नई दिल्ली :नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पिछले साल राजधानी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. इस हिंसा को लेकर हर कोई हैरान था. 1984 के सिख दंगों के बाद दिल्ली में यह सबसे बड़ा सांप्रदायिक दंगा था. बता दें, सीएए के विरोध में पहले झड़प शुरू हुई थी बाद में दंगों का रूप ले लिया था.
छह दिन के अंदर इन दंगों में कुल 53 लोगों की मौत हुई और 581 लोग घायल हुए थे. सीएए कानून के विरोध में हिंसा से दिल्ली के खजुरी खास, भजनपुरा नगर, गोकलपुरी, जाफराबाद और दयालपुर जैसे इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए. दिल्ली के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर दंगाइयों ने दिनदहाड़े हमला किया था. इस हिंसा में प्रशासन चाहे वह केंद्र का हो या राज्य सरकार का कहीं नहीं दिख रहा था.
दिल्ली पुलिस के अनुसार 400 मामलों में अब तक 1825 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, 755 कुल प्राथमिकी दिल्ली पुलिस ने दर्ज की है, 349 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं.
इसे प्रशासन की लापरवाही कहेंगे क्योंकि ऐसे माहौल को और ज्यादा भड़कने से रोकने में वह नाकाम रहा. देखते-देखते इस हिंसा ने साप्रंदायिक दंगे का रूप ले लिया था. वैसे तो दिल्ली पुलिस देश में सबसे अच्छी है, लेकिन बात जब स्टाफिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बजट के उपयोग की आती है तो वह निर्दोष लोगों की सुरक्षा में विफल साबित होती है. कमोबेश यही हाल गृह मंत्रालय का भी रहा, जिसके अंतर्गत 1 मिलियन अर्धसैनिक बल आते हैं, लेकिन इस स्थिति में वह भी सफल साबित नहीं हुए.