नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर के बीच भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शनिवार को केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों को फटकार लगाई. साथ ही सरकार को सलाह दी कि अगर जरूरी हो तो प्रदूषण से निपटने के लिए तत्काल उपाय के तौर पर दो दिन का लॉकडाउन लगाएं. पर्यावरणविदों ने भी वर्ष की सिर्फ इस अवधि के दौरान बढ़ते प्रदूषण के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण दिखाने के लिए सरकारों की आलोचना की है.
दरअसल राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता 'गंभीर' रही और दिल्ली में शनिवार सुबह 473 एक्यूआई दर्ज किया गया. दिल्ली के पड़ोसी इलाकों नोएडा और गुड़गांव में एक्यूआई क्रमश: 587 और 557 दर्ज किया गया.
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सर्वोच्च न्यायालय एक नाबालिग लड़के की याचिका पर सुनवाई करते कर रहा है. याचिका में दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने और उच्च प्रदूषण के स्तर से जुड़े अन्य कारकों के खिलाफ निर्देश देने की मांग की गई है. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा 'हालत बहुत खराब है. घर में हम मास्क पहने हुए हैं. यह एक बुरी स्थिति है. दिल्ली में लोग कैसे रहेंगे.' मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को कैसे नियंत्रित करें, क्या दो दिन का क्या लॉकडाउन लगाएं.
वायु प्रदूषण के कारण
इस मामले पर बोलते हुए पर्यावरणविद् मनु सिंह ने कहा, 'दिल्ली में एक्यूआई लगातार बिगड़ रहा है. दरअसल सर्दी आने से ठीक पहले हवा का प्रवाह कम हो जाता है. इस कम वायु प्रवाह के कारण उत्तरी भारत के घनी आबादी वाले क्षेत्र में प्रदूषकों का निस्तारण नहीं हो पाता इसीलिए पार्टिकुलेट मैटर भी जमा हो जाते हैं. जब इन पीएम के साथ धूल के कणों के साथ भारी ठंडी हवा मिल जाती है तो स्मॉग बन जाता है.'
क्या पराली जलाना असली मुद्दा है?
अदालत ने आज यह भी कहा कि किसानों को कोसना एक नया फैशन बन गया है जबकि शहर में खराब वायु गुणवत्ता के अन्य कारण भी हैं. अदालत ने कहा, 'ठूंठ समस्या का हिस्सा हो सकता है लेकिन एकमात्र कारण नहीं है.'
पर्यावरणविद् मनु सिंह ने इस प्रश्न पर उत्तर दिया, 'पराली जलाना निश्चित रूप से एक मुद्दा है और जब तक पराली के उचित निपटान के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, तब तक कोई इलाज नहीं है. साथ ही इन प्रदूषकों की अधिकतम मात्रा वाहनों के उत्सर्जन से आती है. इसके अलावा यह पटाखों के फोड़ने से जस्ता, तांबा, कैडमियम, मैग्नीशियम जैसे बहुत हानिकारक रसायनों का संचय हुआ. इन तीनों कारकों के साथ-साथ अनियमित और अनधिकृत निर्माण, खुले में कूड़ा-पराली जलाने के कारण स्थिति बनी है.
वाहनों के उत्सर्जन का योगदान
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के नवीनतम अध्ययन के अनुसार, वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का दिल्ली में प्रदूषण को स्थानीय स्रोतों में सबसे बड़ा योगदान है. विश्लेषण 24 अक्टूबर से 8 नवंबर तक हर वैकल्पिक घंटे के आंकड़ों पर आधारित है. अध्ययन अवधि के दौरान वाहनों का योगदान आधा या अधिक रहा है. विश्लेषण करने वाली टीम का हिस्सा रिसर्च एंड एडवोकेसी सीएसई की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि यह आंकड़ा लगभग 50% -53% होगा. शुक्रवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी एक आदेश जारी किया जिसमें सुझाव दिया गया कि सरकारी और निजी कार्यालयों को बिगड़ती वायु गुणवत्ता स्तर को देखते हुए अपने वाहनों को कम से कम 30 प्रतिशत कम करना चाहिए.
दोष मढ़ने का खेल
राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे पर दिल्ली सरकार केंद्र पर आरोप लगा रही है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने शनिवार को आरोप लगाया कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण की आपात स्थिति पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव 'दो बार लिखे गए उनके पत्रों का जवाब नहीं दे रहे हैं.' इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कहा था कि प्रदूषण में वृद्धि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण हुई है क्योंकि सरकारें इसे रोकने में किसानों की मदद करने के लिए 'कुछ नहीं' कर रही हैं. इस बीच, भाजपा और कांग्रेस पार्टी दोनों ने वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में विफल रहने के लिए दिल्ली सरकार को दोषी ठहराया.
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इसके बारे में पूछे जाने पर मनु सिंह ने उत्तर दिया, 'सरकार को हर पर्यावरणीय समस्या के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलकर और एक समग्र समाधान तैयार करना चाहिए. वर्ष में केवल इस समय के आसपास ही वायुप्रदूषण की स्थिति ऐसा क्यों होती है, ये सोचना होगा. ये सोचना चाहिए कि हमें स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी कैसे मिलेगा.'