श्राद्ध पक्ष में गजछाया योग (gajchaya yoga) का बनना दुर्लभ माना गया है. इस बार गजछाया योग छह अक्टूबर को लगने जा रहा है. छह अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या सर्वार्थसिद्धि योग (Sarvarthasiddhi Yoga) सहित अन्य योग संयोगों में मनाई जाएगी. सर्वपितृ अमावस्या को मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन पितृपक्ष यानि श्राद्ध पक्ष भी खत्म होगा. वहीं, इसके अगले दिन से शारदीय नवरात्र की शुरुआत भी होगी.
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में गजछाया योग का बनना दुर्लभ माना गया है. गजछाया योग छह अक्टूबर 2021 सूर्योदय से सायं 4:35 बजे तक विशेष रूप से रहेगा. छह अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या गजछाया योग, सर्वार्थसिद्धि योग सहित अन्य योग संयोगों में मनाई जाएगी. गजछाया योग में तीर्थ स्नान, दान और जप का विशेष महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में जिस दिन गजछाया योग लगता है, तो उस दिन पितरों को दिया गया जल और पिंड का सुख, उन्हें 13 वर्षों तक प्राप्त होता है, इसलिए गजछाया योग में तर्पण करने से पितर बड़े तृप्त और प्रसन्न होते हैं.
जानिए गजछाया योग के बारे में. उन्होंने बताया कि पितृ पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है. छह अक्टूबर को अमावस्या सर्वार्थसिद्धि योग (Sarvarthasiddhi Yoga) ब्रह्मयोग सहित अन्य योग संयोगों में मनाई जाएगी. इस दिन पितृपक्ष यानि श्राद्ध पक्ष भी खत्म होगा. इसके अगले दिन से शारदीय नवरात्र की शुरुआत भी होगी. सर्वपितृ अमावस्या को मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहा जाता है. सर्वपितृ अमावस्या तिथि पांच अक्टूबर को शाम 7:05 बजे से छह अक्टूबर को शाम 4:35 बजे तक रहेगी. 100 साल बाद सर्वार्थसिद्धि योग में अमावस्या रहेगी. इस दिन श्राद्ध निकालने से पितरों का आशीर्वाद मिलने के साथ ही प्रगति और वैभव की विशेष वृद्धि होगी. सूर्य, मंगल, बुध और चंद्रमा के कन्या राशि में विराजमान होने से चतुग्रही योग भी बनेगा.
शास्त्रों के अनुसार, आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ श्राद्ध तिथि कहा जाता है. इस दिन भूले-बिसरे पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. कहते हैं कि इस दिन अगर पूरे मन से और विधि-विधान से पितरों की आत्मा की शांति श्राद्ध किया जाए, तो न केवल पितरों की आत्मा शांत होती है, बल्कि उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में भी सुख-शांति बनी रहती है. परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है और जीवन में चल रही परेशानियों से भी राहत मिलती है.
गजछाया योग
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अमावस तिथि को सूर्य एवं चंद्र दोनों हस्त नक्षत्र में होने से गजछाया नामक योग बनता है. शास्त्रों में इसकी बहुत महिमा है. इस योग में तीर्थ-स्नान, दान, जप एवं विप्रजनों को भोजन, अन्न, वस्त्रादि का दान व श्राद्ध करने का विशेष माहात्म्य माना गया है. उपरोक्त पितृ पक्ष में यह विशिष्ट योग दिनांक छह अक्टूबर 2021 सूर्योदय से सायं 4:35 बजे तक विशेष रूप से रहेगी.
क्या है गजछाया योग और क्यों है खास
उन्होंने बताया कि गजछाया एक ऐसा योग है, जो प्रत्येक वर्ष नहीं बनता, बल्कि यह कभी-कभार कुछ विशेष नक्षत्रों के संयोग से ही बनता है. मान्यता है कि यह जब भी बनता है, तो केवल पितृपक्ष में बनता है. जब आश्विन कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि को चंद्रमा और सूर्य दोनों हस्त नक्षत्र में होते हैं. यह तिथि पितृपक्ष की त्रयोदशी या फिर अमावस्या के दिन ही बनती हैय इस योग का उल्लेख स्कंपदपुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण, वराहपुराण और महाभारत में किया गया है. मान्यता है कि इस योग में अगर पितरों का श्राद्ध तर्पण किया जाए, तो पितर कम से कम 13 वर्ष तक तृप्त रहते हैं.
अत्यंत दुर्लभ है गजछाया योग
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि सूर्य पर राहू या फिर केतू की दृष्टि पड़ने पर गजछाया का योग बनता है. इससे पहले 2018 में सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर भी गजछाया योग बना था. पितृ पक्ष में गजछाया योग होने पर तर्पण और श्राद्ध करने से वंश वृद्धि, धन संपत्ति और पितरों से मिलने वाले आशीर्वाद की प्राप्ति होती है. इस योग को पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का खास अवसर बताया गया है. गजछाया योग में गया, पुष्कर, हरिद्वार, बद्रीनाथ और प्रयागराज में पितरों का श्राद्ध करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. नदी के तट पर पितरों का श्राद्ध करते हैं. मान्यता है कि इस योग में श्राद्ध करने से पितरों को सद्गति तो मिलती ही है, साथ ही अक्षय पुण्य की भी प्राप्ति होती है.
गजछाया योग कब से कब तक
शास्त्रों के अनुसार, पांच अक्टूबर को पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि है. इस रात 1:10 मिनट से गजछाया योग आरंभ होगा और यह छह अक्टूबर शाम 4:35 मिनट तक रहेगा. इस समय पितरों का पूजन अत्यंत शुभ फलदायी होगा. इस संयोग में चंद्रमा के ऊपर स्थित पितृलोक से पितरों की आत्माएं आसानी से आ-जा सकती हैं, इसलिए इस योग में पितरों की पूजा को बहुत ही शुभ कहा गया है.
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि सर्वपितृ अर्थात सभी पितरों को अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण किया जाना शास्त्र सम्मत है. दिन ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के श्राद्ध का विधान है, यानि जिन लोगों को परिजनों की मृत्यु की तिथि याद ना हो, वो भी इस दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर, पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध न किया जाए, तो उनकी आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है, जिसके प्रभाव से घर-परिवार के लोगों को भी आए दिन दु:ख-तकलीफ का सामना करना पड़ता है. बहुत जरूरी है कि अगर पितरों की पुण्य तिथि भूल चुके हैं, तो इस तिथि पर उनका श्राद्ध कर दें. इसके अलावा ध्यान रखें कि इस दिन भूलकर भी क्रोध न करें, किसी दूसरे शहर की यात्रा पर न जाएं. यूं तो पूरे पितृ पक्ष में तेल नहीं लगाना चाहिए, लेकिन इस दिन तो विशेषकर तेल नहीं लगाना चाहिए. इस दिन आप श्राद्ध करें, तो उसमें लोहे के बर्तन, बासी फल-फूल और अन्न का उपयोग न करें. इसके अलावा मांस-मदिरा, उड़द दाल, मसूर, चना, खीरा, जीरा, सत्तू और मूली का भी सेवन न करें, यह पूर्णतया वर्जित है.