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इंदिरा गांधी को अयोग्य करार देने का निर्णय बहुत साहस भरा था : रमना

भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा 1975 में चुनाव में गड़बड़ी के आरोपों पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य करार देने का निर्णय बहुत साहस भरा था.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण
भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण

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Published : Sep 11, 2021, 10:44 PM IST

प्रयागराज : भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमनाने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा 1975 में चुनाव में गड़बड़ी के आरोपों पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य करार देने का निर्णय बहुत साहस भरा था. जिसने राष्ट्र को हिलाकर रख दिया और इसके परिणाम स्वरूप आपातकाल लागू हुआ.

न्यायमूर्ति एन. वी रमना राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे. इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में एक नए भवन का शिलान्यास राष्ट्रपति के कर कमलों द्वारा किया गया.

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, 1975 में वह न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा थे जिन्होंने ऐसा आदेश पारित किया जिसमें इंदिरा गांधी को अयोग्य करार दिया गया. इस निर्णय ने देश को हिलाकर रख दिया. वह बहुत साहस भरा निर्णय था और कहा जा सकता है कि इसी के परिणाम स्वरूप आपातकाल की घोषणा की गई.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का 150 साल से अधिक पुराना इतिहास है और इसके बार एवं पीठ ने देश को कई महान कानूनी विभूतियां दी हैं. उल्लेखनीय है कि 12 जून, 1975 को न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) को चुनाव में गड़बड़ी को दोषी पाया और उन्हें जनप्रतिनिधि कानून के तहत किसी भी निर्वाचित पद पर रहने से रोक दिया था.

इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश में रायबरेली सीट से 1971 का लोकसभा चुनाव अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राज नारायण को हराकर जीता था. पराजित नेता ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि उनके चुनाव एजेंट यशपाल कपूर एक सरकारी सेवक थे और उन्होंने (इंदिरा गांधी) ने निजी चुनाव संबंधी कार्यों के लिए सरकारी अधिकारियों का इस्तेमाल किया.

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इस बीच, प्रधान न्यायाधीश रमण ने देश की अदालतों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत में अब भी अदालतें जीर्ण-शीर्ण भवनों और खराब बुनियादी ढांचे के साथ काम कर रही हैं जहां उचित सुविधाएं नहीं हैं. ऐसी स्थिति सभी के लिए अहितकर है. न्यायमूर्ति रमण ने कहा अदालत में यह स्थिति कर्मचारियों और न्यायाधीशों के लिए अप्रिय वातावरण का निर्माण करती है जिससे उन्हें अपना काम प्रभावी ढंग से करने में मुश्किल होती है. अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद हम भारत में अदालतों के लिए अच्छा आधारभूत ढांचा उपलब्ध कराने में विफल रहे.

उन्होंने कहा यही वजह है कि मैं नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन का समर्थन कर रहा हूं जो राष्ट्रीय अदालत विकास परियोजना की अवधारणाएं विकसित कर उन्हें क्रियान्वित करेगा.यह उन विभिन्न ढांचागत विकास वैधानिक निकायों की तर्ज पर काम करेगा जो देशभर में राष्ट्रीय संपत्तियों के सृजन की दिशा में काम करते हैं.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों की चिंताजनक संख्या के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मल्टीलेवल पार्किंग और अधिवक्ताओं के चेंबर के निर्माण से लंबित मामलों के निपटारे को लेकर बार और पीठ में पुनः ऊर्जा का संचार होगा.

न्यायमूर्ति रमण ने गरीबों और वादकारियों के हितों के लिए राष्ट्रपति कोविंद के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने का विचार उनका ही था जिसे अब लागू किया जा चुका है. प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति विनीत शरण के पिता और प्रख्यात अधिवक्ता आनंद भूषण शरण के तैल चित्र का भी अनावरण किया और उन्हें इलाहाबाद के सबसे उत्कृष्ट एवं सम्मानित अधिवक्ताओं में से एक बताया.

(पीटीआई-भाषा)

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