नई दिल्ली : चुनाव आयोग (ईसी) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना एक राजनीतिक दल का नीतिगत फैसला है. ईसी राज्य की नीतियों और पार्टियों द्वारा लिए गए फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकता. आयोग ने एक हलफनामे में कहा, 'चुनाव से पहले या बाद में किसी भी मुफ्त उपहार की पेशकश या वितरण संबंधित पार्टी का एक नीतिगत निर्णय है. ऐसी नीतियां आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या राज्य के आर्थिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसको लेकर राज्य के मतदाताओं तय करते हैं.'
ईसी ने कहा कि 'जीतने वाली पार्टी सरकार बनाते समय जो नीतियां बनाती है, चुनाव आयोग उन नीतियों और निर्णयों को विनियमित नहीं कर सकता है. कानून में प्रावधानों को सक्षम किए बिना इस तरह की कार्रवाई, शक्तियों को रोकना मुश्किल है.' चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि उसके पास तीन आधारों को छोड़कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है.
ये तीन आधार धोखाधड़ी और जालसाजी पर प्राप्त पंजीकरण, पार्टी की संविधान के प्रति आस्था, निष्ठा समाप्त होना और कोई अन्य समान आधार हैं, जिन्हें शीर्ष अदालत ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान और अन्य (2002) के मामले में रेखांकित किया था. चुनाव आयोग ने कहा कि उसने कानून मंत्रालय को राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने और राजनीतिक दलों के पंजीकरण और पंजीकरण को विनियमित करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग करने में सक्षम बनाने के लिए भी सिफारिशें की हैं.