अगर सेना समर्थित यूनियन सोलिडरटी एंड डेवलपमेंट चुनाव हार जाती है, तो खून-खराबा होना तय है. इसके बावजूद लोगों ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया. लोगों ने सूकी की पार्टी के पक्ष में मत दिया. इस बार के चुनाव में सूकी की पार्टी को पहले से भी अधिक बहुमत मिला. लेकिन सेना इस जीत को बर्दाश्त नहीं कर सकी. उसे यह भय सताने लगा था कि सूकी की सरकार कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन कर सकती है, जिसके बाद सेना के लिए सरकार पर कब्जा करना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह रही कि सेना प्रमुख मिन आंग हलांग ने प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

मिन को डर सता रहा है कि रोहिंग्या के खिलाफ सेना ने जो जुल्म ढाए हैं, उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय जांच बिठाया जा सकता है. इसी साल वह रिटायर होने वाले थे. पर अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है. सेना ने तख्ता पलटकर पूरे देश पर कब्जा जमा लिया है.

सेना की तानाशाही के खिलाफ सड़कें रक्तरंजित हो रहीं हैं. सेना प्रमुख को लगता है कि वह सत्ता में रहकर अपने आप को बचा लेंगे. एक ऐसे देश में जहां प्रजातंत्र धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमा रहा था, अचानक ही स्थिति बदल गई.

भारत की आजादी के ठीक एक साल बाद म्यांमार (तब बर्मा) को आजादी मिली थी. बर्मा ब्रिटिश कब्जे में था. 1962 तक बर्मा में सेना का शासन काल रहा. 1990 में नेशनल फॉर डेमोक्रेसी की जीत हुई. लेकिन तब सेना ने सत्ता का हस्तांतरण करने से मना कर दिया. सेना का कहना था कि बिना संविधान के सत्ता नहीं सौंपी जा सकती है. सेना ने तब प्रजातंत्र के सभी समर्थकों को जेल भेज दिया. इस बार भी वही स्थिति बनी है.

सेना ने म्यांमार पर एक साल के आपातकाल की घोषणा कर दी है. सूकी पर कई तरह के आरोप लगाए गए हैं. उन पर बिना लाइसेंस के वॉकी-टॉकी रखने का आरोप लगाया गया. कोरोना के खिलाफ बनाए गए नियमों की अनदेखी का आरोप है. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने की भी तैयारी की जा रही है. अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है. द. कोरिया ने बर्मा को सैन्य साजो सामान बेचने से मना कर दिया है.

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इंडोनेशिया मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, चीन का स्टैंड बहुत ही अलार्मिंग है. हाल ही में चीन ने एक नया रक्षा कानून पारित किया है. इसके मतुबिक चीन अपने देश के हितों की रक्षा के लिए दूसरे देशों की सीमा में प्रवेश कर सकती है. ऐसे में चीन पर बहुत करीब से नजर रखने की जरूरत है. भारत को बहुत अधिक सतर्कता बरतनी होगी. उत्तर पूर्व इलाके में कहीं फिर से उग्रवादियों को नया पनाह न मिले, हमें इस पर नजर रखनी होगी.

संयुक्त राष्ट्र इसमें अहम भूमिक अदा कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के समर्थन से ही म्यांमार में प्रजातंत्र की स्थापना हो सकती है और सालों से चले आ रहे अलगाव से निजात पा सकता है.

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