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Published : Apr 9, 2022, 3:31 PM IST

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ईसी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, पार्टियों के मुफ्त उपहार देने के वादे पर रोक नहीं लगा सकते

चुनाव के समय राजनीतिक दल बड़े-बड़े वादे करते हैं. काफी कुछ मुफ्त देने का एलान भी करते हैं. मुफ्त के वादों रोक लगाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस पर चुनाव आयोग (Election Commission) की ओर से कहा गया है कि पार्टियों के मुफ्त उपहार देने के वादे पर रोक लगाना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : चुनाव आयोग (ईसी) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना एक राजनीतिक दल का नीतिगत फैसला है. ईसी राज्य की नीतियों और पार्टियों द्वारा लिए गए फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकता. आयोग ने एक हलफनामे में कहा, 'चुनाव से पहले या बाद में किसी भी मुफ्त उपहार की पेशकश या वितरण संबंधित पार्टी का एक नीतिगत निर्णय है. ऐसी नीतियां आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या राज्य के आर्थिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसको लेकर राज्य के मतदाताओं तय करते हैं.'

ईसी ने कहा कि 'जीतने वाली पार्टी सरकार बनाते समय जो नीतियां बनाती है, चुनाव आयोग उन नीतियों और निर्णयों को विनियमित नहीं कर सकता है. कानून में प्रावधानों को सक्षम किए बिना इस तरह की कार्रवाई, शक्तियों को रोकना मुश्किल है.' चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि उसके पास तीन आधारों को छोड़कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है.

ये तीन आधार धोखाधड़ी और जालसाजी पर प्राप्त पंजीकरण, पार्टी की संविधान के प्रति आस्था, निष्ठा समाप्त होना और कोई अन्य समान आधार हैं, जिन्हें शीर्ष अदालत ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान और अन्य (2002) के मामले में रेखांकित किया था. चुनाव आयोग ने कहा कि उसने कानून मंत्रालय को राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने और राजनीतिक दलों के पंजीकरण और पंजीकरण को विनियमित करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग करने में सक्षम बनाने के लिए भी सिफारिशें की हैं.

जनहित याचिका में क्या :दरअसल चुनाव आयोग ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर एक जनहित याचिका के जवाब में हलफनामा दायर किया है. जनहित याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त का वादा या वितरण एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है. यह चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है.

याचिका में शीर्ष अदालत से यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि चुनाव से पहले जनता के धन से अतार्किक मुफ्त का वादा, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करता है. शीर्ष अदालत ने 25 जनवरी को याचिका पर नोटिस जारी किया था. याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए कि वह सार्वजनिक कोष से चीजें मुफ्त देने का वादा या वितरण नहीं करेंगे.

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