नई दिल्ली:दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने रजिस्ट्रार जनरल और दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव को नोटिस जारी किया. इसमें पूछा गया है कि कौन सी अदालत भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अदालत की निगरानी में जांच के लिए नाबालिग पहलवानों की याचिका पर विचार करेगी. वर्तमान में राउज एवेन्यू कोर्ट सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों को देखता है.
हालांकि, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत अपराधों के लिए प्रासंगिक अधिकार क्षेत्र वाली अदालत पटियाला हाउस कोर्ट है. पहलवानों ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत राउज एवेन्यू कोर्ट के समक्ष दो याचिकाएं दायर कर अदालत की निगरानी में जांच की मांग की थी. इनमें से एक दलील 18 साल से ऊपर के पहलवानों के समूह की थी, जबकि दूसरी नाबालिग पहलवानों की.
पहलवानों की याचिका पर नोटिस जारी:अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) हरजीत सिंह जसपाल ने पहलवानों की याचिका पर नोटिस जारी किया, वहीं उन्होंने अन्य मामले को हाईकोर्ट भेज दिया. हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने आज इस मामले की सुनवाई की और रजिस्ट्रार जनरल और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया. उन्होंने प्रतिवादियों को छह जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया.
FIR दर्ज करने के लिए SC गए थे पहलवान:पहलवानों के लिए अधिवक्ता शौर्य लांबा, अनिंद्य मल्होत्रा, राशि चौधरी और ऋषभ गोयल के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा पेश हुए. पहलवानों ने अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए राउज एवेन्यू कोर्ट का रुख किया और अपने बयान दर्ज करने की मांग की. इसके अलावा उन्होंने जांच की कार्रवाई रिपोर्ट मांगी. जिसके बाद 10 मई को अदालत ने नोटिस जारी किया था. पहलवान ने पहले सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. दिल्ली पुलिस ने तब शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि वह पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करेगी.
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इसके बाद दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि मामले में दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और जांच ट्रैक पर है. साथ ही बयान भी दर्ज किए जा रहे हैं. दिल्ली पुलिस के दिए गए आश्वासनों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बंद कर दिया था और कहा था कि उसने पहले निर्देश दिया था कि शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान की जाए और यही दिल्ली पुलिस ने भी किया है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसी अन्य राहत के लिए याचिकाकर्ता उचित न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत या हाई कोर्ट जा सकते हैं.
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