नई दिल्ली :राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बुधवार को एक बार फिर से गंभीर हो गया. इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जहरीली हवा पर अंकुश लगाने में विफलता नीति निर्माताओं और सरकार की विफलताओं पर निर्भर है. इसके लिए सरकार को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए. इस बारे में ईटीवी भारत से बात करते हुए वॉरियर मॉम्स के सह संस्थापक और पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी ने कहा कि हमारे नीति निर्माता जहरीली हवा के इस स्तर को रोकने में लगातार विफल हो रहे हैं और यह कई वर्षों से हो रहा है.
उन्होंने कहा कि समय की मांग है व्यवस्थित परिवर्तन से इस विषाक्त स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है. कंधारी ने कहा कि हम प्रौद्योगिकी से बहुत प्रेरित हैं और इस स्थिति में भी सरकार कारों और बसों में निरर्थक प्यूरीफायर ला रही है. ये सिर्फ हास्यास्पद उपाय हैं. वास्तविक समय समाधान के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए के बारे में पूछे जाने पर कंधारी ने जवाब दिया कि प्रदूषण के स्रोत को जानना पहला कदम है.
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राज्य, शहर या देश के प्रदूषण के अपने स्रोत होते हैं. हम पराली जलाने के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन स्थानीय प्रदूषण भी गंभीर चिंता का विषय है. हम यह विचार लेकर आ रहे हैं कि 10 लाख नए पौधे लगा रहे हैं लेकिन उन पेड़ों का क्या जो आपने नष्ट कर दिए हैं. हमारे नीति निर्माताओं को मजबूत होने की जरूरत है और सरकार को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठना चाहिए. इसी तरह, सेंटर फॉर साइंस एंड डेवलपमेंट द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की जहरीली हवा के पीछे पराली जलाना एकमात्र प्रमुख कारक नहीं है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने ईटीवी भारत को बताया कि यह सिर्फ पराली जलाने का मामला नहीं है, बल्कि स्थानीय प्रदूषण भी है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस प्रदूषण का बड़ा हिस्सा स्थानीय स्रोत से है. इस पर अंकुश लगाने के तरीकों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के लिए पहले से ही कार्य योजनाएं बनाई गई हैं. हमें वास्तव में दिल्ली के सभी क्षेत्रों और पूरे आंतरिक क्षेत्र में मजबूत अनुपालन रणनीति के साथ कड़े कार्यान्वयन की आवश्यकता है. इस बिगड़ती स्थिति के बीच दिल्ली सरकार ने बुधवार को दिल्ली में वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर के बीच स्कूलों में 9 से 18 नवंबर तक शीतकालीन अवकाश की घोषणा कर दी है. दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां इस जहरीली हवा पर आरोप-प्रत्यारोप में लगी हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को फसल अवशेष जलाने को सुनिश्चित करने का आदेश दिया और यहां तक कि सम-विषम योजना की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाए.
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