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'जबरन धर्मांतरण करवाने वालों की नहीं है इस्लाम में कोई जगह'

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Published : Dec 2, 2020, 8:48 PM IST

जबरन धर्मांतरण के खिलाफ विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत से फतवा जारी हुआ है. इस फतवे में कहा गया है कि दूसरे धर्म की लड़की का जबरन धर्मांतरण कराना इस्लाम में हराम है. ऐसे लोगों की इस्लाम में कोई जगह नहीं है.

dargah ala hazrat
प्रतिकात्मक फोटो

बरेली :देशभर में लव जिहाद को लेकर बहस छिड़ी हुई है. जबरन धर्मांतरण को लेकर अब संसद में कानून बनाने की मांग तक उठने लगी है. वहीं उत्तर प्रदेश की सरकार ने जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बना भी दिया है.

इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में स्थित सुन्नी बरेलवी मसलक की सबसे बड़ी दरगाह आला हजरत ने जबरन धर्मांतरण के खिलाफ फतवा जारी किया है. इस फतवे में कहा गया है कि जबरन किसी गैर धर्म की लड़की का धर्मांतरण कराना या उससे जबरन निकाह करना नाजायज है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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राष्ट्रीय सुन्नी उलामा काउंसिल के अध्यक्ष इंतजार अहमद कादरी ने दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता से सवाल किया था कि

1- क्या इस्लामी शरीयत में लव जिहाद का कोई महत्व है, क्या छल, फरेब, धोखा और दबाव में लेकर किसी गैर मुस्लिम लड़की से मुस्लिम लड़का शादी कर सकता है?

2- क्या कोई मुस्लिम लड़का दबाव और जोर-जबरदस्ती से किसी गैर मुस्लिम लड़की का धर्म परिवर्तन करवा सकता है?

3- जिन लोगों ने अपना मकसद और उल्लू सीधा करने के लिए इस्लाम का गलत इस्तेमाल किया, ऐसे लोगों के लिए इस्लामिक शरीयत में क्या हुक्म है?

फतवे में दिए जवाब
सुन्नी बरेलवी मसलक की सबसे बड़ी दरगाह आला हजरत से जारी हुए फतवे में इन सवालों के जवाब में कहा गया है कि-

इस्लामी शरीयत में लव जिहाद नाम की कोई चीज न पहले थी न आज है. जिस तरीके से लव जिहाद को दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है, इस्लाम उसका खंडन करता है.

ऐसे लोग जो जबरन किसी लड़की का धर्मांतरण कराते हैं और जबरन उससे निकाह या शादी करते हैं इस्लाम में ऐसे लोगो की कोई जगह नहीं है. खुद मुस्लिम लड़की तक से उसकी मर्जी के बगैर निकाह की इस्लाम इजाजत नहीं देता है.

फतवे में कहा गया है कि इस्लाम में ऐसे लोगों को 100 कोड़े मारने की सजा है. ऐसे लोग जो इस्लाम के नाम पर अपना मकसद और उल्लू सीधा करते हैं, ऐसे लोगों की इस्लाम में कोई जगह नहीं है. इस्लाम से ऐसे लोगों को खारिज किया जाता है.

गौरतलब है की धर्मांतरण के खिलाफ बनने के बाद पहला मुकदमा बरेली के देवरनिया थाने में दर्ज किया गया था.

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