पुरी : ओडिशा के पुरी श्रीमंदिर (ShriMandir) में आज भगवान श्रीजगन्नाथ (Lord Shri Jagannath) के जयघोष से गुंजायमान रहेगा. क्योंकि आज देवस्नान पूर्णिमा है. गुरुवार को श्रीजगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का महास्नान होने जा रहा है.
हर साल इस दिन श्रीजिऊ के दर्शन को लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती थी. लेकिन इस बार बगैर श्रद्धालुओं की उपस्थिति के यह पर्व आयोजित हो रहा है. श्रीमंदिर के सेवायत भगवान के विग्रहों को स्नान कराएंगे. उसके बाद भगवान की मंगल आरती करेंगे.
भगवान श्रीजगन्नाथ का देवस्नान पूर्णिमा पढ़ें :पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया गया
देव स्नान पूर्णिमा के लिए रंग-बिरंगे फुलों से श्रीमंदिर और स्नान मंडप की सुंदर सवाजट हुई है. इस पर्व के साथ ही रथयात्रा की तैयारियां भी शुरू हो जाएंगी.
वहीं, पुरी पुलिस की ओर से सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किये गए हैं. कार्यक्रम में किसी तरह की भीड़भाड़ को रोकने के लिए पाबंदियां लगाई गई हैं. पुलिस ने लोगों से इसमें सहयोग करने की अपील की है.
बता दें कि यह उत्सव भगवान श्रीजगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा से पहले मनाया जाता है. रथ यात्रा 12 जुलाई को मनाई जाएगी.
देवस्नान पूर्णिमा की तैयारियां वीडियो में देखें :ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र का जलाभिषेक
पुरी राजा नहीं करेंगे छेरा पहंरा
देवस्नान पूर्णिमा पर हर साल पुरी राजा गजपति दिव्यसिंह देव (Gajapati Divyasingh Deo) यहां विशेष नीति पूरी करते हैं. श्रीजगन्नाथ के स्नान मंडप पर उनके महास्नान से पहले छेरा पहंरा (फर्श की सफाई) करते हैं. लेकिन इस साल कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के मद्देनजर श्रीमंदिर में पुरी राजा इस नीति को पूरी नहीं करेंगे.
भगवान श्रीजगन्नाथ का महास्नान श्रीजगन्नाथ के स्नान यात्रा पर पुरी गजपति महाराज अपने पारंपरिक कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे. क्योंकि उनके दो निजी कर्मचारी कोविड-19 से संक्रमित पाए गए हैं. ऐसे में उनके भी संक्रमित होने की आशंका है जिसकी वजह से वह इस परंपरा को इस साल नहीं निभाएंगे.
जानकारी के मुताबिक, गजपति महाराज की अनुपस्थिति में उनके स्थान पर उनके प्रतिनिधि मुदिरस्थ इस नीति का पालन करेंगे.
सम्पूर्ण पूजन विधि
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीजगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह-सुबह श्रीजगन्नाथ पुरी के रत्नसिंहासन से स्नान मंडप पर लाया जाता है. इस प्रक्रिया को पोहंडी कहा जाता है, जिसमें मंत्रों का उच्चारण, घंटा, ढोल, बिगुल और झांझ की थाप के साथ जीवंत रूप देखने को मिलता है. देवताओं के स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जल जगन्नाथ मंदिर के अंदर बने सोना-कुआं से 108 घड़ों में निकाला जाता है. इन सभी घड़ों के जल को मंदिर के पुजारी हल्दी जौ, अक्षत, चंदन, पुष्प और सुगंध से पवित्र करते हैं. इसके बाद इन घड़ों को स्नान मंडप में लाकर विधि विधान से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का स्नान संपन्न कराया जाता है जिसे जलाभिषेक कहते हैं. इसके बाद दोपहर में भगवान श्रीजगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को फिर से हाथी-गणपति वेश पहनाकर तैयार किया जाता है. बाद में रात में तीन मुख्य देवता मंदिर परिसर में स्थित अनसर गृह में निवृत्त हो जाते हैं. अनसर अवधि के दौरान, भक्त अपने देवताओं को नहीं देख सकते हैं. हिंदू किवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि स्नान यात्रा अनुष्ठान के दौरान देवताओं को बुखार हो जाता है और 15 दिनों का एकान्त वास होता है.