नई दिल्लीः दिल्ली दंगों में साजिश रचने की आरोपी और यूएपीए के तहत जेल में बंद कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां ने जमानत याचिका वापस ले ली है. कड़कड़डूमा कोर्ट में सुनवाई के दौरान इशरत जहां की ओर से वकील जीतेंद्र बख्शी ने कहा कि वे अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत दायर याचिका को वापस ले रहे हैं और धारा 437 के तहत नई जमानत याचिका दायर करेंगे. एडिशनल सेशंस जज अमिताभ रावत ने इशरत जहां को याचिका वापस लेने और नई याचिका दायर करने की अनुमति दे दी है.
एक सितंबर को सुनवाई के दौरान इशरत जहां की ओर से वकील परवेज हैदर ने कहा था कि पिछले पांच-छह महीने से वे दलीलें रख रहे हैं. अब दिल्ली पुलिस कह रही है कि जमानत याचिका, जिस धारा के तहत दायर की गई है, वो सुनवाई योग्य नहीं है. उन्होंने याचिका के सुनवाई योग्य होने के मामले पर कुछ फैसलों को उद्धृत किया था और कोर्ट से कहा था कि इस मसले पर जल्द फैसला करें.
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26 अगस्त को सुनवाई के दौरान स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद ने कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. इस मामले में धारा 437 के तहत याचिका दायर की जानी चाहिए थी. अमित प्रसाद ने गुवाहाटी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वताली वाले मामले के फैसले का जिक्र करते हुए कहा था कि धारा 439 के तहत दायर याचिका वापस लेनी चाहिए.
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अमित प्रसाद की दलील का इशरत जहां के वकील प्रदीप तेवतिया ने विरोध करते हुए कहा था कि कोर्ट पहले धारा 439 के तहत सुनवाई कर चुकी है. तब अमित प्रसाद ने कहा था कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. ये कानूनी अवरोध है. तब तेवतिया ने कहा था कि ये सवाल पहले क्यों नहीं उठाया गया. ये तो मेरे साथ अत्याचार है. इस पर कोर्ट ने कहा था कि आपकी बात से सहमत हैं, लेकिन कानूनी सवाल का क्या करें. वे छह महीने पहले कहे होते तो मैं विरोध नहीं करता, लेकिन वे ऐसा कर आरोपी की जेल की अवधि बढ़ाना चाहते हैं.
तेवतिया ने कहा था कि जमानत तो मौखिक सुनवाई पर भी दी जाती है और ये यूएपीए में भी लागू होता है. तब अमित प्रसाद ने कहा था कि कानूनी प्रावधान है. इशरत जहां खुद एक वकील हैं. तब कोर्ट ने कहा था कि इस बारे में अनभिज्ञ था, लेकिन अगर अमित ने कुछ खास फैसले उद्धृत किए हैं, तो उन्हें देखने दीजिए.
पिछले 23 जुलाई को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. पिछले 12 जुलाई को सुनवाई के दौरान इशरत जहां की ओर से वकील प्रदीप तेवतिया ने पूछा था कि क्या राजनीतिक जुड़ाव होना गलत बात है. इशरत जहां ने क्या गलत किया. यूएपीए लगाने का मकसद आवाज को दबाना है. यूएपीए की समीक्षा होनी चाहिए. तेवतिया ने कहा था कि सह-आरोपी के साथ इशरत जहां का संबंध दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है. गवाह असली नहीं हैं. उन्होंने दिल्ली पुलिस की ओर से लगाए गए आरोपों पर आपत्ति जताई कि इशरत जहां ने विरोध-प्रदर्शनों के लिए फंडिंग में मदद की. अभियोजन की यह कहानी मनगढ़ंत है. दंगों से पहले और उसके दौरान उनके खर्च के पैटर्न में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
बता दें कि इशरत जहां को 26 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था. इशरत जहां के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 109, 147, 148, 149, 186, 307, 332, 353 और 34 और आर्म्स एक्ट की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. पुलिस के मुताबिक, इशरत जहां ने भीड़ को उकसाते हुए कहा कि चाहें मर जाएं, लेकिन यहां से नहीं हटेंगे, चाहे पुलिस कुछ भी कर ले, आजादी लेकर रहेंगे. पुलिस के मुताबिक, 26 फरवरी 2020 को जगतपुरी में न केवल पुलिस पर पथराव हुआ, बल्कि गोलियां भी चलाई गई थीं.