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भारत के राष्ट्रपिता को सब जानते हैं, देश के पितामह के बारे में जानिये

आज देश के पितामह कहे जाने वाले दादाभाई नौरोजी की पुण्य तिथि है. 4 सितंबर 1825 को दादाभाई का जन्म हुआ और 92 साल की उम्र में 30 जून, 1917 को उऩका निधन हुआ. अपने जीवन काल में उन्होंने ऐसा क्या किया कि उन्हें Grand Old Man of India कहा जाता है. जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

दादाभाई नौरोजी
दादाभाई नौरोजी

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Published : Jun 30, 2021, 5:01 AM IST

हैदराबाद : भारत के राष्ट्रपिता का नाम सब जानते हैं, क्या आप जानते हैं कि भारत का पितामह किसे कहा जाता है? वो कौन हैं जिन्हें महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले या बाल गंगाधर तिलक से पहले भारत का प्रमुख नेता माना जाता है? या ब्रिटेन की संसद में पहुंचने वाला पहला एशियाई कौन था ? इन तीनों सवालों का जवाब सिर्फ एक नाम है- दादाभाई नौरोजी. आज दादाभाई नौरोजी की पुण्य तिथि है. वैसे अब तक जितना आपने पढ़ा है दादाभाई नौरोजी की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है. एक प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार, विचारक, सियासतदान, व्यापारी और ना जाने क्या-क्या थे दादाभाई नौरोजी...

कहानी दादाभाई नौरोजी की

दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को बंबई में एक पारसी परिवार में हुआ. जल्द ही पिता का साया सिर से उठ गया तो मां ने पूरी जिम्मेदारी संभाली. वो जिस भी मुकाम पर पहुंचे उसमें उनकी मां का बड़ा योगदान था. 11 साल की उम्र में गुलबाई से शादी हो गई. पढ़ने में अच्छे थे तो साहित्य में रुचि दिखाई और बंबई के एल्फिन्सटन कॉलेज में दाखिला हो गया. 25 साल की उम्र तक वो उसी एल्फिन्स्टन कॉलेज में प्रोफेसर बन गए जहां कभी छात्र थे. जबकि उस दौर में इंस्टीट्यूट में सिर्फ ब्रिटिश प्रोफेसरों का ही दबदबा हुआ करता था.

दादाभाई नौरोजी की प्रतिमा

अंग्रेजों की पोल खोली और लोगों को जागरुक किया

दादाभाई नौरोजी जल्द समझ गए थे कि अंग्रेज भारत का शोषण कर रहे हैं. इसलिए देश के लोगों को अंग्रेजों के शोषण के प्रति जागरुक करने लगे. लोगों को अपने साथ जोड़ा, भाषण दिए और कई लेख भी लिखे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जागरुक हों. पारसी समुदाय के लिए रहनुमाई मजदान सभा बनाई जो आज भी मौजूद है, रस्त गोफ्तार (सच बोलनेवाला) नाम से एक पत्रिका भी शुरू की.

दादाभाई नौरोजी को Grand Old Man of India कहा जाता था

इसके बाद दादाभाई ने थ्योरी ऑफ 'ड्रेन ऑफ वेल्थ' के जरिये अंग्रेजों की पोल खोली और लोगों को जागरुक किया. दरअसल अंग्रेज भारत के भले की सिर्फ बात करते थे. दादाभाई ने बताया कि अंग्रेज भारत से कच्चा माल ब्रिटेन ले जाते हैं और वहां फैक्ट्रियों में सामान बनाकर भारत में ही ऊंचे दाम पर बेचते हैं. इसलिये भारत में कोई फैक्ट्री नहीं लगाते, ताकि भारत और भारतीयों को लूटा जा सके.

ब्रिटिश संसद पहुंचने वाले पहले एशियाई थे दादाभाई नौरोजी

कांग्रेस के अध्यक्ष और स्वराज्य की मांग

दादाभाई नौरोजी 3 बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. सबसे पहले साल1886 में वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट बनाए गए और फिर साल 1893 में अध्यक्ष बने. साल 1906 में वो तीसरी बार उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. 1906 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ था. इसी अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने सबसे पहले स्वराज्य शब्द का इस्तेमाल किया.

दादाभाई नौरोजी ने स्वराज यानी भारत का राज को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित कर दिया. उस समय अपने तरह की ये पहली घोषणा थी. दादाभाई नौरोजी को Grand Old Man of India कहा जाता था. नौरोजी को भारत के स्वतंत्रता संघर्ष का जनक (Father of ‘Indian Freedom Struggle) भी कहा जाता है

ब्रिटेन की संसद में पहुंचे पहले एशियाई

दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले पहले भारतीय ही नहीं, बल्कि पहले एशियाई थे. हालांकि, यहां तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं था. भारत ब्रिटिश उपनिवेश था और इसलिये वो ब्रिटेन में रहकर चुनाव लड़ सकते थे. 1886 में वो चुनावी मैदान में उतरे लेकिन हार गए. इस बीच उन्होंने महिलाओं के मताधिकार के मुखर समर्थक बनकर उभरे, कई आंदोलनों में शिरकत की. खुद श्रम और समाजवाद के साथ खड़े रहकर मजदूरों के अधिकारों के लिए और पूंजीवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की.

भारत में जल्द से जल्द सुधारों की जरूरत को लेकर दादाभाई ब्रिटेन के एक बड़े वर्ग को समझाने में कामयाब हुए. जिसके बाद उन्हें मजदूर संगठनों से लेकर, महिलाओं, किसानों का हित चाहने वालों का समर्थन मिलने लगा. हालांकि, कई लोगों का विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा, जिसमें तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड सेलिसबरी भी थे. सेलिसबरी ने नौरोजी को एक 'काला आदमी' बताया जो अंग्रेजों के वोट का हकदार नहीं था.

उनके मुताबिक ब्रिटिश शासन, भारत का “ख़ून बहा कर” मौत की तरफ़ ले जा रहा था और भयावह अकाल पैदा कर रहा था. इससे नाराज़ कई ब्रितानियों ने उन पर देशद्रोह और निष्ठाहीनता का आरोप लगाया. वह विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि एक उपनिवेश में रहने वाला व्यक्ति सार्वजनिक रूप से इस तरह के दावे कर रहा था.

इस सबके बावजूद दादाभाई नौरोजी लिबरल पार्टी से 1892 में सेंट्रल फिंसबरी से सिर्फ 5 वोट से चुनाव जीतने में कामयाब हुए. जिसके बाद उन्हें दादाभाई नैरो मेजोरिटी भी कहा जाने लगा था. दादाभाई ने ब्रिटिश संसद में अपनी बात रखी और कहा कि अंग्रेजों ने भारतीयों को गुलाम की तरह रखा है. वो भारतीयों के हाथ में सत्ता देने के पक्ष में थे और इसके लिए कानून लाना चाहते थे.

आधुनिक विचारों के धनी थे दादाभाई

दादाभाई नौरोजी आधुनिक विचारों वाले थे, उन्हें जातिवाद और साम्राज्यवाद के विरोधी के रूप में जाना जाता था. उनकी प्रगतिशील राजनीतिक शक्ति और सोच ने ही उन्हें उस शिखर तक पहुंचाया. दादा भाई नौरोजी कहते थे कि “मैं धर्म और जाति से परे एक भारतीय हूं.” वो कहते थे कि ‘जब एक शब्द से काम चल जाए तो दो शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

- अपनी युवा अवस्था में दादाभाई नौरोजी ने लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला. इसके लिए उन्हें रूढिवादी सोच का विरोध भी झेलना पढ़ा. पर उनके पास अपनी बात को सही ढंग से पेश करने का हुनर था. कुछ ही सालों में बॉम्बे के उनके स्कूल में कई छात्राएं पढ़ने लगीं. महिला शिक्षा को लेकर उन्होंने लोगों का नजरिया बदलने में अहम भूमिका निभाई.

-इसके बाद उन्होंने लैंगिग समानता यानि महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा दिलाने की मांग की. आज से करीब 150 बरस पहले दादाभाई नौरोजी ने कहा था कि एक दिन भारतीय ये जरूर समझेंगे कि महिलाओं को भी हर क्षेत्र, सुविधा या काम पर पुरुषों जितना ही अधिकार है.

- दादाभाई नौरोजी ने महिलाओं के मताधिकार के भी समर्थक थे.

- दादाभाई कामगारों की आवाज भी बने और उन्होंने एक दिन में 8 घंटे काम करने के नियम के लिए आवाज बुलंद की.

- 1855 में जब दादाभाई ब्रिटेन पहुंचे तो वहां की समृद्धि देखकर उन्हें भारत की गरीबी की वजह पता लग गई. साम्राज्यवाद को उपनिवेशों (गुलाम देश) की तरक्की बताने वालों को उन्होंने चुनौती दी और साबित किया कि सच इसके बिल्कुल उलट है.

- दादाभाई नौरोजी ने भारत में बढ़ती गरीबी के लिए अंग्रेजों को बताया. उन्होंने लोगों को समझाया कि कैसे अंग्रेज भारत का धन लूटकर इंग्लैंड ले जा रहे हैं.

-1855 में लंदन में भारत की पहली कंपनी कामा एंड कंपनी में वो पार्टनर बन गए. तीन साल के भीतर ही नैतिक कारणों का हवाला देकर दादाभाई ने कंपनी से इस्तीफा दे दिया. वहां उन्होंने नौरोजी एंड कंपनी नाम से कपास निर्यात करने वाली कंपनी की स्थापना की. कुछ समय बाद वह यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन में गुजराती भाषा के अध्यापक नियुक्त हुए.

30 जून 1917 को हुआ था निधन

दादाभाई नौरोजी का निधन

दादाभाई नौरोजी ने 92 साल की उम्र में 30 जून, 1917 को अंतिम सांस ली. दादाभाई नौरोजी भारतीय इतिहास का वो प्रकाश पुंज हैं जिसने रूढ़िवादी के अंधेरे के पार देखना सिखाया. आज से करीब 150 बरस पहले उनकी नई सोच में वो आधुनिक विचार थे जिनकी आज भी दुनिया के कई हिस्सों में कल्पना करना मुश्किल है. शिक्षा से लेकर राजनीति और समाजिक कार्यों से लेकर उनकी दूरगामी सोच का ही नतीजा है कि स्वराज की कल्पना करने की बात हो या लड़कियों को शिक्षा और लैंगिग समानता देने की बात हो. दादा भाई नौरोजी के विचार हमेशा आधुनिक सोच और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहेंगे.

दादाभाई नौरोजी के नाम से स्ट्रीट

आज दिल्ली में एक इलाका नौरोजी नगर के नाम से मशहूर है. वहीं मुंबई से लेकर पाकिस्तान के कराची और लंदन तक में सड़कों का नाम दादाभाई नौरोजी के नाम पर हैं. जो इस दुनिया को नई राह दिखाती है. लेकिन सवाल है कि आज की सियासत को दादाभाई नौरोजी और उनकी दी गई सीख याद है?

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