पलामू: झारखंड में माओवादी अंतिम सांसे गिन रहे हैं, जिन गांवों ने माओवादियों को महिला दस्ता दिया था, उन गांव की तस्वीर को बदलने की प्रशासनिक पहल की जा रही है. माओवादियों को महिला दस्ता और कैडर देने वाला गांव पाल्हे, तुरकुन और गोरहो नक्सलियों के आतंक के कारण मुख्यधारा से अलग रहे हैं. अब इन गांव की तस्वीर बदलने के लिए पलामू डीसी ए दोड्डे और उनकी टीम ने पहल की है(DC visited Palhe and Turkun villages ) .
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पलामू का नक्सल प्रभावित पाल्हे तुरकुन और गोरहो गांव ने कभी माओवादियों को महिला दस्ता दिया था. इन इलाकों के स्कूल 2015-16 से बंद है. इसका नतीजा ये हुआ कि इलाके की कई लड़कियां और युवा नक्सली संगठन में शामिल हो गए. पलामू डीसी ए दोड्डे के नेतृत्व में पहली बार गांव में प्रशासनिक टीम गुरुवार को पंहुची. कराब दो घंटे पहाड़ पर पैदल चलने के बाद डीसी के साथ प्रशासनिक टीम पाल्हे और तुरकुन गांव में पंहुची. इस दौरान डीसी ने ग्रामीणों के साथ बैठक की और उनकी समस्याओं को सुना.
पलामू डीसी दोड्डे ने बताया कि गांव के स्कूल को शुरू करने के लिए सरकार को लिखा जाएगा, जबकि गांव को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की गई है. गांव में डीसी करीब तीन घंटे तक रुके इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों से उनकी समस्याएं सुनी. डीसी ने युवाओं से मुख्य धारा से नहीं भटकने की अपील भी की. इस दौरान उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से इन गांव में विकास के लिए रोड मैप पर चर्चा की. उन्होंने गांव के बच्चों और बुजुर्गों से भी बातचीत की और इलाके के विकास के लिए सुझाव मांगा. यहां उन्होंने बताया कि ग्रामीणों को कई तरह के सरकारी योजनाओं के लाभ से जोड़ा जा रहा है. गांव के चार युवाओं को चयन किया गया है, उन्हें मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना से जोड़ा जाएगा.
गांव में स्कूल बंद, 450 से अधिक बच्चे प्रभावित: पाल्हे, तुरकुन और गोरहो पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 70 किलोमीटर दूर है. चारों तरफ पहाड़ियों ये गांव घिरे हुए हैं. पाल्हे और तुरकुन जाने के लिए एक मात्र रास्ता पैदल जाने का ही है. गांव में साइकिल भी नहीं जा सकती है. इन गांव में पुलिस को छोड़ कोई भी सरकारी तंत्र गुरुवार से पहले नहीं पहुंची थी. गांव में बने सरकार के खिलाफ माओवादियों के फरमान अभी भी लिखे हुए हैं. 2016 -17 में बच्चो के कम संख्या वाले स्कूल को आपस में मर्ज कर दिया गया था. उस दैरान पाल्हे, तुरकुन और गोरहो के भी स्कूलों को मर्ज करते हुए गांव से करीब छह किलोमीटर गम्हरियाडीह कर दिया गया था. इससे करीब 450 बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई और कई स्कूल से वंचित हो गए.
गांव का एक लड़का प्रसाद कुमार बताता है कि स्कूल बंद रहने कारण उसकी पढ़ाई छूट गई, हालांकि अब इलाके का माहौल बदल गया है उसकी बहन भी कभी माओवादी संगठन में शामिल रही थी. अब वह जेल से बाहर निकल चुकी है और अच्छे से रह रही है. इलाके में किसी प्रकार का कोई डर नहीं है.
गांव की लड़कियां अचानक बन गई थी नक्सली:अनपढ़ होने के कारण माओवादियों ने लड़कियों का फायदा उठाया था. 2013-14 में इलाके की सुनीता नाम की लड़की नक्सलियों के महिला दस्ते में शामिल हुई. 2015-16 में अचानक कई लड़कियां नक्सली दस्ते में शामिल हो गई थी. पाल्हे की एक जबकि तुरकुन गांव की पांच लड़कियां तुरकून की एक साथ दस्ते में शामिल हुईं थीं. इनमें से एक लड़की पुलिस एनकाउंटर में मारी गई. मारी गई एक लड़की रिंकी की मां और इनरमिला के भाई ने बताया कि लड़कियां लकड़ी चुनने के लिए जंगल में गई हुई थी. उसके बाद अचानक एक कर सभी गायब हो गईं. कई महीनों बाद जब लड़कियां वापस लौटी तो पता चला कि सभी नक्सली दस्ते में शामिल हो गई हैं. ग्रामीणों ने बताया कि नक्सलियों ने लड़कियों के अनपढ़ होने का फायदा उठाया था. ग्रामीणों ने बताया कि जब लड़कियां दस्ते से कुछ दिनों के लिए घर वापस लौटी थी, तो बताया था कि वह फिर से दस्ते में शामिल नहीं होना चाहती हैं.
2018 की घटना के बाद कोई भी लड़की नक्सली दस्ते में नही हुई है. 28 फरवरी 2018 को छतरपुर थाना क्षेत्र के मलंगा पहाड़ पर सुरक्षाबलों ने 10 लाख के इनामी मार्वदी राकेश भूइयां समेत चार माओवादियों को मार गिराया था. इसी मुठभेड़ में दो महिला नक्सली भी मारी गई थी. दोनों महिला नक्सली तुरकुन गांव की रहने वाली थी. मुठभेड़ के दौरान एक महिला नक्सली को गोली लगी थी जो आज भी जेल में है. इस घटना के बाद कोई भी लड़की नक्सली दस्ते में शामिल नहीं हुई है. यह घटना गांव के लिए एक बुरे सपने की तरह था.