नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि फैमिली कोर्ट यानि पारिवारिक अदालतें विवाह के टूटने के आधार पर तलाक नहीं दे सकती हैं. हाइकोर्ट ने एक मामले को निपटाते हुए कहा कि पारिवारिक अदालत को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक को नियंत्रित करने वाले प्रावधानों के अनुसार सख्ती से कार्य करना चाहिए. इस मामले में हिंदू पक्ष शामिल थे.
कोर्ट ने कहा कि न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और विकास महाजन की खंडपीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शादी का अपूरणीय टूटना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का आधार नहीं है. हाइकोर्ट द्वारा इस तरह के आधार पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द कर दिया गया.
पारिवारिक न्यायालय नहीं ले सकता फैसला:हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी शक्ति पारिवारिक न्यायालयों को तो छोड़ ही दें, उच्च न्यायालयों में भी निहित नहीं है. न्यायालय में क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपने पति की तलाक की याचिका को अनुमति देने के पारिवारिक न्यायालय के 2018 के फैसले के खिलाफ एक महिला की अपील पर सुनवाई हो रही थी. इस जोड़े ने 2002 में शादी की और 2007 में उनकी एक बेटी का जन्म हुआ. जल्द ही वे अलग रहने लगे.
हाई कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने वैवाहिक संबंध से इनकार के आधार पर तलाक को मंजूरी दे दी थी, भले ही इस पहलू के संबंध में अस्पष्ट और विशिष्टताओं के बिना आरोप लगाए गए थे. इसमें आगे पाया गया कि कभी भी पूरी तरह से इनकार नहीं किया गया क्योंकि पति ने स्वीकार किया था कि उसे 30-35 बार वैवाहिक संबंधों का आनंद लेने की अनुमति दी गई थी.