नई दिल्ली :उत्तर पूर्वी दिल्ली में पिछले साल हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कथित तौर पर दंगे फैलाने की कई शिकायतों को मिलाकर एक प्राथमिकी में तब्दील करने की पुलिस की कार्रवाई पर अदालत ने आपत्ति जताई थी, जिसके बाद उसने संबंधित मामलों को अलग कर आरोप पत्र दाखिल करने का फैसला किया.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने सवाल किया था कि दिल्ली के भजनपुरा इलाके के सी, डी और ई ब्लॉक में अलग-अलग तारीख को हुई कथित दंगे, चोरी और आगजनी की पांच अलग-अलग घटनाओं को पुलिस ने क्यों एक ही प्राथमिकी में मिलाकर आरोप पत्र दाखिल किया है.
मामले में 10 सितंबर को दाखिल स्थिति रिपोर्ट में भजनपुरा के थाना प्रभारी ने जवाब दिया कि डी और ई ब्लॉक में हुई घटनाओं की अलग से जांच की जाएगी और उन सभी तीन मामलों में अलग से आरोप पत्र दखिल किए जाएंगे जिस पर अदालत से सहमति दे दी. वहीं, सी ब्लॉक में दंगे फैलाने के दो अन्य मामलों पर अदालत ने पहले ही दाखिल किए गए आरोप पत्र पर विचार करने पर सहमति जताई.
इस मामले में दो आरोपियों- नीरज और मनीष को दो शिकायतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया है, जो दुकानदारों ने दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दंगाइयों ने उनकी दुकानों को कथित तौर पर लूटा और तोड़फोड़ की.
अभियोग तय करते समय सत्र न्यायाधीश ने आरोपियों के खिलाफ आगजनी की धारा यह रेखांकित करते हुए हटा दी कि दुकानदारों ने आगजनी का आरोप नहीं लगाया है और सीसीटीवी फुटेज भी इसकी तसदीक नहीं करती है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यादव ने अपने 10 सितंबर के आदेश में कहा, 'शिकायतों और बयानों की गहनता से विश्लेषण से खुलासा होता है कि किसी ने भी आरोपियों की पहचान दंगाई भीड़ में शामिल व्यक्तियों के तौर पर नहीं की जिसने उनकी दुकानों में तोड़फोड़ की थी.'
उन्होंने रेखांकित किया कि शिकायत में आगजनी का आरोप नहीं लगाया गया था ऐसे में भारतीय दंड संहिता की धारा-436 इसमें लागू नहीं की जा सकती.