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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किए स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी के दर्शन, दो दिन पहले आए थे अमित शाह - Rajnath Singh offers prayers to saint Ramanujacharya

प्रधानमंत्री के बाद बीजेपी के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री लगातार रामानुजाचार्य सहस्राब्दी जयंती समारोह में शामिल होने के लिए हैदराबाद का दौरा कर रहे हैं. इस कड़ी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गुरुवार को स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी पर श्रद्धा व्यक्त करने पहुंचे.

Defence Minister Rajnath Singh visits the Statue of Equality
Defence Minister Rajnath Singh visits the Statue of Equality

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Published : Feb 10, 2022, 9:29 PM IST

हैदराबाद : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी का दौरा किया और हैदराबाद में संत रामानुजाचार्य की पूजा की. इस मौके पर रक्षा मंत्री ने कहा कि मैं स्वामी रामानुज की इस भव्य प्रतिमा को उनके अवतार के रूप में देखता हूं. रामानुजाचार्य हजार साल पहले समानता की आवाज थे.

बता दें कि 5 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Modi in Telangana) ने तेलंगाना के शमशाबाद में स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी (Statue of Equality) का उद्घाटन किया था. प्रधानमंत्री के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मंगलवार को हैदराबाद के स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी पहुंचे थे. उन्होंने श्री रामानुजाचार्य की जयंती समारोह में पूजा-अर्चना भी की थी.

स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी पर गृह मंत्री अमित शाह.

बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यवाह मोहन भागवत संत रामानुजाचार्य ने भी भक्त संत श्री रामानुजाचार्य (Bhakti Saint Sri Ramanujacharya) की सहस्राब्दी जयंती के समारोह में शामिल होने के लिए हैदराबाद का दौरा किया था. अपने दौरे में मोहन भागवत ने कहा था कि रामानुजाचार्य का स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिट समाज में समानता, सनातन धर्म का संदेश फैलाएगा. उनके साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हैदराबाद आए थे.

रामानुजाचार्य सहस्राब्दी जयंती समारोह में मोहन भागवत ने भी शिरकत की थी.

1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक संत थे. उन्होंने देशभर में समानता और सामाजिक न्याय की अलख जगाई थी. रामानुज ने भक्ति आंदोलन को नया रूप दिया था. वह अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणास्रोत माने गए हैं. उन्होंने ऊंच-नीच का भेद हटाते हुए समाज की सभी जातियों के लिए मंदिर के दरवाजे खोलने की वकालत की थी. 1137 ई. में वह ब्रह्मलीन हो गए थे.

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