हैदराबाद : भारत के राष्ट्रपिता का नाम सब जानते हैं, क्या आप जानते हैं कि भारत का पितामह किसे कहा जाता है? वो कौन हैं जिन्हें महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले या बाल गंगाधर तिलक से पहले भारत का प्रमुख नेता माना जाता है? या ब्रिटेन की संसद में पहुंचने वाला पहला एशियाई कौन था ? इन तीनों सवालों का जवाब सिर्फ एक नाम है- दादाभाई नौरोजी. आज दादाभाई नौरोजी की पुण्य तिथि है. वैसे अब तक जितना आपने पढ़ा है दादाभाई नौरोजी की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है. एक प्रोफेसर, लेखक, पत्रकार, विचारक, सियासतदान, व्यापारी और ना जाने क्या-क्या थे दादाभाई नौरोजी...
कहानी दादाभाई नौरोजी की
दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को बंबई में एक पारसी परिवार में हुआ. जल्द ही पिता का साया सिर से उठ गया तो मां ने पूरी जिम्मेदारी संभाली. वो जिस भी मुकाम पर पहुंचे उसमें उनकी मां का बड़ा योगदान था. 11 साल की उम्र में गुलबाई से शादी हो गई. पढ़ने में अच्छे थे तो साहित्य में रुचि दिखाई और बंबई के एल्फिन्सटन कॉलेज में दाखिला हो गया. 25 साल की उम्र तक वो उसी एल्फिन्स्टन कॉलेज में प्रोफेसर बन गए जहां कभी छात्र थे. जबकि उस दौर में इंस्टीट्यूट में सिर्फ ब्रिटिश प्रोफेसरों का ही दबदबा हुआ करता था.
अंग्रेजों की पोल खोली और लोगों को जागरुक किया
दादाभाई नौरोजी जल्द समझ गए थे कि अंग्रेज भारत का शोषण कर रहे हैं. इसलिए देश के लोगों को अंग्रेजों के शोषण के प्रति जागरुक करने लगे. लोगों को अपने साथ जोड़ा, भाषण दिए और कई लेख भी लिखे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जागरुक हों. पारसी समुदाय के लिए रहनुमाई मजदान सभा बनाई जो आज भी मौजूद है, रस्त गोफ्तार (सच बोलनेवाला) नाम से एक पत्रिका भी शुरू की.
इसके बाद दादाभाई ने थ्योरी ऑफ 'ड्रेन ऑफ वेल्थ' के जरिये अंग्रेजों की पोल खोली और लोगों को जागरुक किया. दरअसल अंग्रेज भारत के भले की सिर्फ बात करते थे. दादाभाई ने बताया कि अंग्रेज भारत से कच्चा माल ब्रिटेन ले जाते हैं और वहां फैक्ट्रियों में सामान बनाकर भारत में ही ऊंचे दाम पर बेचते हैं. इसलिये भारत में कोई फैक्ट्री नहीं लगाते, ताकि भारत और भारतीयों को लूटा जा सके.
कांग्रेस के अध्यक्ष और स्वराज्य की मांग
दादाभाई नौरोजी 3 बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. सबसे पहले साल1886 में वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेसिडेंट बनाए गए और फिर साल 1893 में अध्यक्ष बने. साल 1906 में वो तीसरी बार उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. 1906 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ था. इसी अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने सबसे पहले स्वराज्य शब्द का इस्तेमाल किया.
दादाभाई नौरोजी ने स्वराज यानी भारत का राज को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित कर दिया. उस समय अपने तरह की ये पहली घोषणा थी. दादाभाई नौरोजी को Grand Old Man of India कहा जाता था. नौरोजी को भारत के स्वतंत्रता संघर्ष का जनक (Father of ‘Indian Freedom Struggle) भी कहा जाता है
ब्रिटेन की संसद में पहुंचे पहले एशियाई
दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले पहले भारतीय ही नहीं, बल्कि पहले एशियाई थे. हालांकि, यहां तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं था. भारत ब्रिटिश उपनिवेश था और इसलिये वो ब्रिटेन में रहकर चुनाव लड़ सकते थे. 1886 में वो चुनावी मैदान में उतरे लेकिन हार गए. इस बीच उन्होंने महिलाओं के मताधिकार के मुखर समर्थक बनकर उभरे, कई आंदोलनों में शिरकत की. खुद श्रम और समाजवाद के साथ खड़े रहकर मजदूरों के अधिकारों के लिए और पूंजीवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की.
भारत में जल्द से जल्द सुधारों की जरूरत को लेकर दादाभाई ब्रिटेन के एक बड़े वर्ग को समझाने में कामयाब हुए. जिसके बाद उन्हें मजदूर संगठनों से लेकर, महिलाओं, किसानों का हित चाहने वालों का समर्थन मिलने लगा. हालांकि, कई लोगों का विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा, जिसमें तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड सेलिसबरी भी थे. सेलिसबरी ने नौरोजी को एक 'काला आदमी' बताया जो अंग्रेजों के वोट का हकदार नहीं था.
उनके मुताबिक ब्रिटिश शासन, भारत का “ख़ून बहा कर” मौत की तरफ़ ले जा रहा था और भयावह अकाल पैदा कर रहा था. इससे नाराज़ कई ब्रितानियों ने उन पर देशद्रोह और निष्ठाहीनता का आरोप लगाया. वह विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि एक उपनिवेश में रहने वाला व्यक्ति सार्वजनिक रूप से इस तरह के दावे कर रहा था.