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गौतम गंभीर को क्लीन चिट देने पर ड्रग कंट्रोलर को दिल्ली हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा- भरोसा उठ गया - delhi high court reprimand drug controller

गौतम गंभीर मामले में कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर से कहा कि आप वह कानून बताइए, जिसके तहत डीलर ने दवाइयां दीं. हम इसी की जांच चाहते हैं जो आपको करना है. आप ये मत कहिए कि इसकी वजह से कितनी जानें बचीं. कोई डीलर किसी फाउंडेशन को कैसे दवाइयां बेच सकता है.

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Published : May 31, 2021, 3:31 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने बीजेपी सांसद गौतम गंभीर और विधायक प्रवीण कुमार को क्लीन चिट देने के लिए ड्रग कंट्रोलर को कड़ी फटकार लगाई है. जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आप जांच नहीं कर सकते हैं तो बताएं, हम आपको हटाकर किसी और को यह जिम्मा दे देते हैं.

गंभीर और प्रवीण कुमार पर दोबारा स्टेटस रिपोर्ट तलब

हाई कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर को फटकार लगाते हुए कहा कि हम चाहते थे कि आप बताएं कि किस कानून के तहत इसकी इजाजत है, किसमें नहीं. आप बताएं कि कोरोना की दवाओं को इतनी बड़ी मात्रा में हासिल करने के लिए क्या जरूरी है. यह नहीं पूछ रहे थे कि कितने लोगों की जान बची. कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर को निर्देश दिया कि वे गौतम गंभीर को मिली दवाइयों पर दोबारा जांच कर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें. कोर्ट ने विधायक प्रवीण कुमार को लेकर भी दोबारा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

फेबिफ्लू कहां से मिला ये बताएं

कोर्ट ने प्रीति तोमर को क्लीन चिट देने के ड्रग कंट्रोलर के स्टेटस रिपोर्ट को मंजूर कर लिया है. कोर्ट ने गौतम गंभीर और प्रवीण कुमार के बारे में ड्रग कंट्रोलर ने कानूनी पक्षों को नहीं बताया है. कोर्ट ने कहा कि गौतम गंभीर फाउंडेशन को फेबिफ्लू लाइसेंसी डीलर से मिला या रिटेलर से मिला ये नहीं बताया गया है. कोर्ट ने कहा कि प्रवीण कुमार के बारे में ड्रग कंट्रोलर और पुलिस की रिपोर्ट में तथ्यात्मक विरोधाभास हैं. कोर्ट ने दोनों को लेकर नए रिपोर्ट एमिकस क्युरी को भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.

ड्रग कंट्रोलर को अपराध प्रक्रिया संहिता का पता नहीं

सुनवाई के दौरान वकील विराग गुप्ता ने कहा कि लगता है कि ड्रग कंट्रोलर को प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं है. इस पर ड्रग कंट्रोलर की ओर से वकील नंदिता राव ने कहा कि उन्हें प्रक्रियाओं का पता है, लेकिन उन्हें अपराध प्रक्रिया संहिता का पता नहीं है. इस पर नंदिता राव ने कहा कि अगर पुलिस ने जांच की होती तो हमने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की होती. याचिकाकर्ता को ये अधिकार है कि वो क्लोजर रिपोर्ट का विरोध करे. ड्रग कंट्रोलर के पास लॉकअप और न्यायिक हिरासत जैसे साधन नहीं होते हैं.

किसी व्यक्ति को दवाइयों की हजारों स्ट्रिप कैसे मिल सकती है

नंदिता राव ने कहा कि एक ही किस्म के तीन स्टेटस रिपोर्ट हैं. पहला गौतम गंभीर का है. उन्होंने गौतम गंभीर का स्टेटस रिपोर्ट पढ़ते हुए कहा कि कोई प्रेस्क्रिप्शन नहीं था. हालांकि, गर्ग अस्पताल से एक आग्रह आया था कि कोरोना की दवाइयां दी जाएं. इन दवाइयों का जिक्र क्राइम ब्रांच और हाई कोर्ट के आदेश में है. राव ने कहा कि दवाइयां एक जगह से नहीं ली गई थीं, बल्कि मेडिकल कैंपों में मरीजों के आने के आकलन के आधार पर 22 से 29 अप्रैल के बीच कई डीलरों से लिया गया था, तब कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई डीलर इस तरह दवाइयों की सप्लाई कर सकता है और क्या इसकी अनुमति है. तब राव ने कहा कि पहले मेडिकल कैंपों की जांच होनी चाहिए थी.

दवाइयों की हजारों स्ट्रिप की जमाखोरी

उसके बाद मरीजों की जांच होनी चाहिए थी. उसके बाद ही डॉक्टर को कहना चाहिए था कि केमिस्ट के पास जाएं, लेकिन महामारी के समय जब मरीजों की मौत हो रही है. एक हफ्ते की देरी काफी भारी हो सकती थी. तब कोर्ट ने कहा कि हम आपसे ये उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि आप किसी व्यक्ति के लिए उपस्थित हों. हम आपको साफ कह रहे हैं कि आप ऐसी तुच्छ दलीलें मत दीजिए. कोई व्यक्ति दवाइयों की हजारों स्ट्रिप की जमाखोरी कर रहा है, लेकिन उसने इन दवाइयों को खरीदा कैसे, उसका आधार क्या है.

कोर्ट ने नंदिता राव से कहा कि अगर आप ड्रग कंट्रोलर की ओर से पेश हो रही हैं, तो उनके लिए दलीलें रखिए. आप ये मत कहिए कि दवाइयों की कमी थी. हम भी जानते हैं कि दवाइयों की कमी थी. अगर ये जवाब आपकी तरफ से आता तो आप हर सवाल का जवाब देतीं, तब राव ने कहा कि ये गंभीर मसला है, मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती हूं.

हम आंखें बंद नहीं कर सकते हैं

कोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर से कहा कि आप वह कानून बताइए, जिसके तहत डीलर ने दवाइयां दीं. हम इसी की जांच चाहते हैं जो आपको करना है. आप ये मत कहिए कि इसकी वजह से कितनी जानें बची. कोई डीलर किसी फाउंडेशन को कैसे दवाइयां बेच सकता है. क्या फाउंडेशन के पास लाइसेंस है, राव ने कहा नहीं. तब कोर्ट ने पूछा कि तब आप इसे क्लोजर रिपोर्ट के रूप में कैसे ले रही थीं. हम आंखें नहीं बंद कर सकते हैं. भरोसा उठ गया है.


सुनवाई के दौरान असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर केआर चावला पेश हुए, तो कोर्ट ने पूछा कि आपका तो स्टेटस रिपोर्ट में हस्ताक्षर ही नहीं है. हम आपकी बात क्यों सुनें. तब चावला ने कहा कि हम सभी पहलूओं पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करेंगे. तब विराग गुप्ता ने कहा कि ड्रग कंट्रोलर को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाना चाहिए, जिसमें विस्तृत जानकारी हो.

कोर्ट ने चावला से कहा कि आपने मौलिक रूप से गड़बड़ी की है. तब चावला ने विस्तार से दोबारा रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की. तब कोर्ट ने कहा कि हमारा आप पर से भरोसा उठ गया है. तब नंदिता राव ने दोबारा रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय देने की मांग की. तब कोर्ट ने कहा कि हम आपको एक हफ्ते का समय नहीं दे सकते हैं.


प्रीति तोमर और प्रवीण कुमार के खिलाफ दोबारा जांच की मांग

वकील सत्यरंजन स्वैन ने विधायक प्रीति तोमर और प्रवीण कुमार की रिपोर्ट पर दलीलें पेश कीं. स्वैन ने कहा कि प्रवीण कुमार ने अपनी टीम और वेलफेयर एसोसिएशन की मदद से 18 सिलेंडरों का जुगाड़ किया. स्वैन ने इस संबंध में पहले से दाखिल स्टेटस रिपोर्ट का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि नए स्टेटस रिपोर्ट में पूरी कहानी बदली हुई है. इसमें डॉक्टर का जिक्र किया गया है. ऐसा जानबूझकर किया गया है. प्रीति तोमर के बारे में कहा कि ऑक्सीजन सप्लाई को बाधित करने की कोशिश की.

ड्रग कंट्रोलर की रिपोर्ट एक धोखा

उन्होंने कहा कि 5 मई को को अस्पताल की ओर से SOS कॉल मिला, लेकिन ऑक्सीजन मिला 7 मई को. स्वैन ने आम आदमी पार्टी की फेसबुक पर जारी तस्वीरों को जारी करते हुए कहा कि ये जनता की मदद के लिए नहीं किया गया था, बल्कि ये राजनीतिक लाभ के लिए किया गया था. अगर मदद के लिए किया गया होता तो काफी पास में अस्पताल को मदद क्यों नहीं की गई. ऑक्सीजन सिलेंडर को अस्पताल में क्यों नहीं भेजा गया, जहां ऑक्सीजन की कमी से पांच बच्चों की मौत हो गई. स्वैन ने प्रीति तोमर और प्रवीण कुमार पर ड्रग कंट्रोलर की रिपोर्ट को एक धोखा बताया. उन्होंने प्रीति तोमर और प्रवीण कुमार को लेकर दोबारा जांच की मांग की.

जिसने मदद की उसे दंड देने का काम मत कीजिए

प्रीति तोमर की ओर से वकील शर्मा ने कहा कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं वे गलत हैं. अस्पताल की प्रीति तोमर ने भी मदद की थी. अस्पताल मुख्यमंत्री तक पहुंचा था. ऐसे आरोप लगाकर जनता के भरोसा को तोड़ने की कोशिश की जा रही है. तब कोर्ट ने कहा कि सिलेंडर अस्पताल के थे जिन्हें भरा जाना था. हम ये नहीं जानते कि अस्पताल ने सिलेंडर कैसे भरवाए. ऐसा हो सकता है कि उन्होंने काफी कोशिशें की है. कोर्ट ने कहा कि जिसने मदद की उसे दंड देने का काम मत कीजिए.

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